ठंड के दिनों जोड़ों में दर्द बढ़ने के कई कारण हैं। यूरिक एसिड बढ़ने की वजह से भी जोड़ों में दर्द बढ़ जाता है। सर्दियों के मौसम में अत्यधिक ठंड बढ़ने की वजह से स्नायु रिसैप्टर्स की दर्द सहन करने की क्षमता घट जाती है। इसी वजह से ठंडियों के दिनों में हल्की से भी छोटे लगने पर तेज दर्द का एहसास होता है।
स्वास्थ्य विशेषज्ञों के अनुसार ठंड के कारण ब्लड वेसेल्स सिकुड़ जाती हैं और फलस्वरूप उंगलियों, पंजों, टखनों एवं घुटनों में खून का प्रवाह घटता है, और गठियाग्रस्त शरीर में जोड़ों में दर्द बढ़ने का कुछ हद तक यह कारण बनता है। यूरिक एसिड बढ़ने के कारण जोड़ों, टेंडन, मांसपेशियों और टिश्यूज में इस एसिड के छोटे-छोटे टुकड़ों में क्रिस्टल के रूप में जमा हो जाते हैं।
यूरिक एसिड एक तरह का केमिकल हैं, जो शरीर में प्यूरीन नाम के तत्व के टूटने से बनता है। शरीर में जब यूरिक एसिड का स्तर बढ़ जाता है तो किडनी भी इसे फिल्टर करने में सक्षम नहीं रहती। इसके कारण यह क्रिस्टल्स के रूप में टूटकर हड्डियों के बीच में इक्ट्ठा होने लगता है। मेडिकल टर्म में हाई यूरिक एसिड को हाइपरयूरिसीमिया कहा जाता है।
विटामिन सी का ख्याल रखें: यूरिक एसिड (Uric Acid) की मात्रा को कम करने के लिए अपने डाइट में खट्टे रसदार फल जैसे आंवला, नारंगी, नींबू, संतरा, अंगूर, टमाटर, आदि को शामिल करना चाहिए। यह सभी विटामिन सी के अच्छे स्रोत हैं।
वजन नियंत्रित करें: गठिया रोगियों के लिए यादा वज़न बढ़ने से जोड़ों पर भार बढ़ता है और ऐसे में जोड़ों का दर्द भी बढ़ता है इसलिए कोशिश करें की वजन न बढ़े। इसके अलावा नी सपोर्ट या ब्रेसेज़ का प्रयोग मददगार हो सकता है जिससे उन्हें चलने-फिरने में आसानी होती है।
गुनगुना पानी: सर्दियों में प्यास कम लगती है इसलिए बार-बार पानी पीते रहें जिससे हाइड्रेशन ठीक रहता है। गुनगुना पानी पिएं, यह शरीर का तापमान ठीकठाक बनाए रखता है।
हरी सब्जियां एवं फल: फलों में अमरूद, सेब, केला, बेर, बिल्व व सब्जियों में कटहल, शलगम, पुदीना, मूली के पत्ते, मुनक्का, दूध, चुकंदर, चौलाई, बंदगोभी, हरा धनिया और पालक आदि को अपनी डाइट में शामिल करें। यह सभी विटामिन्स के अच्छे स्रोत हैं।
नियमित व्यायाम करें: सर्दियों में व्यायाम बेहद उपयोगी साबित होता है जिससे जोड़ों को कड़ेपन तथा दर्द से बचाकर रखने में मदद मिलती है। नियमित रूप से स्ट्रैचिंग व्यायाम करें ताकि जोड़ों खासतौर से गर्दन, पीठ, कंधों, कूल्हों, घुटनों और टखनों के जोड़ों के लचीलेपन को बरकरार रखा जा सके।