पश्चिम एशिया में 7 अक्टूबर, 2023 को हमास के आतंकवादी हमलों से शुरू हुआ संकट अब एक साल से जारी है। अनुमानों के अनुसार, गाजा और लेबनान में इज़रायल के जमीनी हमलों और हवाई बमबारी में 41,000 से अधिक लोग मारे गए हैं। एक तरफ जहां गाजा पूरी तरह से तबाह हो गया है वहीं, माना जाता है कि हमास ने अभी भी 97 लोगों को बंधक बना रखा है।

आइये जानते हैं हमले के एक साल पूरे होने के बाद पश्चिम एशिया के देशों में क्या हालात हैं।

इजरायल- प्रधानमंत्री बेंजामिन नेतन्याहू ने हमास का अस्तित्व धरती से मिटा देने की कसम खाई थी। जिसके बाद से इज़रायल रक्षा बलों (आईडीएफ) के अभियानों के बाद से गाजा में मरने वालों की संख्या बहुत अधिक है। इज़रायल ने ईरान समर्थित विद्रोही समूहों- विशेष रूप से लेबनान स्थित हिजबुल्लाह और यमन स्थित हूतियों के खिलाफ अपने सैन्य लाभ को बढ़ाने की मांग की है। हूती हमलों ने लाल सागर में इंटरनेशनल शिपिंग को बाधित कर दिया है।

इजरायल का लेबनान-सीरिया-यमन पर हमला

जवाबी कार्रवाई में, इज़रायल ने लेबनान पर हमला करने के अलावा सीरिया और यमन में हमले किए हैं जबकि उसने गाजा में जमीनी अभियान जारी रखा है। संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद द्वारा युद्ध विराम के आह्वान, संयम बरतने की अमेरिकी सलाह और इस तथ्य की अनदेखी करते हुए कि हमास पहले ही काफी कमजोर हो चुका है, अप्रैल में ईरान द्वारा उसके खिलाफ क्रूज मिसाइल और ड्रोन हमले के बाद भी इज़रायल ने जवाबी कार्रवाई की और 1 अक्टूबर को हवाई हमलों के लिए तेहरान शासन को परिणाम भुगतने की चेतावनी दी है।

इस दौरान इज़रायल टू स्टेट समाधान को स्वीकार करने से बहुत दूर चला गया है और अब शायद पहले से कहीं अधिक इसका विरोध कर रहा है। जुलाई में इजरायली नेसेट ने भारी बहुमत से फिलिस्तीनी संप्रभुता को खारिज करने वाला एक प्रस्ताव पारित किया।

7 अक्टूबर: हमास का एक हमला और हमेशा के लिए बदल गई गाजा की तस्वीर और तकदीर

फिलिस्तीन के खिलाफ इजरायली राजनीतिक राय का एकीकरण अक्टूबर 2023 के बाद से नेतन्याहू की मजबूत स्थिति को दर्शाता है। यहां तक ​​कि सेवानिवृत्त जनरल बेनी गैंट्ज़, जिन्होंने बंधकों की रिहाई सुनिश्चित करने में सरकार की विफलता के कारण 2024 की शुरुआत में इजरायल के युद्ध मंत्रिमंडल को छोड़ दिया था, उन्होंने भी इस प्रस्ताव का समर्थन किया। राष्ट्रीय सुरक्षा मंत्री इतामार बेन-गविर चाहते हैं कि गाजा की तरफ सभी मानवीय सहायता को अवरुद्ध कर दिया जाए।

क्या चाहते हैं अरब देश?

सऊदी अरब और संयुक्त अरब अमीरात जैसी प्रमुख अरब शक्तियां मध्य पूर्व में भू-राजनीतिक और भू-आर्थिक रीसेट की प्रक्रिया के लिए प्रतिबद्ध हैं जो अक्टूबर 2023 से पहले चल रही थी। हालांकि, युद्ध ने फ़िलिस्तीनी संप्रभुता के प्रश्न को केंद्र में ला दिया है, क्षेत्र के सभी राज्य इसे स्थायी शांति के लिए एक पूर्व शर्त के रूप में देख रहे हैं।

आर्थिक विकास के लिए आवश्यक क्षेत्रीय स्थिरता के लिए न केवल इज़रायल बल्कि ईरान के साथ भी शांति की आवश्यकता है। सउदी और अमीराती दोनों यमन में अपनी भागीदारी से पीछे हटने पर ध्यान केंद्रित कर रहे थे, इससे पहले कि मौजूदा संकट ने हूतियों को नई प्राथमिकताएँ दीं। इस बीच, अरब की सड़कों पर इजरायल द्वारा हमला बंद करने की मांग बढ़ गई है। परिणामस्वरूप, मध्य पूर्वी शक्तियों ने इज़राइल के प्रति या तो मध्यस्थ या टकराव की स्थिति अपना ली है।

जहां तुर्की के रेसेप तैयप एर्दोगन ने अपनी इजरायल विरोधी बयानबाजी तेज कर दी है, वहीं कतर ने अब तक सीमित सफलता के बावजूद इजरायल और हमास के बीच अपनी मध्यस्थ भूमिका को फिर से शुरू करने की प्रवृत्ति दिखाई है।

कतर के प्राथमिक मध्यस्थ भागीदार मिस्र के लिए, युद्ध की लागत अधिक प्रत्यक्ष है क्योंकि यह गाजा के साथ सीमा साझा करता है। जॉर्डन (वेस्ट बैंक की सीमा से लगा हुआ) और मिस्र दोनों ही शरणार्थियों से बचना चाहते हैं और मिस्र इजरायल के साथ संघर्ष कर रहा है क्योंकि वह अधिक से अधिक गज़ावासियों को दक्षिणी सीमा की ओर धकेल रहा है। काहिरा गाजा और मिस्र तक फैले फिलाडेल्फी कॉरिडोर पर संभावित इजरायली नियंत्रण का विरोध करता है।

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अमेरिका और पश्चिमी देशों का क्या है रुख?

अमेरिका-इजरायल संबंध मजबूत हैं। अमेरिका के नेतृत्व में पश्चिम का दृष्टिकोण लगातार सभी पक्षों को आगे बढ़ने के खिलाफ चेतावनी देना, गाजा के लिए मानवीय सहायता के लिए प्रतिबद्ध होना लेकिन इजरायल के साथ दृढ़ता से खड़ा होना है, भले ही वह किसी भी रेड लाइन का उल्लंघन करता हो। बाइडेन प्रशासन नेतन्याहू से बहुत निराश है, लेकिन इज़रायल की रक्षा के लिए प्रतिबद्ध है। राज्य सचिव एंटनी ब्लिंकन ने 12 महीनों में मध्य पूर्व की कम से कम नौ यात्राएँ की हैं लेकिन गाजा में युद्धविराम पर बातचीत में मदद करने में विफल रहे। अमेरिका, जिसने अप्रैल में ईरान और इज़रायल के बीच नियंत्रित संबंधों में सफलतापूर्वक मध्यस्थता की थी, अब भी इज़रायल के हाथ को रोकने पर ध्यान केंद्रित कर रहा है।

इस युद्ध ने यूरोप में हाहाकार मचा दिया है, यूरोपीय संघ के विदेश नीति प्रमुख ने इज़रायल के खिलाफ प्रतिबंध लगाने की भी मांग की है। हालांकि, प्रमुख यूरोपीय राज्यों ने अमेरिका का अनुसरण किया है और इज़रायल के अपनी रक्षा के अधिकार को दोहराते हुए युद्ध और हमलों पर नियंत्रण की मांग की है।

चीन का क्या है योगदान?

मॉस्को द्वारा रुचि दिखाने के बावजूद, अक्टूबर 2023 में हमास और ईरानी नेताओं की मेजबानी सहित, यूक्रेन में युद्ध ने राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन की मध्य पूर्वी घटनाओं को प्रभावित करने की क्षमता को भी सीमित कर दिया है। दूसरी ओर, चीन ने पिछले साल मध्य पूर्व में महत्वपूर्ण राजनयिक और आर्थिक पकड़ बनाई है, जिसमें जुलाई में फतह-हमास सुलह समझौता शामिल है।

संकट के बीच, बीजिंग ने इज़रायल की कड़ी आलोचना करते हुए, खाड़ी में अरब/ईरानी गलियारे में अपने आर्थिक और रणनीतिक संबंधों को मजबूत करने पर ध्यान केंद्रित किया है। हालांकि, चीन अपनी सुरक्षा/सैन्य भागीदारी में संयमित बना हुआ है।

क्या है भारत का रुख?

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अक्टूबर 2023 और 2024 दोनों सालों में युद्ध के दौरान नेतन्याहू से फोन पर बात की, चिंता व्यक्त की और एकजुटता की पेशकश की। पीएम मोदी ने टू-स्टेट समाधान के प्रति भारत की प्रतिबद्धता दोहराते हुए फिलिस्तीन के राष्ट्रपति महमूद अब्बास से भी बात की।

भारत ने लगातार यूएनजीए के प्रस्तावों के पक्ष में मतदान किया है, जिसमें कब्जे वाले क्षेत्रों से इजरायल की वापसी का आह्वान किया गया है। भारत का मानना ​​​​है कि इजरायल, फिलिस्तीनी और अरब नेताओं के बीच बातचीत से समझौता ही एकमात्र समाधान है।