मानसिक बीमारी से जूझ रहे लोगों के इलाज में नई क्रांति आ सकती है। दुनिया की नामी चर्चित कंपनी टेस्ला के सीईओ एलन मस्क ने कंपनी की नई योजना का ऐलान करते हुए कहा है कि उनकी कंपनी अब इंसानों के दिमाग में इन्स्टॉल होने वाले कम्प्यूटर चिप बनाएगी। इस चिप के जरिए इंसानों में सुपरह्युमन इंटेलिजेंस को सक्रिय करने के लिए किया जाएगा।

एलन के मुताबिक उनकी कंपनी न्यूरालिंक ने ब्रेन कम्प्यूटर इंटरफेस टेक्नोलॉजी की टेस्टिंग शुरू कर दी है। एलन के मुताबिक यह डिवाइस लकवाग्रस्त या न्यूरोलॉजिकल डिजॉर्डर से ग्रस्त मरीजों के लिए लाभदायक होगा। इसके जरिए उनके मानसिक विकारों को दूर किया जा सकेगा।

न्यूरो सर्जरी के क्षेत्र में यह पहला मौका नहीं है जब दिमाग को कम्प्यूटर से जोड़ने की कोशिश हुई हो। इससे पहले साल 2014 में 21 जून को मध्य अमेरिका के अटलांटा में 67 वर्ष के फिल केनेडी नाम के एक न्यूरोलॉजिस्ट ने अपने ही दिमाग में इलेक्ट्रॉड्स इम्प्लांट कराने की कोशिश की थी, ताकि उसे कम्प्यूटर से जोड़ा सके लेकिन ऐसा कर उन्होंने अपनी ही जिंदगी से बड़ा खतरा मोल लिया था। आज तक फिल केनेडी अचेत अवस्था में पड़े हैं।

दरअसल, केनेडी इलेक्ट्रॉड्स को दिमाग में इम्प्लांट कर दिमागी डेटा एकट्ठा करना चाहते थे। इसके लिए उन्होंने 30 हजार डॉलर खर्च कर अपने दिमाग की सर्जरी करवाई थी। उनकी ब्रेन सर्जरी करने वाले डॉक्टर जोएल करवेन्टस ने करीब साढ़े 11 घंटे तक उनकी सर्जरी की। न्यूयॉर्क टाइम्स को डॉ. जोएल ने बताया था, “फिल कैनेडी एक क्षण के लिए चश्मे को घूरता रहा। फिर उसकी टकटकी छत तक और टेलीविजन पर चली गई। उसके बाद वह “उह … उह… अई … अईई कहने लगा। वह कुछ देर बाद फिर हकलाया, “… अईई … अईई … अई।”

डॉ जोएल के मुताबिक केनेडी ने जोर देकर अपने दिमाग को जोड़ने की कोशिश की जैसे कोई गले में अटके चीज को निगलने के लिए जोर लगाता है लेकिन ऐसे नहीं कर सका। बतौर जोएल केनेडी ने कुछ देर के बाद कलम से कागज पर कुछ लिखने की कोशिश की लेकिन वह टेढ़ी-मेढ़ी लकीरों के अलावा कुछ नहीं लिख सके। जोएल के मुताबिक, उन्हें पछतावा हो रहा था, उन्हें यह सर्जरी नहीं करनी चाहिए थी क्योंकि केनेडी बेहोश हो चुके थे।

दरअसल, कैनेडी ने 1980 के बाद के दशक में अपने कुछ सहयोगियों के साथ मानव मस्तिष्क-कंप्यूटर इंटरफेस विकसित किया था। साफ शब्दों में कहा जाय तो इस सिस्टम के तहत दिमाग के अंदर महीन और बारीक तार एक कंप्यूटर से जुड़ा होता है। यह सिस्टम गंभीर रूप से दिमागी तौर पर पंगु होने की अनुमति देने वाले पहल के रूप में काम करता है। उसका उपयोग कर मस्तिष्क को एक कंप्यूटर कर्सर तक ले जाया जा सकता है। केनेडी के इस अनूठे प्रयोग की तब बड़ी चर्चा हुई थी। एक अमेरिकी मैग्जीन ने केनेडी को तब ‘द फादर ऑफ साइबोर्ग’ कहा था।

इस प्रोजेक्ट के पीछे कैनेडी का उद्देश्य एक स्पीच डिकोडर-सॉफ्टवेयर का निर्माण करना है, जो दिमागी सिग्नल को पाकर उसे शब्दों में बदल कर आवाज निकाल सके। ऐसा होने पर लकवाग्रस्त या न्यूरोलॉजिकल डिजॉर्डर से आवाज खो चुके लोगों के बोलने की संभावना बन सकती थी। हालांकि, उनकी छोटी जॉर्जिया कंपनी न्यूरल सिग्नल द्वारा किया जा रहा यह काम रुक गया था क्योंकि अमेरिकी सरकार ने फंड देना रोक दिया था। बावजूद इसके केनेडी अपने खर्चे से इस मुहिम में जुटे थे।