आतंकी संगठन आईएस ने इराक को अपने कब्जे में ले रखा है। ऐसे में वहां से भागने को मजबूर हुए कई लोग उस शख्स को याद कर रहे हैं जिसने कभी वहां पर कब्जा कर रखा था। वह शख्स है सद्दाम हुसैन। सद्दाम को याद करने वालों में खदीम शरीफ अल-जहवारी नाम वह शख्स भी शामिल है जिसने 9 अप्रैल 2003 में सद्दाम की मूर्ति को गिराने में अहम भूमिका निभाई थी। यह मूर्ति बगदाद के मुख्य फिरदौस चौराहे पर लगी हुई थी। खदीम ने सबसे पहले उस विशालकाय मूर्ति पर हथोड़े से कई वार किए थे। इसके बाद वहां पर अमेरिकी सैनिक आ गए और उन्होंने ईराक पर अपना कब्जा जमा लिया।

कभी सद्दाम की मूर्ति पर अपना गुस्सा निकालने वाले खदीम अब अपने किए पर पछताने लगे हैं। वे चाहते हैं कि सद्दाम की मूर्ति को वह फिर से लगा दें। बीबीसी से बातचीत में उन्होंने कहा, ‘जब भी मैं उस जगह से गुजरता हूं जहां पर मूर्ति लगी हुई थी तो मुझे दर्द होता है, शर्म आती है। मैं अपने आप से पूछता हूं कि मैंने वह मूर्ति आखिर तोड़ी ही क्यों? मैं उसे दोबारा बना देना चाहता हूं, पर जानता हूं ऐसे में मेरी हत्या हो सकती है।’

क्योंकि इस मूर्ति का टूटना सद्दाम की विरासत के अंत की शुरुआत के रूप में देखा गया, इस वजह से खदीम को लगता है कि ईराक का जो आज हाल है वह उनकी वजह से ही है। उन्हें लगता है कि अगर वह मूर्ति ना तोड़ते तो ना ही सद्दाम को चुनौती मिलती और ना ही अमेरिकी फौज बगदाद में डेरा जमाती।

खदीम मानते हैं कि सद्दाम के जाने के बाद अमेरिका का कब्जा होने से इराक के लोगों में गुस्सा भर गया था। इसी वजह से इतने आतंकी संगठन बन गए और अब आईएस ने ईराक पर कब्जा कर लिया। हदीम ने कहा, ‘बुश और ब्लेयर दोनों झूठे थे। उन्होंने इराक को बर्बाद कर दिया। उन्होंने हमें जीरो कर दिया। वे हमें मध्यकाल की तरफ खींचकर ले गए। अगर मैं क्रिमिनल होता तो दोनों को अपने हाथों से मार देता।’

खदीम फिलहाल बैरूत में रहते हैं। यहां पर उनके अलावा 10 लाख और रिफ्यूजी हैं। ये सब इराक, सीरिया और फ्लिस्तीन से आए हैं।