वैदिक ज्योतिष शास्त्र में राहु ग्रह को विशेष स्थान प्राप्ति है। साथ ही राहु को दैत्यों का सेनापति कहा गया है। राहु ग्रह अगर कुंडली में शुभ हों तो ये मनुष्य को भौतिक उपलब्धियां, सांसारिक प्रतिष्ठा, वैभव, प्रशासनिक कार्यों में कुशलता, राजनीति-कूटनीति में सफलता करते हैं। वहीं अगर कुंडली में राहु ग्रह अशुभ स्थिति में विराजमा हों तो यह कालसर्प दोष का निर्माण करते हैं। जिससे मनुष्य को जिंदगी भर संघर्षों का सामना करना पड़ता है। साथ व्यक्ति धनाढ्य परिवार में जन्म लेकर भी विपत्तियों का सामना करता है। आइए जानते हैं आइए जानते हैं राहु ग्रह किस भाव में अच्छा फल देते हैं और किस भाव में बुरा…
राहु देव इस भाव में देते हैं शुभ फल:
ज्योतिष अनुसार अगर राहु अष्टम भाव में हो तो व्यक्ति किसी विशेष उद्देश्य के लिए जन्म लेता है , जो पूर्वजन्म से बाकी है। वहीं छठे भाव का राहु व्यक्ति को खूब सम्पन्न बनता है क्योंकि व्यक्ति ने पूर्व जन्म में काफी धर्म कार्य और दान किया है। दशम भाव का राहु व्यक्ति को ऊंचाई पर पहुचता है परन्तु पारिवारिक सुख नहीं देता है।
राहु ग्रह इस भाव में देते हैं अशुभ फल:
ज्योतिष शास्त्र अनुसार अगर राहु पंचम भाव में हो तो संतान होने में या संतान की तरफ से पीड़ा होती है। अगर राहु नवम भाव में हो तो व्यक्ति धर्म भ्रष्ट होता है, भाग्य साथ नहीं देता। एकादश भाव का राहु व्यक्ति को वैराग्य की और ले जाता है। एकादश भाव का राहु व्यक्ति को वैराग्य की और ले जाता है। साथ ही द्वादश भाव का राहु व्यक्ति को दुर्गुण तथा कुमार्ग पर ले जाता है। हालांकि यहां पर यह देखना जरूरी होता है कि व्यक्ति की जन्मकुंडली में राहु ग्रह की स्थिति क्या है और वह किस ग्रह के साथ विराजमान हैं।
इनके साथ राहु बनाता है राज योग:
अष्ट लक्ष्मी योग: जन्मांग में राहु छठे स्थान में और बृहस्पति केंद्र में हो तो अष्ट लक्ष्मी योग बनता हैं। इस योग के कारण जातक धनवान होता हैं और उसका जीवन सुख शांति के साथ व्यतीत होता हैं। उसकी लाइफ में कभी धन की कमी नहीं होती और जीवन भर सभी भौतिक सुखों का उपभोग करता है।
अशुभ होता है कालसर्प दोष:
कालसर्प दोष: ज्योतिष शास्त्र अनुसार राहु और केतु ग्रहों को किसी भी राशि का स्वामित्व प्राप्त नहीं है। मतलब ये किसी राशि के स्वामी नहीं हैं लेकिन फिर भी ये व्यक्ति के जीवन के बहुत ज्यादा प्रभावित करते हैं। वैदिक ज्योतिष में इन दोनों ग्रहों को पाप ग्रह माना गया है। किसी भी व्यक्ति की कुंडली में जातक की कुंडली में कालसर्प दोष राहु और केतु के कारण ही लगता है। जब किसी की जन्म कुंडली में राहु और केतु के मध्य सभी ग्रह आ जाते हैं तो कालसर्प योग का निर्माण होता है। इस योग के कारक व्यक्ति जिंदगी भर संघर्ष करता है और उसे भाग्य का साथ नहीं मिलता है।