हिंदू धर्म में वास्तु शास्त्र अपना विशेष महत्व रखता है। वास्तु शास्त्र के अनुसार घर पर रखी हुई प्रत्येक वस्तु का व्यक्ति के जीवन पर कुछ सकारात्मक या नकारात्मक प्रभाव पड़ता है। इसके साथ ही वास्तु शास्त्र में इस बात का भी विस्तार से जिक्र किया गया है कि घर का निर्माण कैसे होना चाहिए। घर का मुख्य द्वार, किचन, स्नानघर इत्यादि की भी सही दशा व दिशा बताई गई है। आपने कई लोगों को ऐसा कहते हुए सुना होगा कि घर का मुख्य द्वार दक्षिण दिशा में नहीं होना चाहिए। लेकिन क्या आप जानते हैं कि ऐसा क्यों कहा जाता है और वास्तु शास्त्र इसको कितना सही या गलत मानता है। यदि नहीं तो आज हम आपको इसी बारे में विस्तार से बताने वाले हैं।
कहते हैं कि दक्षिण दिशा में दक्षिणी ध्रुव स्थित होता है और इस ध्रुव में बहुत सारी नकारात्मक ऊर्जा स्थित होती है। इसके अलावा मंगल और यम को दक्षिण दिशा का स्वामी बताया गया है। इसके साथ ही राहु और केतु का भी दक्षिण दिशा पर प्रभाव होता है। ऐसा कहा जाता है कि घर की दक्षिण दिशा में वास्तु दोष होने पर तमाम तरह की परेशानियां खड़ी हो जाती हैं। उस घर के लोगों के बीच काफी कलह होने लगती है और उनका स्वास्थ्य भी बिगड़ने लगता है।
वास्तु शास्त्र में ऐसा कहा गया है कि घर की दक्षिण दिशा में थोड़ा सा भी खाली स्थान नहीं रखना चाहिए। ऐसा ना होने पर घर में नकारात्मकता आती है। इसी हिसाब से वास्तु में घर की दक्षिण दिशा में मुख्य द्वार बनवाने के लिए मना किया कहा है। कहते हैं कि दक्षिण दिशा में घर का मुख्य द्वार होने से उस घर की सुख-शांति चली जाती है। दूसरी तरफ, ऐसी मान्यता है कि मुख्य दरवाजे पर बांसुरी या घोड़े नाल लगा देने से वास्तु दोष समाप्त हो जाता है।
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