नेपाल में 7.9 तीव्रता के भीषण भूकम्प के 128 घंटे बाद एक इमारत के मलबे से 24 साल की एक महिला को निकाला गया। ‘ई-कांतिपुर’ की खबर के मुताबिक, नेपाल सेना, नेपाल पुलिस और इजराइल के बचावकर्मियों की एक संयुक्त टीम ने गंगाबे गांव में गुरुवार को जनसेवा गेस्ट हाउस के मलबे से कृष्णा देवी खड़का को निकाला।
खड़का गेस्ट हाउस के मलबे में फंसी हुई थीं। शनिवार को देश में आए भीषण भूकम्प के पांच दिन बाद उन्हें बचाया गया। खड़का से पहले एक किशोर को भी निकाला गया था। बचावकर्मियों को सुदूरवर्ती पहाड़ी इलाकों में पहुंचने के लिए अभी भी संघर्ष करना पड़ रहा है। भारी बारिश और भूस्खलन के कारण राहत अभियान में बाधा आई। भूकम्प से करीब 6,200 लोगों की मौत हुई है और 14,000 घायल हुए हैं।
लाहौर का जन्म : गम के सन्नाटे में जीवन की गूंज भी हुई। पाकिस्तानी सेना के फील्ड अस्पताल में पहले शिशु का जन्म हुआ जिसका नाम ‘लाहौर’ रखा गया है। पाकिस्तानी विदेश मंत्रालय की प्रवक्ता तस्नीम असलम ने शुक्रवार को कहा कि मां और बच्चा दोनों स्वस्थ हैं। ऐसा बताया जा रहा है कि काठमांडो के निकट भक्तपुर में स्थापित सेना के अस्पताल में इस बच्चे का जन्म हुआ। सैन्य अधिकारियों ने बताया कि नवजात शिशु का नाम पाकिस्तान के ऐतिहासिक शहर लाहौर के नाम पर रखा गया है।
1.4 लाख इमारतें नष्ट : हिमालयी राष्ट्र में करीब 1.4 लाख इमारतें पूरी तरह से नष्ट हो गई हैं। पेड़ व बिजली के खंभे उखड़ गए और 6300 से अधिक लोगों की मौत हो गई। इस भूकम्प में पूरे नेपाल में 138182 मकान बुरी तरह क्षतिग्रस्त हो गए और 122694 अन्य मकान आंशिक रूप से क्षतिग्रस्त हुए।
गृह मंत्रालय के सूत्रों के मुताबिक, कुल मिलाकर 10394 सरकारी इमारतें धराशायी हो गर्इं और 13 हजार से अधिक आंशिक रूप से क्षतिग्रस्त हुर्इं। सरकार ने भूकम्प में मारे गए लोगों के प्रत्येक परिवार को एक-एक लाख रुपए और घायलों को इलाज के लिए 25 हजार रुपए देने का फैसला किया है। इसी तरह से 25 हजार रुपए उन लोगों को दिए जाएंगे जिनके मकान आंशिक रूप से क्षतिग्रस्त हुए हैं। इसके साथ ही मृत व्यक्तियों के अंतिम संस्कार के लिए 40 हजार रुपए दिए जाएंगे।
इस बीच शुक्रवार सुबह भूकम्प के बाद के झटके महसूस किए गए जिसकी तीव्रता रिक्टर पैमाने पर चार मापी गई। इसका केंद्र काठमांडो के आसपास था। कुछ घंटे बाद काठमांडो से करीब 300 किलोमीटर दक्षिण पूर्व डोलखा जिले में 4.2 की तीव्रता का झटका महसूस किया गया।
विनाशकारी भूकम्प में अपनों को और जीवनयापन के साधन गंवा चुके लोग अब खुले आसमान के नीचे जीवन बसर करने को मजबूर हैं और महसूस कर रहे हैं कि उन्हें भाग्य के भरोसे छोड़ दिया गया है। काठमांडो में दो और लोगों को जीवित बचा लिए जाने से मलबे में बचे लोगों को बचाने की उम्मीद अभी खत्म नहीं हुई है। लेकिन राहत व बचावकर्मी पर्वतीय जिलों में पहुंचने के लिए संघर्ष कर रहे हैं। काठमांडो के पूर्वोत्तर में सिंधुपालचौक क्षेत्र ऐसा ही एक इलाका है जहां काफी तबाही हुई है।
इंटरनेशल फेडरेशन ऑफ रेडक्रास एंड रेड क्रेसेंट सोसायटीज के एशिया मामलों के प्रमुख जगन चापागाइन ने बताया-सिंधुपालचौक जिले के चौतारा से लौटने वाले हमारे एक दल ने बताया कि 90 फीसद मकान तबाह हो गए हैं। अस्पताल भी नहीं बचे। लोग अपने हाथों से मलबा हटा रहे हैं इस उम्मीद से कि उनके परिवार का सदस्य शायद बचा हो।
सिंधुपालचौक के अन्य हिस्से से एएफपी के पत्रकारों ने भीषण तबाही की खबर दी है। अपने गृह शहर मेलमची में मलबे से घिरे कुमार घोरासैनी ने बताया कि मेरे गांव में लगभग हर घर ध्वस्त हो गया, बीस व्यक्ति मारे गए हैं। मवेशी भी नहीं बचे।