दुनिया के सभी देशों के पर्यावरण मंत्री इस सप्ताह परस्पर-विरोधी प्रस्तावों से लैस मसौदे को एक ठोस जलवायु समझौते में बदलने की जद्दोजहद करेंगे ताकि ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जनों पर नियंत्रण किया जा सके। यह कवायद ऐसे समय में होगी जब भारत इस बात पर जोर दे रहा है कि वह सकारात्मक रुख के साथ इस बातचीत में हिस्सा लेगा। 48 पन्नों के इस मसौदे में अब भी कई बेहद अहम मुद्दों पर अनसुलझे विकल्प मौजूद हैं। यह मसौदा वह आधार तैयार करेगा जिस पर भारतीय पर्यावरण मंत्री प्रकाश जावडेÞकर सहित दुनिया भर के मंत्री एक बाध्यकारी समझौते को अंतिम रूप देने की पुरजोर कोशिश करेंगे।

जलवायु परिवर्तन के मुद्दे पर चल रहा 12 दिवसीय शिखर सम्मेलन अपने अंतिम सप्ताह में प्रवेश कर चुका है। सोमवार से मंत्री-स्तरीय वार्ता शुरू होने वाली है। ऐसे समय में वार्ताकार आश्वस्त नजर आ रहे हैं कि अगले सप्ताहांत से पहले समझौते पर सहमति बन जाएगी और 2009 में हुए कोपेनहेगन शिखर सम्मेलन के दोहराव की नौबत नहीं आएगी जो बुरी तरह नाकाम रहा था।

विश्लेषकों का कहना है कि इस बात की संभावना बहुत कम है कि पेरिस में होने वाला कोई भी समझौता वैश्विक तापमान को 2.0 डिग्री सेल्सियस या इससे कम रखने के लक्ष्य को पूरा कर पाएगा। वार्ता के महत्त्वपूर्ण चरण में हिस्सा लेने के लिए जावड़ेकर सोमवार को पेरिस पहुंचने वाले हैं। जावड़ेकर ने कहा, ‘भारत बहुत सक्रियता से हिस्सा ले रहा है, हमारा रुख सकारात्मक है। भारत पहले विरोध का रुख अपनाता था जबकि अब हम सुझाव देने का काम कर रहे हैं। जैसे भारत ने सौर गठबंधन की पहल की। भारत ‘मिशन इनोवेशन’ का साझेदार बना। हम कई चीजों पर सुझाव देंगे। उन सबकी योजना है।’
उन्होंने कहा, ‘भारत पेरिस से आने वाले अंतिम परिणाम को लेकर काफी सकारात्मक है। भारत लचीला रुख अपनाएगा और दुनिया को दिखाएगा कि भारत समस्या का हिस्सा भले ही न हो, लेकिन समाधान तलाशने वालों में से एक है।’ केंद्रीय मंत्री ने कहा, ‘वक्त की मांग है कि विकसित देश जो कहते हैं वह करें। 2020 से पहले की उनकी प्रतिबद्धता पर उन्हें ज्यादा महत्त्वाकांक्षी योजना के साथ आना चाहिए।’

जावड़ेकर ने कहा कि विकसित देशों को जलवायु रक्षा के लिए अपने राष्ट्रीय स्तर पर निर्धारित अभिष्ठ योगदान (आइएनडीसी) के तहत ही अलग से एक योजना भी सामने रखनी चाहिए जो अभी की आइएनडीसी में 2020 से पहले के उनके लक्ष्य शामिल हैं। वार्ता की प्रगति में कथित तौर पर रोड़े अटकाने के लिए भारत को बदनाम किए जाने को लेकर जावड़ेकर ने एक भारतीय टीवी चैनल को बताया, ‘मैं आपको बताना चाहता हूं कि कई लोग भारत को उत्सर्जन करने वाला तीसरा सबसे बड़ा देश कहते हैं। क्रम के मामले में यह गलत है और विषय-वस्तु के मामले में भी यह गलत है। क्रम के अनुसार हम चौथे पायदान पर हैं लेकिन हम उत्सर्जन के मामले में काफी छोटे हैं।’

उत्सर्जन की मौजूदा स्थिति के बारे में पूछे जाने पर जावड़ेकर ने कहा, ‘चीन 29 फीसदी उत्सर्जन करता है और वह पहले पायदान पर है। 16 फीसदी उत्सर्जन करने वाला अमेरिका दूसरे पायदान पर है। यूरोप 10 फीसदी के साथ तीसरे पायदान पर है और भारत पांच फीसदी उर्त्सजन कर चौथे स्थान पर है। पहले तीनों मिलकर 55 फीसदी उत्सर्जन करते हैं और हम पांच फीसदी करते हैं। हम पहले तीनों के 10वें हिस्से से भी कम उत्सर्जन करते हैं।’

जावड़ेकर ने कहा कि लोग कह रहे हैं कि भारत कोयले का इस्तेमाल करता है और यह और कोयले का इस्तेमाल करेगा लेकिन देखा जाए तो आज भी हमारे कोयले की खपत अमेरिका से आधे से भी कम है और अमेरिका गैस का इस्तेमाल कर रहा है और वह भी जीवाश्म ईंधन है। उन्होंने कहा, ‘हमारा गैर-जीवाश्म ईंधन का लक्ष्य 40 फीसदी का है, उनका लक्ष्य सिर्फ 30 फीसदी का है।’ केंद्रीय मंत्री ने कहा, ‘भारत समस्या का हिस्सा भले ही नहीं है, लेकिन यह समाधान का हिस्सा बनना चाहता है क्योंकि हम जूझ रहे हैं। यदि चेन्नई, उत्तराखंड, जम्मू-कश्मीर, सूखा और बाढ़ की घटनाएं हो रही हैं तो इसका मतलब है कि जलवायु परिवर्तन का प्रभाव भी हो रहा है। लेकिन इसमें भी बंटी हुई राय है। यदि आप क्षति और नुकसान को लेकर चेन्नई के मामले को उठाएंगे, तो विकसित देश कहेंगे कि यह जलवायु परिवर्तन का कोई अंतिम मामला नहीं है।’