India-Nepal Border Dispute: सशस्त्र सीमा बल (SSB) के अधिकारियों ने बताया कि भारत-नेपाल सीमा पर से पांच खम्भे गायब हो गए हैं जो सरहदबंदी का काम करते थे। बकौल एसएसबी इसकी जानकारी गृह मंत्रालय और यूपी में लखीमपुर खीरी जिला न्यायाधीश को दी गई है। इधर नेपाल ने सीमा पर पांच नई चौंकियां भी बना ली हैं जहां सशस्त्र प्रहरी बल (नेपाल की सशस्त्र पुलिस बल) के सदस्यों को तैनात किया गया है। इस बीच भारत में गश्त को बढ़ा दिया गया है और सभी चौकियों को हाई अलर्ट पर रखा गया है।

एसएसबी की 39वीं बटालियन लखीमपुर खीरी जिले में भारत-नेपाल सीमा पर 62.9 किलोमीटर क्षेत्र की रक्षा करती है। हाल में एसएसबी कमांडेंट मुन्ना सिंह ने लखीमपुर खीरी के जिला न्यायाधीश शैलेंद्र सिंह को पत्र लिखकर खम्भों के गायब होने और भारत-नेपाल सीमा पर अतिक्रमण के बारे मे जानकारी दी। खीरी जिला नेपाल के कैलाली और कंचनपुर जिलों के साथ अपनी सीमा साझा करता है। बिहार में भारत-नेपाल सीमा पर हाल के तनावों के बाद यहां की सभी सीमा चौकियों को भी हाई अलर्ट पर रखा गया था।

टीओआई द्वारा संपर्क करने पर एसएसबी कमांडेंट ने बताया कि हम गुम खम्भों की संख्या के बारे में जानकारी साझा नहीं कर सकते क्योंकि यह गोपनीय है। उन्होंने कहा कि अतिक्रमण भौगोलिक कारणों से हो सकता है क्योंकि नेपाल में लेखपालों ने सीमावर्ती क्षेत्रों में लोगों को ‘नो मैंस लैंड’ में जमीन आवंटित की है। कुछ मामलों में सीमा के पार भी ऐसा हुआ है। ऐसा कुछ प्रशासनिक गलतियों के कारण भी संभव है। इसलिए हमने खीरी डीएम को इसकी जानकारी दी ताकि नेपाल के अधिकारियों संग मीटिंग के जरिए इस मुद्दे को सुलझाया जा सके।

इधर नेपाली संसद के उच्च सदन ने रविवार (14 जून, 2020) को देश के नए राजनीतिक नक्शे को अद्यतन करने के संविधान संशोधन विधेयक पर चर्चा के प्रस्ताव को अनुमोदित कर दिया। इन नक्शे में रणनीतिक रूप से महत्वपूर्ण तीन भारतीय क्षेत्रों को शामिल किया गया है। इससे एक दिन पहले ही निचले सदन ने सर्वसम्मति से इस प्रस्ताव के पक्ष में मतदान किया था।

नेपाल के सत्ताधारी और विपक्षी राजनीतिक दलों ने शनिवार को नए विवादित नक्शे को शामिल करते हुए राष्ट्रीय प्रतीक को अद्यतन करने के लिए संविधान की तीसरी अनुसूची को संशोधित करने संबंधी सरकारी विधेयक के पक्ष में मतदान किया। इसके तहत भारत के उत्तराखंड में स्थित लिपुलेख, कालापानी और लिंपियाधुरा को नेपाली क्षेत्र के तौर पर दर्शाया गया है। भारत ने इस कदम का सख्त विरोध करते हुए इसे स्वीकार करने योग्य नहीं बताया था।