देश में हाल के सालों में मेडिकल टेस्‍ट को लेकर लोगों में जागरुकता बढ़ी है। इसके चलते लोग सामान्‍य बीमारी होने या ना होने पर भी मेडिकल टेस्‍ट कराते हैं। हाल ही में जारी हुई एक स्‍टडी के अनुसार ज्‍यादातर टेस्‍ट का स्‍वास्‍थ्‍य से कोई लेना-देना नहीं है। नेशनल मेडिकल जर्नल ऑफ इंडिया में छपी स्‍टडी के अनुसार शहरी भारत में होने वाले ज्‍यादातर रूटीन हैल्‍थ चैकअप का स्‍वास्‍थ्‍य से कोई लेनादेना नहीं होता। स्‍टडी के अनुसार डॉ. यश लोखंडवाला ने बताया कि विटामिन डी, विटामिन बी12, टीएसएच, इलेक्‍ट्रोलायट, पीएफटी जैसे टेस्‍ट का कोई औचित्‍य नहीं होता है।”

एक वरिष्ठ डॉक्‍टर ने बताया कि कई अस्‍पताल हैल्‍थ चैकअप कराने को कहते हैं क्‍योंकि यह व्‍यक्ति को भर्ती करने का जरिया होता है। वे किसी हार्मोन या खून के किसी तत्‍व को बढ़ा हुआ देखते हैं और अस्‍पताल में भर्ती होने की सलाह देते हैं। इस स्‍टडी के दौरान मुंबई के आठ अस्‍पतालों और क्लिनिक के 25 हैल्‍थ पैकेज की जांच की गई। ये पैकेज 1650 रुपये से लेकर 59500 रुपये तक के हैं। इंडियन जर्नल ऑफ मेडिकल इथिक्‍स के एडिटर और लिवर सर्जन डॉ. संजय नगराल का कहना है कि काफी समय से ऐसे सबूत मिल रहे थे कि हैल्‍थ चैकअप से स्‍वास्‍थ्‍य पर कोई असर नहीं पड़ता है।

उन्‍होंने बताया, ”बीमारी को पकड़ने की बात तो छोडि़ए हैल्‍थ चैकअप से और ज्‍यादा टेस्‍ट का रास्‍ता खुल जाता है। कई मरीज उनके पास गाल ब्‍लेडर हटाने के ऑपरेशन के लिए आते हैं। उनका कहना होता है कि हैल्‍थ चैकअप में गाल स्‍टोन दिखे थे और उन्‍हें हटाने की सलाह दी गई है। जब मैं उनसे कहता हूं कि जिन स्‍टोन से बीमारी नहीं होती उन्‍हें छोड़ देना चाहिए। लेकिन लोग नहीं मानते।” पब्लिक हैल्‍थ फाउंडेशन ऑफ इंडिया का कहना है कि लगातार यह साबित हो चुका है कि तथाकथित चैकअप का कोई फायदा नहीं होता है।