दुनिया में अब तक करीब सवा आठ करोड़ लोग बेघर हुए हैं। इनमें से करीब पांच करोड़ अपने ही देशों में विस्थापित हैं। इनमें ढाई करोड़ शरणार्थी हैं और 40 लाख शरणागत हैं। करीब 68 फीसद शरणार्थी पांच देशों के हैं- सीरिया, वेनेजुएला, अफगानिस्तान, सूडान और म्यांमा। करीब 42 फीसद तुर्की, कोलंबिया, पाकिस्तान, युगांडा और जर्मनी की शरण में रह रहे हैं।
आदमी बेघर होकर सबसे पहले आसपास का ठिकाना तलाशता है। यही वजह है कि 73 फीसद शरणार्थी अपने पड़ोसी मुल्कों में ही जाने की कोशिश करते हैं। ये जो दुनिया भर के आठ करोड़ बेघर लोग हैं इनमें से 35 फीसद बच्चे हैं। समुद्र तट पर औंधे मुंह बेजान सीरियाई बच्चे आयलन की तस्वीर इन तमाम बच्चों पर मंडरा रहे खतरे की बयानी बन कर उभरी थी।
इन साढ़े तीन करोड़ बच्चों में से दस लाख तो शरणार्थी की तरह ही पैदा हुए हैं। और 94 देशों में रह रहे उन चालीस लाख शरणार्थियों की गिनती कहीं नहीं जिन्हें कोई देश अपना नागरिक ही नहां मानता। रणभूमि में तब्दील हो चुकी इस दुनिया में अनाथ आबादी की तकदीर का फैसला अब अमेरिका जैसे गैर-जिम्मेदार देशों पर छोड़ना मुनासिब नहीं। इस वक्त भारत का भी जिम्मा है कि अपने हितों को तरजीह देते हुए वह इंसानियत की पैरोकारी में पीछे न रहे।
