देश में हृदय अस्पतालों में दो लाख से अधिक ओपन हार्ट सर्जरी की जाती है और इसमें सालाना 25 प्रतिशत की वृद्धि हो रही है। लेकिन यह सर्जरी केवल तात्कालिक लाभ के लिए होती है। भारत में दिल की बीमारी से हर साल लगभग 1.7 मिलियन यानी 17 लाख लोग मौत हो जाती है। वहीं डॉक्टर इस बीमारी की पहचान करने के लिए एक पुरानी कला का इस्तेमाल करने की कोशिश में हैं। हाल ही में सामने आई एक रिपोर्ट के मुताबिक लोगों के कान से हृदय संबंधी बीमारी का पता लगाया जा सकता है। जिससे मरीज कई सारे टेस्ट्स और उनमें होने वाले खर्च से बच सकते हैं।
दरअसल, मुंबई से 160 किमी दूर प्रैक्टिस करने वाले डॉक्टर हिम्मतराव बावास्कर के मुताबिक डायागनल इयरलोब क्रीज यानी कान के निचले लोब पर तिरछी लकीर या सिकुड़न के जरिए बीमार दिल की बहुत बड़ी पहचान है। उन्होंने 888 ऐसी मरीजों को स्टडी किया जो कि भारतीयों में कॉमन बीमारी जैसे डायबीटीज और हायपरटेंशन जैसी समस्याएं लेकर आए थे। इस शोध में उन्होंने पाया कि 95 फीसदी यानी 508 रोगियों के कान में गंदगी भरी थी और वो हृदय रोग से भी पीड़ित थे।
बता दें कि यह बार नहीं है जब दिल की बीमारी की पहचान के लिए इयर-क्रीज थियरी की बात कही गई है। सबसे पहले साल 1970 में अमेरिकन डॉक्टर सैंडर्स टी फ्रैंक ने कान और दिल के बीच लिंक की बात कही थी। हालांकि 60 वर्ष अधिक उम्र से ऊपर के लोगों में दिखाई देती है। वहीं बाइकुला के जेजे ग्रांट मेडिकल कॉलेज के प्रफेसर रहे डॉक्टर अल्ताफ के मुताबिक इयरलोब और दिल का कनेक्शन कॉमन सेंस वाली बात है। जैसे-जैसे लोग बड़े होते हैं और ब्लड प्रेशर बढ़ता है, फैट टिश्यू मुड़कर क्रीज बना लेते हैं।
आधुनिक जीवन के बढ़ते तनाव ने युवाओं में दिल की बीमारियों के खतरे पैदा कर दिया है। हालांकि अनुवांशिक और पारिवारिक इतिहास अब भी सबसे आम और अनियंत्रित जोखिम कारक बना हुआ है, लेकिन युवा पीढ़ी में अधिकतर हृदय रोग का कारण अत्यधिक तनाव और लगातार लंबे समय तक काम करने के साथ-साथ अनियमित नींद पैटर्न है। धूम्रपान और आराम तलब जीवनशैली भी 20 से 30 साल के आयु वर्ग के लोगों में इसके जोखिम को बढ़ा रही है।