लोकतंत्र के सबसे बड़े पर्व यानी लोकसभा चुनावों में जहां सबको मतदान करने का बराबर अधिकार दिया गया है तो वहीं भगवान राम की जन्मभूमि अयोध्या के हनुमान गढ़ी के महंत इस अधिकार से वंचित रह जाते हैं।हालांकि इस गढ़ी ने 18वीं शताब्दी की समाप्ति से पहले ही व्यस्क मताधिकार पर आधारित लोकतंत्र को स्वीकार कर लिया था लेकिन इसके बावजूद भी यहां के महंत वोट नहीं डाल पाते हैं। इसकी क्या वजह है आगे जानते हैं…
अयोध्या के हनुमान गढ़ी में आजादी मिलने से बहुत पहले ही इस लोकतांत्रिक चुनाव प्रणाली को अपना लिया था। लेकिन यहां कि एक ऐसी परंपरा है जो यहां के लोकतांत्रिक ढंग से निर्वाचित सर्वोच्च पदाधिकारी को किसी भी मतदान में वोट देने से रोकती है। यहां की परंपरा है कि इस पद पर बैठे महंत को 52 बीघे के परिसर से शोभा यात्रा के साथ बाहर निकलना होता है। क्योंकि मतदान के दिन इस तरह से बाहर निकलना संभव नहीं हो पाता इसलिए यहां के महंत अपने वोट का इस्तेमाल नहीं कर पाते हैं। हालांकि बहुत से गद्दीनशीनों को इस बात का दुख भी होता है लेकिन वो इस परंपरा के आगे हार मानने पर मजबूर हो जाते हैं।
हालांकि जानकारों के मुताबिक गढ़ी के संविधान में कुछ बदलाव किया जा सकता है जिसके अनुसार मतदान के दिन को अपवाद बनाया जा सकता है। लेकिन इस बात की याद गद्दीनशीनों को चुनाव के समय ही आती है। और चुनाव के समय इस तरह के काम करना संभव नहीं हो पाता है। इसलिए यह परंपरा ऐसे ही बनी रह जाती है।
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क्या है हनुमान गढ़ी का लोकतंत्र:
अयोध्या की हनुमान गढ़ी ने 18वीं शताब्दी के खत्म होने से पहले ही पहले ही वयस्क मताधिकार पर आधारित लोकतंत्र को अपनाकर और जीवन दर्शन के लिए इस संविधान को बनाकर लागू कर दिया था। आपको बता दें कि फारसी में लिखे गये इस संविधान के मुताबिक इसका सर्वोच्च पदाधिकारी गद्दीनशीन कहा जाता है। जो किसी तरह की वंश परंपरा या फिर गुरु-शिष्य परंपरा और किसी उत्तराधिकार से नहीं आता है।