जोहानिसबर्ग में 22 से 24 अगस्त तक 15वें ब्रिक्स शिखर सम्मेलन का आयोजन किया जा रहा है, जिसमें हिस्सा लेने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जाएंगे। इस बैठक में चीनी राष्ट्रपति शी जिनपिंग भी जाएंगे और ज्यादा चर्चा इस बात की है कि क्या दोनों नेताओं की द्विपक्षीय बैठक होगी? दोनों देशों के राजनयिक इस बारे में चुप हैं। ब्रिक्स देशों (ब्राजील-रूस-भारत-चीन-दक्षिण अफ्रीका) की यह बैठक कोविड-19 के बाद पहली भौतिक उपस्थिति में होने वाली बैठक (In Person Summit) होगी।

इससे पहले शंघाई सहयोग संगठन (SCO) का वार्षिक शिखर सम्मेलन चार जुलाई को आयोजित की गई, जिसकी मेजबानी भारत ने की। इसके साथ ही दक्षिण अफ्रीका ने चार से छह जुलाई तक ब्रिक्स (ब्राजील, रूस, भारत, चीन, दक्षिण अफ्रीका) की शेरपा बैठक की मेजबानी की। दोनों बैठकों में एक बात समान थी- अपने-अपने गुटों का विस्तार। ब्रिक्स में भारत का एजंडा साफ है। भारत का ध्यान राष्ट्रीय मुद्रा को मजबूत करने पर है। दूसरे, ब्रिक्स की सदस्यता चाहने वाले अधिकांश देशों के चीन के साथ मजबूत संबंध हैं, लेकिन भारत के साथ नहीं। ब्रिक्स का संभावित विस्तार इसे एससीओ के समान चीन-प्रभुत्व वाला मंच बनाता है।

भारत और चीन

पिछले दिनों चीन के विदेश मंत्रालय ने एक बयान जारी किया। इसमें कहा कि पिछले साल बाली में जी20 सम्मेलन के दौरान चीनी राष्ट्रपति शी जिनफिंग और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के बीच संबंधों को स्थिर करने के लिए एक सहमति बनी थी। दिलचस्प है कि तब भारत की ओर से जो बयान जारी किया गया था जिसमें मोदी और जिनफिंग की मुलाकात का जिक्र ही नहीं था। हालांकि बाद में विदेश मंत्रालय ने इस बात पर मुहर लगाई कि दोनों नेताओं के बीच बातचीत हुई थी। तभी से कूटनीतिक हलकों में पूछा जा रहा है कि क्या चीन भारत के साथ रिश्तों को सहज दिखाने की कोशिशें कर रहा है?

हाल में भारत और चीन के बीच सीमा विवाद को लेकर सैन्य कमांडर स्तरीय 19वीं दौर की बैठक के बाद जारी बयान में ‘सकारात्मक’, ‘रचनात्मक’ और ‘गहन’ जैसे शब्दों के इस्तेमाल कई संकेत देते हैं। इससे पहले 18 दौर की बैठकों के बाद जारी हुए बयानों में ऐसे शब्दों का इतना इस्तेमाल नहीं हुआ था। दरअसल, जोहानिसबर्ग में वार्ता होने का मसला पेचीदा है। बाली में जिनपिंग-मोदी मुलाकात होने के करीब 10 महीने बाद भी चीन की ओर से ऐसे कदम नहीं उठाए गए, जिससे कि संबंध सामान्य होने की दिशा में आगे बढ़ पाएं। यही कारण है कि भारत की ओर से हड़बड़ी नहीं जताई जा रही।

हड़बड़ी क्यों

कुछ वर्षों में भारत के कूटनीतिक कद में खासा इजाफा हुआ है। अपनी समान दूरी वाली विदेश नीति की वजह से उसकी बात हर वैश्विक मंच पर सुनी जाती है। वहीं, अमेरिका के साथ भारत की बढ़ती करीबी भी चीन को काफी समय से असहज कर रही है। पिछले एक साल से चीन यह जताने की कोशिश में लगा है कि सीमा पर सब कुछ ठीक है। इसके पीछे कई वजहें हैं। इसमें अमेरिका से दबाव के बीच आर्थिक और आंतरिक मोर्चे की चुनौतियां शामिल हैं। ऐसे में चीन ये जानता है कि भारत के साथ कूटनीति के स्तर पर नकारात्मकता से उसके हित नहीं सधेंगे।

एससीओ की कूटनीति

एससीओ बैठक में ईरान सदस्य बन गया और बेलारूस 2024 में शामिल होने के लिए तैयार है। ब्रिक्स बैठक में भी सदस्यता को वर्तमान संख्या पांच से आगे बढ़ाने पर ध्यान केंद्रित किया गया। भारत ने एससीओ में ईरान की सदस्यता का स्वागत किया और इस बात पर ध्यान केंद्रित किया कि यह संभवत: चाबहार बंदरगाह और अंतरराष्ट्रीय उत्तर-दक्षिण परिवहन गलियारे (INSTC) जैसी संपर्क पहल को कैसे मजबूत कर सकता है। हालांकि, भारत ने ब्रिक्स के विस्तार को लेकर सावधानी बरती है। एक महीने पहले विदेश मंत्री एस जयशंकर ने ब्रिक्स के विस्तार को प्रगति पर काम बताया था और कहा था कि भारत इसे सकारात्मक इरादे और खुले दिमाग से देख रहा है

Brics Summit | India | PM Visit To SA |
पूर्व सचिव विदेश मंत्रालय प्रीति सरन (बाएं) और पूर्व राजनयिक पिनाक रंजन चक्रवर्ती। (दाएं)

क्या कहते हैं जानकार

बहुपक्षवाद और बदलती वैश्विक व्यवस्था के प्रति उत्तरदायी एक प्रभावी संस्थागत तंत्र का प्रस्ताव करते हुए भारत पिछले दशक में अपने द्विपक्षीय संबंधों को मजबूत करने पर भी ध्यान केंद्रित करने के लिए आगे बढ़ा है

  • प्रीति सरन, पूर्व सचिव,
    विदेश मंत्रालय

बहुपक्षीय मंचों पर बातचीत करते समय सीमा और पड़ोस में चीन द्वारा उत्पन्न सुरक्षा खतरा हमेशा भारत की प्राथमिकता रहेगी। यह पश्चिमी और लोकतांत्रिक देशों को अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भारत का पसंदीदा भागीदार बनाता है।

  • पिनाक रंजन चक्रवर्ती,
    पूर्व राजनयिक

तीन मुद्दे

ब्रिक्स, तीन एससीओ सदस्यों – भारत, चीन और रूस के साथ, एक समान तस्वीर प्रस्तुत करता है। ब्रिक्स के भीतर भारत के लिए चिंता के तीन मुद्दे हैं।

  • सबसे पहले, विस्तार के संबंध में, भारत मौजूदा सदस्यों की केवल सिफारिशों के बजाय अच्छी तरह से परिभाषित मानदंड स्थापित करने पर जोर दे रहा है।
  • दूसरे, विदेश मंत्री एस जयशंकर ने ब्रिक्स मुद्रा को लेकर चल रही अटकलों पर विराम लगा दिया और कहा कि हमारा ध्यान राष्ट्रीय मुद्रा को मजबूत करने पर है।
  • तीसरे, ब्रिक्स की सदस्यता चाहने वाले अधिकांश देशों के चीन के साथ मजबूत संबंध हैं, लेकिन भारत के साथ नहीं।