हांगकांग को बीजिंग से अलग करने की वकालत करने वाले युवा नेता पहली बार कानून निर्माता बन गए हैं। इन नेताओं को वर्ष 2014 में बड़े स्तर पर निकाली गई लोकतंत्र समर्थक रैलियों के बाद से अब तक आयोजित इस सबसे बड़े चुनाव में जीत हासिल हुई है। बीजिंग द्वारा इस अर्द्ध स्वायत्त शहर पर अपनी पकड़ मजबूत किए जाने के डर के बीच हुए इस विधायी चुनाव में रिकॉर्ड 22 लाख लोगों ने मतदान किया। वर्ष 1997 में ब्रिटेन द्वारा चीन को हांगकांग लौटाए जाने के बाद से यह अब तक का सबसे भारी मतदान प्रतिशत है। यह भारी मतदान बीजिंग के बढ़ते हस्तक्षेप से उपजे तनाव की पृष्ठभूमि में हुआ है।

हांगकांग की आजादी को हस्तांतरण समझौते के तहत 50 साल का संरक्षण दिया गया था लेकिन कई लोगों का मानना है कि यह संरक्षण कमजोर पड़ रहा है। विशेष तौर पर युवा कार्यकर्ता ‘एक देश, दो तंत्र’ संधि में अपना विश्वास खो चुके हैं। इसी संधि के तहत इस शहर का संचालन किया जाता है और यह किसी अन्य मुख्य भूभाग की तुलना में हांगकांग को ज्यादा आजादी देता है। राजनीतिक सुधार के लिए वर्ष 2014 में निकाली गई रैलियों की विफलता से उपजी मायूसी के कारण अधिक स्वायत्ता की मांग करने वाली कई नई पार्टियां अस्तित्व में आ गईं। परिणाम आने पर, चार नए उम्मीदवारों द्वारा सीटें जीतने की पुष्टि हो गई। पांचवा उम्मीदवार भी जीत की ओर बढ़ रहा है। इनमें से एक उम्मीदवार नाथ लॉ (23) था, जो वर्ष 2014 के ‘अंब्रैला मूवमेंट’ रैलियों का नेता है। वह अपने निर्वाचनक्षेत्र में दूसरे स्थान पर रहा है।

हांगकांग भौगोलिक रूप से पांच निर्वाचन क्षेत्रों में बंटा है। हर क्षेत्र के पास लेजिसलेटिव काउंसिल में कई सीटें हैं। यह संस्था हांगकांग के कानून बनाती है। लॉ और उनकी नई पार्टी डेमोसिस्टो आजादी के मुद्दे पर जनमतसंग्रह का आह्वान कर रहे हैं। उनका जोर इस बात पर है कि चीन के साथ रहने या न रहने का फैसला करने का अधिकार हांगकांग के लोगों को होना चाहिए। लॉ ने अपनी जीत का जश्न मनाते हुए कहा, ‘मुझे लगता है कि हांगकांग के लोग वाकई बदलाव चाहते हैं।’