भाजपा नेता और पूर्व राज्य सभा सदस्य सुब्रमण्यम स्वामी ने यूक्रेन की जमीन पर रूस के कब्जे की आलोचना नहीं करने को मोदी सरकार की भारी चूक बताई है। उन्होंने ट्वीट करके कहा है कि इससे नई दिल्ली ने पाकिस्तान और चीन के भारतीय भूमि पर कब्जे को लेकर अंतरराष्ट्रीय स्तर पर अपनी आवाज को कमजोर कर लिया है। उन्होंने टेलीग्राफ में छपी संपादकीय का हवाला देते हुए कहा कि इस मुद्दे पर तटस्थता का रुख गलत है। भारत को रूस की आलोचना करनी चाहिए थी। भाजपा नेता सुब्रमण्यम स्वामी लगातार मोदी पर हमलावर बने हुए हैं। अपने ट्वीट में उन्होंने लिखा, “भारत का तटस्थता का रुख गलत है।”

संपादकीय में कहा गया, “यूक्रेन पर रूस के हमले की शुरुआत होने के बाद पीएम मोदी ने अपने रुखे संदेश में रूस के राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन से कहा था कि यह समय युद्ध का नहीं है। इसके ठीक पंद्रह दिन बाद भारत ने यूक्रेन की भूमि हड़पने पर रूस की निंदा करने से इनकार कर दिया।”

कहा, “कूटनीति में दो सप्ताह का समय काफी होता है। पिछले शनिवार को भारत ने संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में चार यूक्रेनी प्रांतों के कुछ हिस्सों पर रूस के कब्जे की आलोचना करने के लिए हुई वोटिंग से अलग रहा, जिसे व्यापक रूप से सैन्य कब्जे के तहत आयोजित नकली जनमत संग्रह के रूप में देखा जा रहा है।” भारत ने बार-बार रूस की आलोचना करने वाले संयुक्त राष्ट्र के वोटों से परहेज किया है, तब भी जब न्यूयॉर्क में उसके शीर्ष राजनयिकों ने स्पष्ट कर दिया है कि नई दिल्ली युद्ध से नाखुश है। वोट देने में नई दिल्ली की अनिच्छा यह बताती है कि यूक्रेन संघर्ष पर भारत की द्विपक्षीय स्थिति बरकरार है।

यूक्रेन के चारों प्रांतों को अपने देश में विलय के पत्र पर हस्ताक्षर कर चुके हैं रूसी राष्ट्रपति

रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन ने यूक्रेन के चार प्रांतों का रूस में विलय करने संबंधी कानून पर बुधवार को हस्ताक्षर कर दिया। इस कदम से अंतरराष्ट्रीय कानून की अवहेलना कर किए गए विलय को अंतिम रूप मिल गया है। हालांकि, रूसी सेना विलय किए गए यूक्रेनी क्षेत्रों पर नियंत्रण हासिल करने के लिए अब भी संघर्ष कर रहे हैं। विलय को अंतिम रूप देने संबंधी कानून को रूसी सरकार की एक वेबसाइट पर बुधवार सुबह प्रकाशित किया गया।

इस हफ्ते की शुरुआत में रूसी संसद के दोनों सदनों ने भी इस पर मंजूरी दे दी थी

इस हफ्ते की शुरुआत में रूसी संसद के दोनों सदनों ने दोनेत्सक, लुहान्स्क, खेरसॉन तथा जापोरिज्जिया क्षेत्रों को रूस का हिस्सा बनाने से जुड़ी संधियों को मंजूरी दी थी। चारों प्रांतों में कथित जनमत संग्रह के बाद इस संधि पर मुहर लगा दी गई थी। इस जनमत संग्रह को यूक्रेन और उसके पश्चिमी सहयोगियों ने अवैध बताकर खारिज कर दिया है।