होली का त्योहार नजदीक है, बाजार में चीनी रंगों सहित तमाम रासायनिक रंगों की भरमार है। लेकिन रंग खरीदते समय इनका सही चुनाव करना बहुत जरूरी है। वर्ना कहीं रंग में भंग ने पड़ जाए। सेहत के विशेषज्ञों ने बताया कि विभिन्न रासायनिक रंगों का आंखों, त्वचा, फेफड़ों पर घातक असर पड़ता है। यथासंभव होली प्राकृतिक रंगों से ही खेलें। किसी भी अनहोनी की सूरत में तुरंत चिकित्सक से मिलें। एम्स के त्वचा रोग विशेषज्ञ डॉक्टर केके वर्मा ने कहा कि रंगों में मिला मर्करी सल्फाइड कैंसर का कारण बन सकता है। वहीं इसमें पाया जाने वाला कॉपर सल्फेट आंखों में एलर्जी सहित स्थाई अंधापन तक ला सकता है।

उन्होंने बताया कि बाजार मेें मौजूद रंगों में सीसा, माइका, चूना, मिट्टी, डाई व हरे रंग में कॉपर सल्फेट मिला होता है जो सबसे ज्यादा नुकसान करता है। इसके अलावा भी कई तरह के रसायन मिले होते हैं जो अलग-अलग तरह से नुकसान पहुंचाते हैं। सूखे रंगों से भी दिक्कतें होती हैं व गीले रंग तो देर तक रहने के कारण और नुकसान करते हैं। मसलन खुजली, एक्जीमा, जलन सांस लेने में तकलीफ, गुर्दे की समस्या व अन्य जटिलता। डॉक्टर वर्मा ने बताया कि त्वचा के संपर्क मे आने से रंगों के रसायन त्वचा में दाने व खुजली करते हैं। कई बार घाव तक हो जाता है जिससे रंगों के रसायन सीधे खून तक पहुंच जाते हैं। पिछले साल रासायनिक रंगों के नुकसान को जानने के लिए एम्स में आने वाले ऐसे मरीजों पर अध्ययन किया गया था।

एम्स के नेत्र रोग विशेषज्ञों ने बताया कि कई मरीज ऐसे थे जो किसी न किसी गहरे रंग की वजह से घायल हुए थे। जबकि कुछ गुब्बारे या अंडे से घायल हुए थे। एम्स के ट्रॉमा सेंटर में ऐसे घायलों के लिए विशेष इंतजाम हैं। ट्रॉमा सेंटर के प्रमुख डॉ राजेश मलहोत्रा ने कहा कि कई मरीज शराब व भांग के कारण दुर्घटना का शिकार होकर अस्पताल पहुंचते हैं। ऐसे घायलों की डॉक्टर पहले बाहर ही रंग धोने की प्रक्रिया पूरी करते हैं, इसके बाद इलाज किया जाता है।

काला रंग प्रतिबंधित
डॉक्टरों ने बताया कि काले रंग में आक्साइड, मैलाकायड डाई मिला होता है। इसे अमेरिका की एजंसी एफडीए ने प्रतिबंधित कर रखा है। इसक ा वहां क ोई इस्तेमाल नहीं होता क्योंकि यह कैं सर कारक होता है। यह रंग गुर्दे को भी नुकसान पहुंचा सकता है।
फूलों से खेलें होली
डॉक्टरों ने कहा कि फूलों से बने प्राकृतिक रंगों का ही इस्तेमाल करें। यह रंग घर पर भी बनाए जा सकते हैं। जिनमें टेसू, गुलाब, मेहंदी, गेंदा, चुकंदर, हल्दी, नील व हरसिंगार के फूलों को छांव में सुखाकर पीस लें या फिर उबालकर गीले रंग बनाएं।