चीन में प्रवासी मजदूरों की जिंदगी का असर किस तरह उनके बच्चों पर पड़ रहा है। इस बारे में एक ताजा रिपोर्ट सामने आई है। रिपोर्ट के अनुसार चीन में करीब 10 करोड़ बच्चें अपने मां-बाप के बिना जीने को मजबूर हैं। देश के बच्चों की कुल आबादी का एक तिहाई भाग बिना मां-बाप के देखरेख के पल रहा है क्योंकि उनके मां बाप काम के सिलसिले में दूसरे शहरों में रहने को मजबूर हैं।

बीजिंग विश्वविद्यालय की प्रोफेसर और प्रवासी मजदूरों की समस्याओं पर शोध कर रही सोंग यिनगुई का कहना है कि देश के सामाजिक तानेबाने के लिए यह बड़ी समस्या बन चुकी है। चीन ने देश के वंचित, गरीब तबके के लिए एक विस्तृत सर्वे रिपोर्ट बनाई है जिसमें यह तथ्य निकल कर सामने आए हैं। सोंग ने पिछले शनिवार एक सेमिनार में बोलते हुए कहा कि देश के ग्रामीण इलाकों में 6 करोड़ बच्चे अपने मां-बाप के बिना रहने को मजबूर हैं। चीन के सरकारी आंकड़ों के अनुसार देश में पच्चीस करोड़ से ज्यादा अप्रवासी मजदूर हैं। जिनकी संख्या 2030 तक तीस करोड़ से ज्यादा होने की उम्मीद है। उत्पादन में चीन को विश्व का अग्रणी देश बनाने में इन प्रवासी मजदूरों का सबसे बड़ा हाथ है।

इन लोगों की मेहनत के चलते ही चीन विश्व की दूसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था बनी हुई है। रिपोर्ट की अनुसार इनके बच्चें या तो इनके बूढ़े मां-बाप के साथ रहते हैं या फिर पारिवारिक मित्रों के। फरवरी में चीन सरकार ने एक सर्कुलर जारी कर के कहा था कि 2020 तक इन बच्चों की संख्या में कमी लाने की कोशिश की जायेगी।