Indonesia President cancels Pakistan visit: इंडोनेशिया के राष्ट्रपति प्राबोवो सुबिअंतो (Prabowo Subianto) ने हाल ही में पाकिस्तान जाने की योजना रद्द कर दी। यह फैसला अचानक हुआ और इसके पीछे कई राजनयिक पहलू छिपे हुए हैं, जिन पर चर्चा शुरू हो गई है। पहले यह माना जा रहा था कि सुबिअंतो भारत के गणतंत्र दिवस पर मुख्य अतिथि बनने के बाद यहां से सीधे पाकिस्तान रवाना हो जाएंगे, लेकिन अब यह स्पष्ट हो गया कि वह पाकिस्तान नहीं जाएंगे। इसके बजाय मलेशिया का रुख करेंगे। कहा जा रहा है कि क्या भारत का दबाव इस बदलाव का मुख्य कारण है?

पाकिस्तान दौरे की क्या थी योजना?

सुबिअंतो का पाकिस्तान दौरा पहले से ही तय था। जनवरी में पाकिस्तान के मीडिया ने जानकारी दी थी कि राष्ट्रपति सुबिअंतो गणतंत्र दिवस के बाद पाकिस्तान आएंगे और इस्लामाबाद में पाकिस्तान के प्रधानमंत्री शहबाज़ शरीफ़ से मुलाकात करेंगे। वह दोनों देशों के बीच द्विपक्षीय संबंधों को सुदृढ़ करने पर चर्चा करने वाले थे। पाकिस्तान ने इस दौरे को अपनी विदेश नीति का एक अहम हिस्सा माना था, क्योंकि यह दोनों देशों के बीच आर्थिक और रणनीतिक रिश्तों को मजबूत करने का मौका हो सकता था।

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भारत और पाकिस्तान के बीच रिश्ते हमेशा तनावपूर्ण रहे हैं, विशेषकर कश्मीर मुद्दे को लेकर। भारत की “एक्ट ईस्ट पॉलिसी” और इंडोनेशिया के साथ बढ़ते रिश्तों को देखते हुए, यह कयास लगाए जा रहे थे कि भारत ने राजनयिक स्तर पर इस मुद्दे को उठाया होगा। भारत को यह चिंता थी कि गणतंत्र दिवस पर मुख्य अतिथि के रूप में भारत आने के बाद अगर सुबिअंतो पाकिस्तान जाते हैं, तो यह भारतीय कूटनीति के लिए एक असंवेदनशील कदम हो सकता था।

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भारत ने शायद राष्ट्रपति सुबिअंतो को यह समझाया कि पाकिस्तान का दौरा भारत के लिए कूटनीतिक दृष्टिकोण से सही नहीं होगा। इसके अलावा, भारत-पाकिस्तान के बढ़ते तनाव को देखते हुए यह कदम दोनों देशों के बीच और अधिक विवाद को जन्म दे सकता था।

पाकिस्तान ने राष्ट्रपति के दौरे के रद्द होने पर कोई खुली प्रतिक्रिया नहीं दी। पाकिस्तान ने इस दौरे को महत्वपूर्ण माना था, क्योंकि इसे द्विपक्षीय संबंधों को नया आकार देने के रूप में देखा जा रहा था। लेकिन जैसे ही यह खबर आई कि सुबिअंतो पाकिस्तान नहीं जाएंगे, वहां के मीडिया और अधिकारियों ने इस पर कोई बयान नहीं दिया। इस चुप्पी से यह अनुमान लगाया जा रहा है कि भारत का दबाव इस फैसले के पीछे हो सकता है।

इंडोनेशिया ने हमेशा अपनी विदेश नीति में संतुलन बनाए रखा है। वह किसी भी प्रकार के अंतरराष्ट्रीय विवादों में सीधे तौर पर हस्तक्षेप करने से बचता है, लेकिन इस मामले में उसे भारत और पाकिस्तान दोनों देशों के साथ अपने रिश्तों का ध्यान रखना था। इंडोनेशिया के लिए यह स्थिति एक चुनौती थी क्योंकि उसे यह समझना था कि एक साथ दोनों देशों से अच्छे रिश्ते रखना कठिन हो सकता है।

भारत और इंडोनेशिया के रिश्ते दशकों पुराने और मजबूत रहे हैं। खासकर भारत की “एक्ट ईस्ट पॉलिसी” के तहत इंडोनेशिया को एक प्रमुख साझेदार माना जाता है। हाल ही में इंडोनेशिया ने BRICS सदस्यता भी प्राप्त की है, जिससे दोनों देशों के रिश्ते और भी मजबूत हो सकते हैं। इस मामले में, राष्ट्रपति सुबिअंतो का फैसला यह संकेत देता है कि भारत ने कूटनीतिक स्तर पर अपनी चिंताओं को उठाया और उसे प्रभावी ढंग से समझाया। हालांकि यह बदलाव इंडोनेशिया के लिए चुनौतीपूर्ण था, लेकिन अंततः यह कदम भारत के दृष्टिकोण से महत्वपूर्ण था।