बलूचिस्तान में चीनी दखल का बलूच नागरिकों ने विरोध किया है। पाकिस्तान के क्वेटा में सड़कों पर बलूच नागरिकों ने हिंसक प्रदर्शन करते हुए पाकिस्तान विरोधी और चीन विरोधी नारेबाजी की है। प्रदर्शन करनेवाले सैकड़ों बलूच नागरिकों ने सड़क पर आगजनी की है। ये सभी बलूचिस्तान में चीनी-पाकिस्तानी इकॉनोमिक कॉरिडोर का विरोध कर रहे हैं। इसके साथ ही इन लोगों ने बलूचिस्तान की आजादी के भी नारे लगाए।

गौरतलब है कि बलूची राष्ट्रवादी अपने जायज अधिकारों के लिए वहां संघर्ष कर रहे हैं। बलूचिस्तान प्राकृतिक संसाधनों से मालामाल है। वहां यूरेनियम, पेट्रोल, प्राकृतिक गैस, तांबा और कई अन्य धातुओं के भंडार हैं। पाकिस्तान की कुल प्राकृतिक गैस का एक तिहाई यहीं से निकलता है। सुई के स्थान पर जो गैस पैदा होती है उसकी आपूर्ति पूरे पाकिस्तान में होती है लेकिन प्राप्त रायल्टी का बहुत थोड़ा हिस्सा ही केन्द्रीय सरकार बलूचिस्तान को देती है।

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पाकिस्तान की इस नीति का बलूची राष्ट्रवादी नेता विरोध कर रहे हैं। बलूचियों को कहना है कि पाक संविधान के 18वें संशोधन के तहत उन्हें विशेष अधिकार प्राप्त हैं जबकि हकीकत में प्राकृतिक संसाधनों पर केन्द्र का अधिकार बना हुआ है। बलूचियों का कहना है कि बलूचिस्तान में अधिकांश सरकारी कर्मचारी या अफसर पंजाब प्रांत से संबंध रखते हैं, इसलिए बलूचियों को नौकरी नहीं मिल पाती।

दरअसल, बलूच अलगाववादियों और पाक सरकार के बीच इस विवाद की शुरूआत पाकिस्तान के निर्माण के कुछ समय बाद ही हो गई थी। 15 अगस्त 1947 को बलूचिस्तान ने आजादी का ऐलान भी कर दिया था लेकिन 1948 में उन्हें दबाव के तहत पाक के साथ मिलना पड़ा अप्रैल 1948 में पाक सेना ने मीर अहमद यार खान को जबरन अपना राज्य कलात छोड़ने पर मजबूर कर दिया। उनसे कलात की आजादी के खिलाफ एग्रीमेंट साइन करवा लिए गए लेकिन मीर अहमद के भाई प्रिंस अब्दुल करीम खान नहीं चाहते थे कि बलूचिस्तान का 23 प्रतिशत क्षेत्र पाकिस्तान के अधीन हो। अब जब प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने उनकी तरफदारी की है तो बलूच नेताओं में फिर से आजादी को लेकर एक जुनून पैदा हुआ है।

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