टाइप2 मधुमेह से पीड़ित और कॉन्जेस्टिव हर्ट फेल्योर (हृदय गति रुकने) के कारण अस्पताल में भर्ती होने वाले चार में से एक रोगी अगले 18 महीने तक ही जीवित रह पाते हैं। एक नए अध्ययन में यह बात सामने आई है। यह निष्कर्ष मधुमेह और दिल के गंभीर रोग से पीड़ित मरीजों की दशा की भयावहता पर प्रकाश डालता है।

यूनिवर्सिटी ऑफ कनेक्टिकट हेल्थ सेंटर (यूकॉन हेल्थ) के मुख्य शोधकर्ता विलियम बी.व्हाइट ने कहा, “हृदय के गंभीर रोग के साथ टाइप2 मधुमेह के मरीजों पर ज्यादा ध्यान देने की जरूरत होती है, ताकि अगले अटैक को रोका जा सके।”

टाइप2 मधुमेह से पीड़ित लोगों को हृदय रोग की संभावना आम लोगों से अधिक होती है। ऐसा इसलिए होता है, क्योंकि मोटापा तथा अन्य बीमारियां जैसे हाई ब्लड प्रेशर और शरीर में बढ़ा कोलेस्ट्रॉल दोनों बीमारियों को न्योता देता है, लेकिन चिंता वाली बात यह है कि ब्लड शुगर कम करने के लिए ली जाने वाली दवाएं हृदय को गंभीर क्षति पहुंचाती हैं।

यहां तक कि स्वस्थ व्यक्ति को स्वाभाविक तौर पर मिलने वाला इंसुलिन भले ही शरीर पर कोई दुष्प्रभाव नहीं डालता, लेकिन अगर इसे टाइप2 मधुमेह पीड़ित एक दवा के तौर पर लेता है, तो इससे उसके हृदय को क्षति पहुंचती है।

शोध के निष्कर्ष को न्यू ऑर्लियंस में अमेरिकन डायबिटीज एसोसिएशन (एडीए) की सालाना बैठक में प्रस्तुत किया गया और एडीए की पत्रिका ‘डायबीटिज केयर’ में प्रकाशित किया गया।