बांग्लादेश में डिजिटल सुरक्षा कानून का उल्लंघन करने के आरोप में गिरफ्तार लेखक एवं स्तंभकार की जेल में मौत हो गई। आलोचकों ने इस कानून को अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का गला घोंटने वाला बताया है। 53 वर्षीय मुश्ताक अहमद को सोशल मीडिया पर टिप्पणी करने को लेकर पिछले साल मई में गिरफ्तार कर लिया गया था। उन्होंने सोशल मीडिया पोस्ट और कार्टून के जरिए सरकार की आलोचना की थी।

मुश्ताक अहमद ने कोरोना से निपटने के तरीकों को लेकर बांग्लादेश की पीएम शेख हसीना की सरकार की आलोचना की थी। अहमद की जमानत याचिका 6 बार नामंजूर की गई थी। हालांकि, अभी यह स्पष्ट नहीं हो पाया है कि मुश्ताक अहमद की मौत कैसे हुई। जिस जेल में अहमद बंद थे, उसके वरिष्ठ अधीक्षक मोहम्मद गियास उद्दीन ने कहा कि लेखक गुरुवार शाम को बेहोश हो गए थे और उन्हें जेल के अस्पताल में ले जाया गया था। लेकिन वहां उन्हें मृत घोषित कर दिया गया।

मुश्ताक अहमद के चचेरे भाई नफीसुर रहमान ने कहा कि पोस्टमार्टम के दौरान वह खुद अस्पताल में मौजूद थे। नफीसुर पेशे से चिकित्सक हैं। उनका कहना है कि मुश्ताक के शरीर पर चोट के निशान तो नहीं थे, लेकिन उनका दिल असामान्य तरीके से बड़ा हो गया था। जब वह बेसुध हुए तब उनका ब्लक प्रैशर काफी कम था।

बांग्लादेश नेशनल ह्यूमन राइट्स कमीशन के पूर्व चेयरमैन और यूनिवर्सिटी ऑफ ढाका में कानून पढ़ाने वाले मिजानुर रहमान ने कहा कि इस कानून के जरिए फ्री स्पीच का गला घोंटा जा रहा है। उनका कहना है कि मुश्ताक ने केवल सरकार की आलोचना की थी। इसके लिए उन्हें जेल में डालना सरासर गलत था। उनका कहना है कि यह राष्ट्रद्रोह नहीं है। उनकी मृत्यु असहनीय घटना है। उनकी मांग है कि बांग्लादेश सरकार को यह कानून रद्द करना चाहिए। पुलिस का आरोप है कि अहमद ने राष्ट्र की छवि धूमिल करने की कोशिश की और भ्रम फैलाया।

गौरतलब है कि 2014 के डिजिटल सुरक्षा कानून के तहत बांग्लादेश के मुक्ति संग्राम, इसके संस्थापक शेख मुजीबुर रहमान, राष्ट्रगान या राष्ट्रध्वज के खिलाफ किसी तरह का दुष्प्रचार करने पर 14 साल तक की कैद की सजा का प्रावधान किया गया है। सामाजिक सौहार्द्र बिगाड़ने या लोक व्यवस्था में विघ्न डालने पर 10 साल तक की कैद की सजा का भी इसमें प्रावधान किया गया है।