World AIDS Day 2020: एड्स का नाम सुनते ही लोगों के चेहरे की रंगत बदल जाती है। एक्वायर्ड इम्यून डेफ़िसिएन्सी सिंड्रोम यानी AIDS एचआईवी के संक्रमण से होने वाला रोग है जिसमें इंसान की रोगप्रतिरोधक क्षमता बेहद कमजोर हो जाती है। ऐसे में अवसरवादी इन्फेक्शन्स का शरीर पर हमला बढ़ जाता है। अब तक एड्स का प्रमाणिक इलाज सामने नहीं आ पाया है, इस कारण ये एक लाइलाज बीमारी है। बता दें कि हर साल 1 दिसंबर को दुनिया भर में HIV इंफेक्शन के प्रति लोगों को जागरुक करने के उद्देश्य से वर्ल्ड एड्स डे मनाया जाता है। कई लोगों को गलतफहमी है कि एड्स और एचआईवी एक ही स्थिति है। आइए जानते हैं क्या है सच्चाई –
क्या है HIV: ह्यूमन इम्युनो डिफ़िशिएंसी वायरस एक प्रकार का वायरस है जिससे संक्रमित लोगों को एड्स का खतरा होता है। यह वायरस एक व्यक्ति से दूसरे व्यक्ति में खून के जरिये, इंजेक्शन शेयर करने से, तथा संक्रमित प्रेग्नेंट महिला से उसके बच्चे को दूध पिलाने के माध्यम से फैल सकता है। HIV से पीड़ित व्यक्ति को किसी भी बीमारी से उबरने में अत्यधिक समय लग सकता है।
क्या हैं इसके लक्षण: माना जाता है कि एचआईवी संक्रमित रोगियों को करीब 10 साल के बाद एड्स बीमारी अपनी चपेट में लेती है। ऐसे में अगर HIV के लक्षणों को शुरुआती समय में ही पहचान लिया जाए तो शरीर को अधिक नुकसान होने से रोका जा सकता है। बुखार एचआईवी के प्रारंभिक लक्षणों में से एक है। अगर 4 सप्ताह से अधिक समय तक कोई व्यक्ति बुखार से पीड़ित होता है, तो उसे जांच कराने की सलाह दी जाती है। इसके अलावा, रात के समय अधिक पसीना आना, गले में खराश, वोमिटिंग और थकान भी HIV के लक्षण हो सकते हैं।
कब होता है एड्स का खतरा: विशेषज्ञों के अनुसार जब एचआईवी संक्रमण पूरी तरह से शरीर को जकड़ लेता है तब एड्स का खतरा बढ़ जाता है। इसमें लंबा वक्त लगता है, अगर इस दौरान मरीजों का इलाज ठीक तरीके से हो जाए, तो इस गंभीर बीमारी से पीड़ित होने की नौबत नहीं आती है। माना जाता है कि जब इस वायरस के इंफेक्शन के प्रभाव से शरीर का इम्युन सिस्टम पूरी तरह से कार्य करना बंद कर देता है, तो लोग एड्स से पीड़ित हो जाते हैं। इस कारण उनमें रैपिड वेट लॉस, सिरदर्द और कई अन्य परेशानियां देखने को मिल सकती हैं।