विश्व व्यापार संगठन के अन्य सदस्यों द्वारा अमेरिका और भारत में बड़े पैमाने पर कृषि-समर्थित योजनाओं की जांच की जा रही है। WTO की त्रैमासिक कृषि समिति की बैठक में सोमवार (17 जून, 2019) को किसानों से जुड़े ऐसे ही कुछ सवाल प्रस्तुत किए गए। WTO में आकार और भुगतान के तरीके को लेकर सख्त नियम हैं। संगठन की सदस्य सरकारें ऐसे किसी भी प्रतियोगी की कड़ी निगरानी रखती हैं जो धोखा दे सकता है। अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप और भारतीय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी दोनों ही नेताओं ने अपनी सरकारों में किसानों की आय को प्राथमिकता दी है। हालांकि राष्ट्रपति ट्रंप जहां एक तरफ चीन के साथ टैरिफ वॉर के चलते घरेलू नुकसान की भरपाई करने की कोशिश कर रहे हैं। वहीं पीएम मोदी भारत की कृषि-प्रधान अर्थव्यवस्था में मंदी का सामना कर रहे हैं।
ऐसे में WTO में EU ने भारत को यह बताने के लिए कहा कि कैसे पीएम मोदी ने कृषि और ग्रामीण विकास पर 357.5 बिलियन डॉलर खर्च करने का प्रस्ताव रखा। जिससे साल 2022 तक किसानों की आय की दोगुना होकर 100 ट्रिलियन-रुपए हो जाएगी। यूनियन ने मोदी सरकार से पूछा,’उत्पादन के वैश्विक बाजार मूल्यों और अतिरिक्त उत्पादन को रोकने के लिए किए गए उपायों को ध्यान में रखते हुए यह कैसे किया जाएगा?’
ऐसा तब है जब अमेरिका ने गैर-बासमती चावल और गेहूं बढ़ती कीमतों के बाद भी राज्य में बढ़ती खरीद पर भारत की पांच फीसदी निर्यात सब्सिडी का विरोध किया है। इसके अलावा अमेरिका के साथ ऑस्ट्रेलिया भी कृषि के लिए भारत की नई “परिवहन और विपणन सहायता” की डिटेल्स चाहते थे।
गौरतलब है कि यूरोपीय संघ ने इस महीने कांग्रेस द्वारा अनुमोदित 19 बिलियन डॉलर के आपदा बिल को भी खारिज कर दिया, जिसमें कहा गया कि यह अमेरिकी कृषि विभाग को ‘फसल बीमा पर रोपण भुगतान कारक को 55 फीसदी के बजाय मकई के लिए 90 फीसदी और सोयाबीन के लिए 60 फीसदी’ बढ़ावा देगा।