जंग किसी के लिए अपना वर्चस्व कायम करने का जरिया है तो किसी के लिए त्रासदी। लेकिन इसके अलावा जंग एक कारोबार भी है। लोगों को छलनी करने वाली बंदूकें और गोलियां, बमबारी करने वाले टैंक और बेहद सटीक तरीके से लक्ष्य को भेदने वाले जंगी विमान हथियार कंपनियों की तिजौरियां भर रहे हैं। लेकिन लड़ाई से मुनाफा कमाना कितना जायज है, इसी बात पर जर्मनी में इन दिनों बहस छिड़ी है। इस बहस की शुरुआत तब हुई जब जर्मन मीडिया में तस्वीरें छपीं कि तुर्की ने जर्मनी से खरीदे गए लेपर्ड 2 टैंकों का इस्तेमाल सीरिया में कुर्द बलों के खिलाफ अभियान में किया। इस बात से जर्मनी पर घरेलू दबाव इतना बढ़ा कि उसने नाटो पार्टनर होने के बावजूद तुर्की के साथ अपने सभी सैन्य सहयोग रोक दिए हैं साथ ही इस मामले पर तुरंत नाटो की बैठक बुलाने की अपील की है। महीनों के तनाव के बाद जर्मनी और तुर्की से संबंधों में थोड़ी बहुत बर्फ पिघलने लगी थी। लेकिन ताजा तनाव के बाद फिर संबंध तनातनी का शिकार हो गए हैं। जर्मनी के लिए चिंता की बात यह है कि मध्य पूर्व के झगड़े की लपटें अब उसके अपने समाज में भी महसूस की जा रही हैं। जर्मनी में तुर्क मूल के लोगों की आबादी लगभग तीस लाख है जबकि कई लाख कुर्द भी यहां रहते हैं। सीरिया के अफरीन इलाके में तुर्की की कार्रवाई से नाराज कुर्द प्रदर्शनकारियों ने जर्मनी में हनोवर एयरपोर्ट पर टर्किश एयर लाइंस के मुसाफिरों से बदतमीजी की
जबकि पूर्वी जर्मनी के शहर लाइपजिग में एक तुर्क संगठन द्वारा चलाई जा रही मस्जिदों के शीशे तोड़ दिए गए।
तुर्की ही नहीं बल्कि सीरिया, इराक और ईरान के लिए भी कुर्द एक सिरदर्द रहे हैं। कुर्दों की साढ़े तीन करोड़ से ज्यादा की आबादी इन्हीं चार देशों की सीमाओं पर बसती है और हर किसी को डर सताता है कि किसी भी एक इलाके में कुर्दों के मजबूत होने का असर उस पर भी होगा। इस्लामिक स्टेट के
खिलाफ जंग में पेशमर्गा कुर्द लड़ाकों की बहादुरी के किस्सों ने दुनिया भर में सुर्खियां बटोरीं। लेकिन कई सरकारों की नजर में कुर्द अलगाववादी हैं। इराक में तो हाल में कुर्दों ने एक जनमत संग्रह में आजादी के लिए वोट भी दिया। तुर्की समझता है कि सीरिया की कुर्दिश मिलिशिया वाईपीजी के रिश्ते
तुर्की में प्रतिबंधित कुर्दिश वर्कर पार्टी (पीकेके) से हैं जबकि वाईपीजी इससे इनकार करता है। सीरिया में वाईपीजी लड़ाकों को अमेरिका ने हथियार मुहैया कराए हैं ताकि आईएस के खिलाफ लड़ाई में उनकी मदद ली जा सके। जर्मन मीडिया में छपी तस्वीरें दिखाती हैं कि तुर्की ने जर्मनी से खरीदे गए टैंकों को सिर्फ इस्लामिक स्टेट के खिलाफ नहीं, बल्कि वाईपीजी के खिलाफ भी इस्तेमाल किया। सीरिया की सीमा के भीतर तुर्की की इस कार्रवाई की खासी आलोचना हो रही है, जिसका असर आम लोगों पर भी निश्चित रूप से होगा। रिपोर्टों में कहा गया है कि अफरीन में तुर्की के हवाई और टैंक हमलों में 28 आम लोग मारे गए जबकि हजारों बेघर हो गए हैं। जर्मनी ने 1980 के दशक से तुर्की को 700 से ज्यादा टैंक बेचे हैं। इनमें 354 लेपर्ड 2 टैंक भी
शामिल हैं, जो 2006 से 2011 के बीच दिए गए। तुर्की चाहता था कि 2016 में आईएस के खिलाफ अभियान में जिन लेपर्ड टैंकों को नुकसान हुआ, जर्मनी उन्हें अपग्रेड कर दे। लेकिन ताजा तनाव के बाद मामला खटाई में पड़ गया है। वामपंथी डी लिंके और ग्रीन पार्टी जैसे विपक्षी दल मांग कर रहे हैं कि जर्मनी तुर्की से सभी तरह का सैन्य सहयोग खत्म करे। जर्मनी में बहुत से मतदाताओं के लिए हथियारों का निर्यात एक संवेदनशील मुद्दा है। वे समझते हैं कि सैन्य संघर्षों से मुनाफा कमाना अनैतिक है।
शांतिवादियों का तर्क है कि हथियारों के इस्तेमाल के कारण अशांति पैदा होती है, और उससे भागने वाले अपने देश में और बाहर शरणार्थी बनने को मजबूर होते हैं। सीरिया संकट के कारण जर्मनी में पहले ही 10 लाख से ज्यादा शरणार्थी आ चुके हैं और इसकी वजह से देश में राजनीतिक संकट की
स्थिति पैदा हो गई है। खुद चांसलर अंगेला मैर्केल की सीडीयू पार्टी के एक सांसद नॉर्बर्ट रोएटगन कहते हैं कि अगर तुर्की की सेना उत्तरी सीरिया में कुर्दों के खिलाफ अभियान चलाएगी तो फिर उसके साथ सैन्य सहयोग करने का कोई सवाल ही नहीं उठता। हो सकता है कि जर्मनी में सरकार गठन के
लिए चांसलर अंगेला मैर्केल की सीडीयू-सीएसयू पार्टी और सोशल डेमोक्रेटिक पार्टी के बीच गठबंधन के लिए चल रही वार्ता में भी हथियारों के निर्यात का मुद्दा उठे।
जर्मनी हथियारों का निर्यात करने वाला दुनिया का तीसरा सबसे बड़ा देश है। उसने 2017 में कुल 3।79 अरब यूरो के हथियार बेचे जबकि 2016 में उसे हथियारों की बिक्री से 3।67 अरब यूरो मिले। तुर्की को जर्मनी ने 2016 में 8।39 करोड़ यूरो के हथियार निर्यात किए। पिछले साल यह आंकड़ा
3।42 करोड़ यूरो रहा। डी लिंके पार्टी की तरफ से संसद में पूछे गए एक सवाल के लिखित जवाब में जर्मनी के आर्थिक मंत्रालय ने यह जानकारी दी है। जर्मनी अतीत में मिस्र, नाइजीरिया, दक्षिण अफ्रीका और डेमोक्रेटिक रिपब्लिक ऑफ कांगो जैसे देशों को भी हथियार बेच चुका हैं, जहां कई इलाके संघर्षों के शिकार रहे हैं। एसपीडी पार्टी का साफ कहना है कि सहयोगी देशों के अलावा किसी अन्य को हथियार न बेचे जाएं। मौजूदा विदेश मंत्री और एसपीडी नेता जिग्मार गाब्रिएल ने एक्सपोर्ट लाइंसेंस, खासकर हल्के हथियारों के लाइसेंस जारी की प्रक्रिया को सख्त बनाने का वादा किया है।
कुल मिलाकर एक तरफ अरबों का कारोबार है तो दूसरी तरफ नैतिकता का सवाल सामने खड़ा है। साथ इससे यह भी पता चलता है कि व्यापक साझा हित एक होने के बावजूद राष्ट्रीय और क्षेत्रीय हित किस तरह जटिलताएं पैदा करते हैं। तुर्की समेत नाटो के सभी सदस्य देश जहां आईएस के साथ
निपटने के बारे में एकजुट हैं, वहीं कुर्दों को लेकर उनकी राय आपस में नहीं मिलती। जिस तरह की दुनिया में हम रह रहे हैं, उसे देखते हुए यह तो नहीं लगता कि हथियारों का उत्पादन कम होगा। और हथियार खरीदने वाले को कोई कैसे नियंत्रित कर सकता है कि वह उनका कहां इस्तेमाल कर सकता है और कहां नहीं। इसलिए आज अमन का रास्ता मुश्किल होता जा रहा है। लेकिन दुनिया के सामने और रास्ता भी क्या है?
ये लेख डॉयचे वेले हिन्दी, बॉन, जर्मनी के लिए अशोक कुमार ने लिखा है।
