बांग्लादेश की सियासत का रुख पूरी तरह बदल चुका है। प्रमुख विपक्षी दल जमात-ए-इस्लामी के ऊपर लगी पाबंदी भी हट गई है। शेख हसीना सरकार ने जमात पर बैन लगाया था और पार्टी पर आरोप लगाया था कि उसके सदस्य चरमपंथ को बढ़ावा दे रहे हैं। इस दौरान जमात के कई नेताओं को फांसी भी दी गई थी। अब जमात के चीफ डॉ. शफीकुर रहमान ने कहा है कि उनकी पार्टी बदले की राजनीति नहीं करेगी और उन्होंने उन सभी लोगों को माफ कर दिया है जो जमात पर राजनीतिक तौर पर अत्याचार करने में शामिल थे।
क्या बोले जमात-ए-इस्लामी के अमीर?
ढाका ट्रिब्यून की खबर के मुताबिक जमात-ए-इस्लामी के अमीर (चीफ) डॉ. शफीकुर रहमान ने मीडिया से बात करते हुए कहा कि वे प्रतिशोध और बदले की राजनीति में विश्वास नहीं रखते हैं और उन्होंने उन लोगों को माफ कर दिया है जिन्होंने उन पर राजनीतिक रूप से अत्याचार किया है।
डॉ. शफीकुर रहमान ने कहा, “हम सुधार की राजनीति में विश्वास करते हैं। हालांकि अगर कोई पीड़ित या पीड़ित का परिवार कानूनी सहारा लेता है, तो हम उनका समर्थन करेंगे। एक पार्टी के तौर पर हम बदला नहीं लेंगे। हम आदर्श लोकतंत्र में विश्वास करते हैं।” जमात प्रमुख ने कहा कि 15 साल तक उनकी पार्टी के लोगों पर अत्याचार किया गया इसलिए वह जनता के बीच आकर ठीक तरह से काम नहीं कर सके।
शेख हसीना सरकार ने जमात पर उग्रवादी और आतंकवादी संगठन होने का आरोप लगाते हुए कार्रवाई की थी और 1971 के मुक्ति संग्राम के दौरान किए गए युद्ध अपराधों के आरोपों के तहत इसके कई शीर्ष नेताओं को फांसी पर लटका दिया था या जेल में डाल दिया था। जमात को 2013 में इस आधार पर चुनाव लड़ने से रोक दिया गया था कि इसके चार्टर ने धर्मनिरपेक्षता का विरोध करके बांग्लादेश के संविधान का उल्लंघन किया है। जमात-ए-इस्लामी की छात्रा शाखा को भी बांग्लादेश में काफी मजबूत माना जाता है।
