श्रीलंकाई संसद में विद्युत संशोधन विधेयक (Electricity Amendment Bill) पर चर्चा के दौरान विपक्ष और कुछ ट्रेड यूनियनों की ओर से अडानी ग्रुप का विरोध देखने को मिला। विपक्ष का आरोप है कि अडानी ग्रुप के सहयोग से उत्तरी तट पर 500 मेगावॉट का पवन बिजली संयंत्र (Wind Power Plant) लगाने के लिए सरकार से सरकार के बीच करार 1989 के कानून में संशोधन की अहम वजह है।

विपक्ष की ओर से विरोध के बावजूद भी सरकार ने श्रीलंका बिजली अधिनियम में संशोधनों को पारित कर दिया। 225 सांसदों वाली श्रीलंकाई संसद में 120 वोट इस संशोधन के पक्ष में पड़े जबकि 36 वोट इसके विपक्ष में डाले गए और 13 सांसदों ने इस प्रस्ताव को वोट नहीं दिया। वहीं, इस संशोधन का सीलोन इलेक्ट्रिसिटी बोर्ड (CEB) से जुड़ी ट्रेड यूनियनों की ओर से विरोध देखने को मिल रहा है। सीलोन इलेक्ट्रिसिटी बोर्ड का कर्मचारियों की ओर से एक नोटिस जारी किया है, जिसमें कहा गया कि अगर ये संशोधन कानून बनता है तो वे इसके खिलाफ विरोध प्रदर्शन करेंगे।

सीईबी की इंजीनियर यूनियन का कहना है कि ये संशोधन अडानी ग्रुप को बड़ी रिन्यूएबल एनर्जी डील देने के लिए किया जा रहा है। वहीं, एसजेबी का कहना है कि 10 मेगावॉट की क्षमता वाले ऊर्जा प्रोजेक्ट को टेंडर के जरिए ही दिया जाना चाहिए, लेकिन ज्यादातर सांसदों ने इसके खिलाफ वोट किया है।

बता दें, इस बिजली अधिनियम में हुए संशोधन का उद्देश्य देश में तेजी से नई पीढ़ी के रिन्यूएबल एनर्जी प्लांट और ओवरहेड ट्रांसमिशन लाइन्स बिछाना है। ऊर्जा मंत्री कंचना विजेसेकारा ने कहा कि “श्रीलंका को दैनिक बिजली कटौती का सामना करना पड़ रहा है क्योंकि उसके पास बिजली पैदा करने के लिए ईंधन आयात करने के लिए डॉलर नहीं है। रिन्यूएबल एनर्जी का योगदान देश की ऊर्जा आपूर्ति में बेहद कम है क्योंकि सीईबी इंजीनियरों के प्रतिरोध के कारण कई परियोजनाओं में देरी हुई है।”

गौरतलब है कि श्रीलंका इन दिनों आर्थिक संकट से गुजर रहा है। विदेशी मुद्रा भंडार खत्म होने की वजह से श्रीलंका ने कच्चा तेल, दवाइयां और जरूरत की चीजें तक मांगना बंद कर दिया है। देश में बड़े स्तर पर कोयले की भी कमी है, जिसके कारण देश के लोगों को कई घंटों की बिजली कटौती का सामना करना पड़ रहा है।