तिब्बत मूल के लोगों और अन्य जातीय अल्पसंख्यकों को पासपोर्ट हासिल करने से रोकने के लिए बीजिंग ने प्रभावशाली ढंग से प्रतिबंध लगाया है। विदेश जाने वाले चीनी पर्यटकों की संख्या में उछाल आने के बीच ह्यूमन राइट्स वॉच ने आज यह जानकारी दी।
रिपोर्ट में कहा गया कि चीनी अधिकारियों ने एक टू-टियर व्यवस्था बनाई है। पहली व्यवस्था देश के जातीय बहुसंख्यकों यानी हान समुदाय के लिए है और दूसरी व्यवस्था उन क्षेत्रों के लिए है, जहां देश के तिब्बती मूल के लोग और मुस्लिम अल्पसंख्यक रहते हैं। यह दूसरी व्यवस्था कहीं ज्यादा जटिल है।
ह्यूमन राइट्स वॉच में चीन की निदेशक सोफी रिचर्डसन ने कहा, ‘‘यदि आप देश के ऐसे हिस्से में रहने वाले धार्मिक अल्पसंख्यक हैं, जहां अधिकतर लोग अल्पसंख्यक हैं, तो आपके लिए पासपोर्ट हासिल करना लगभग नामुमकिन है।’’
चीन के अधिकतर हिस्सों में पासपोर्ट 15 दिन के भीतर जारी हो जाना चाहिए और यदि इसमें देरी होती है तो अधिकारियों को आवेदक को इसकी जानकारी देनी पड़ती है। लेकिन तिब्बत और शिनजियांग में, जहां तुर्की भाषी मुस्लिम अल्पसंख्यक यानी उइगर समुदाय के एक करोड़ लोग रहते हैं, वहां अधिकारी पासपोर्ट आवेदन के लिए पुराने तरीके का इस्तेमाल करते हैं। इस तरीके में अपेक्षाकृत अधिक दस्तावेजों और कई बार तो राजनीतिक जांच की भी जरूरत होती है।
रिपोर्ट के अनुसार, वर्ष 2012 में तिब्बत के चांग्दू प्रांत में (तिब्बती भाषा में चम्डो) सिर्फ दो पासपोर्ट जारी किए गए थे। जबकि यहां की जनसंख्या 6.5 लाख है। पूरे तिब्बत के लिए आंकड़े उपलब्ध नहीं हो सके।