एक शीर्ष आतंकी कमांडर का कहना है कि लश्कर-ए-तैयबा और अफगान तालिबान, पाकिस्तान की कुख्यात खुफिया एजंसी का आदेश मानते हैं और आइएसआइ अपने ‘घृणित निजी स्वार्थों’ के लिए कश्मीर के मुद्दे पर विभिन्न ‘इस्लामी’ संगठनों का इस्तेमाल करती है।
ये बातें अफगानिस्तान और पाकिस्तान में खूंखार पश्चिमी एशियाई समूह की शाखा आइएसआइएस-खोरासान के प्रमुख हाफिज सईद खान ने इस्लामिक स्टेट की ओर से प्रकाशित अंग्रेजी पत्रिका दाबिक को दिए एक साक्षात्कार में कहीं।
हाल ही में वैश्विक आतंकी घोषित, खान ने कहा, ‘वास्तव में हम यह पहले देख चुके हैं कि किस तरह से पाकिस्तान की बुरी ताकतों ने विशेषकर उनकी सेना और खुफिया एजंसी ने अपने घृणित निजी स्वार्थों के चलते कश्मीर के मुद्दे पर विभिन्न ‘इस्लामी’ (पाकिस्तान समर्थित जिहादी) संगठनों का इस्तेमाल किया है।’
खान ने कहा, ‘वे कश्मीर के लोगों के जोश का इस्तेमाल भी अपने स्वार्थों के लिए करते हैं न कि मुसिलमों से जुड़ी किसी चिंता के चलते। सईद ने कहा कि पाकिस्तान की ‘दिलचस्पी’ हालांकि कभी कम और कभी ज्यादा होती रहती है। कश्मीर के लोगों को एक ऐसे दलदल में धकेल दिया गया, जहां से उन्हें निकालने वाला कोई था ही नहीं। सईद ने कहा, ‘इसी वजह से कश्मीर के कई लोग और दूसरे आतंकी संगठनों के सदस्य आइएसआइएस में शामिल हो रहे हैं।’
सईद ने यह भी कहा कि आइएसआइएस के पास कश्मीर में विस्तार का ‘बड़ा अवसर’ है। उसने दावा किया कि उन क्षेत्रों में विशेष इंतजाम हैं। सईद ने दावा किया कि इसी तरह अफगान तालिबान भी आइएसआइ से अपने लिए दिशा-निर्देशन और आदेश लेता है।
तालिबान के पूर्व कमांडर सईद ने दावा किया कि अफगान तालिबान के प्रमुख मुल्ला अख्तार मंसूर और उसके सहयोगियों के पाकिस्तानी खुफिया एजंसी के साथ मजबूत संबंध हैं। उसने कहा, ‘वे पाकिस्तान के इस्लामाबाद, पेशावर और क्वेटा जैसे महत्वपूर्ण शहरों में रहते हैं।’ सईद ने कहा, ‘यहां तक कि अख्तर मंसूर की सलाहाकार परिषद के सदस्यों में भी पाकिस्तानी खुफिया समुदाय के लोग हैं। इससे भी बड़ी बात यह है कि पाकिस्तानी खुफिया एजंसी उसके हर काम में उसकी मदद करती है।’
उसने कहा, ‘पाकिस्तानी खुफिया एजंसी आइएसआइ के साथ मंसूर के संबंध एजंसी के पूर्व प्रमुख और काफिर सेवानिवृत्त जनरल हामिद गुल की कुछ माह पहले हुई मौत के बाद उजागर हो गए थे। पाकिस्तानी खुफिया एजंसी ने गुल को ‘इस्लामी’ संगठनों को साधने के लिए नियुक्त किया था, ताकि ये संगठन स्थानीय और वैश्विक बुरी ताकतों के आदेशों को मानते रहें।’
अक्तूबर 2014 में सईद ने पांच अन्य कमांडरों के साथ तालिबान छोड़ दिया था। उसने आइएसआइएस के प्रमुख अबु बकर अल-बगदादी के प्रति वफादारी का संकल्प लिया था।