हिन्दू कुश पर्वत और तिब्बती पठार क्षेत्र बर्फ से ढका हुआ एक बहुत बड़ा भाग है। यह क्षेत्र मध्य और पूर्व एशिया तक फैला हुआ है। ध्रुवीय क्षेत्रों के अलावा धरती पर यह सबसे बड़ा बर्फीला इलाका है। इसलिए इसे थर्ड पोल भी कहा जाता है और यह अब सिकुड़ रहा है। इस क्षेत्र से बड़ी संख्या में नदियां यहां मौजूद ग्लेशियरों में ही निकलती हैे। यहां के जल से एक अरब से ज्यादा लोगों की पानी की जरूरत पूरी होती है लेकिन अगर ये ग्लेशियर यूं ही पिघलते रहे तो इसके आसपास के भूभाग के लिए भविष्य में गंभीर जल संकट पैदा हो सकता है।

हिमालय के ग्लेशियर सिर्फ बढ़ते वैश्विक तापमान के कारण ही नहीं पिघल रहे हैं, बल्कि इन्हें वायु प्रदूषण से भी नुकसान पहुंच रहा है। यह वायु प्रदूषण ग्लेशियर पर दो तरफ से मार कर रहा है। एक तरफ चीन का प्रदूषण है, जिससे तिब्बती पठार के ग्लेशियर पिघल रहे हैं। यहां चीन के उत्तर से प्रदूषित हवा पहुंचती है। दूसरी तरफ, उत्तरी भारत से पहुंच रहा प्रदूषण है, जो हिमालय के उस हिस्से के ग्लेशियर को क्षति पहुंचा रहा है। यह बात चीन में हुए ताजा अध्ययन से उजागर हुई है। विज्ञान अकादमी के अध्ययन के मुताबिक चीन में 50 साल में 18 फीसदी हिमालयीन ग्लेशियर नदारद हो चुके हैं। चीनी अध्यनकर्ताओं ने तथ्य जुटाने और नतीजों पर पहुंचने के लिए रिमोट सेंसिंग डाटा का उपयोग किया है।

अकादमी में तिब्बत पठार शोध के प्रोफेसर शिचांग कांग ने कहा कि ग्लोबल वार्मिंग के रूप में बढ़ रहा तापमान ग्लेशियरों के लिए वास्तविक खतरा है लेकिन इस क्षेत्र में वायु प्रदूषण ने भी ग्लेशियरों को पिघलाने में भूमिका निभाई है। कांग का कहना है कि तिब्बती पठार के भीतरी और मध्य हिस्से में मिले दो तिहाई नमूनों में मौजूद ब्लैक कॉर्बन में जीवाश्म ईंधन के बजाय बायोमास की हिस्सेदारी अधिक है। कांग के मुताबिक इसकी वजह तिब्बत में ईंधन जलाने के परंपरागत तरीके जिम्मेदार हैं। जर्नल नेचर कम्युनिकेशन में प्रकाशित नए अध्ययन के मुताबिक अध्ययनकर्ताओं ने हिमालय क्षेत्र से ब्लैक कॉर्बन के नमूने एकत्रित किए हैं। ये पार्टिकुलेट मैटर जीवाश्म ईंधन और बायोमास के जलने के कारण बनते हैं। उन्होंने इनका विश्लेषण विशेष रासायनिक फिंगरप्रिंट प्रक्रिया के जरिए करके पता किया कि ये किन चीजों के जलने से बने और यहां कहां से पहुंचे।

अभी तक विज्ञानी यह नहीं बता पा रहे थे कि हिमालय और तिब्बत के पठारी क्षेत्र में प्रदूषण कहां से पहुंच रहा है और किस तरह के स्रोतों से निकलकर ये नुकसान पहुंचा रहे हैं। नए अध्ययन से यह अहम सूचना मिली है कि भविष्य में ग्लेशियर के स्वरूप में क्या बदलाव होंगे और यह भी तय करना मुमकिन हो सकेगा कि प्रदूषण को कैसे कम किया जा सकता है।
अध्ययनकर्ता कांग और उनके सहयोगियों के मुताबिक तीसरे ध्रुव पर छाए वायु प्रदूषण में मौजूद ब्लैक कॉर्बन में जीवाश्म ईंधन, बायोमास का जलना मसलन संयंत्र सामग्री और गोबर इत्यादि का योगदान है। ाीन की मौत