Bangladesh News: बांग्लादेश की सियासत में अपने तीखे भाषणों और दृढ़ रवैये के लिए ‘अग्नि कन्या’ के नाम से पहचाने जाने वाली मतिया चौधरी का बुधवार को निधन हो गया। बांग्लादेश के लोगों के बीच में उनकी पहचान एक ईमानदार और सादगी पसंद नेता के तौर पर थी। बीती पांच अगस्त को शेख हसीना के देश छोड़ने के बाद जब आवामी लीग के ज्यादातर नेता देश छोड़कर भाग गए या छिप गए, तब मतिया चौधरी अपने घर पर ही बनी रहीं।
बांग्लादेश की न्यूज वेबसाइट्स के अनुसार, पिछले कुछ दिनों से उनकी तबीयत खराब चल रही थी और इसी वजह से उन्हें अस्पताल में भर्ती करवाया गया था। भारत की आजादी से पहले साल 1942 में जन्मीं मतिया चौधरी के पिता एक पुलिस अधिकारी थे। वह अपने छात्र जीवन में लेफ्ट विंग की राजनीति से जुड़ गई थीं और कई बार जेल गईं। बांग्लादेश की आजादी के मूवमेंट से जुड़ने की वजह से कई बार उनके पिता को परेशानी का सामना करना पड़ा।
आवामी सरकार में रहीं मंत्री
मतिया चौधरी की शादी बज़लुर रहमान से हुई थी। वह एक पत्रकार थे। मतिया अपने सियासी करियर में शेरपुर- 2 निर्वाचन क्षेत्र से छह बार बांग्लादेश की संसद पहुंचीं। वह साल 1996, 2009 और 2013 में आवामी सरकार के दौरान बांग्लादेश की कृषि मंत्री बनाई गईं। साल 2013 और साल 2024 में वह बांग्लादेशी संसद की डिप्टी लीडर बनाई गईं।
शेख हसीना की सरकार गिरने के बाद जब बांग्लादेश के राष्ट्रपति ने संसद भंग की, तब भी वह संसद की डिप्टी लीडर थीं। छात्र जीवन के दौरान वह बांग्लादेश की कम्युनिस्ट पार्टी बांग्लादेश स्टूडेंट्स यूनियन की कार्यकर्ता थीं। वह साल 1963 में ढाका ईडन गर्ल्स कॉलेज स्टूडेंट्स यूनियन की वाइस प्रेजिडेंट और साल 1964 से 1965 तक ढाका यूनिवर्सिटी सेंट्रल स्टूडेंट्स यूनियन (DUCSU) की महासचिव चुनी गईं। साल 1965 में वह बांग्लादेश स्टूडेंट्स यूनियन की अध्यक्ष बनीं।
बांग्लादेश की न्यूज वेबसाइट्स के अनुसार, बांग्लादेश की आजादी से पहले से मतिया चौधरी और शेख हसीना परिवार के अच्छे संबंध थे। वह साल 1967 में आवामी लीग का हिस्सा बनीं। साल 1967 से 1969 के बीच उन्हें एंटी अय्यूब मूवमेंट के दौरान जेल में डाल दिया गया। रिपोर्ट्स में यह भी बताया गया है कि वह हर दिन सुबह-सुबह अपने निर्वाचन क्षेत्र के लोगों से मिलकर उनकी समस्याएं सुनती थीं। उनका कोई बच्चा नहीं था।