Hormonal Imbalance and Infertility : हार्मोन हमारे शरीर का एक आवश्यक तत्व हैं और यह ठीक से काम कर रहा है या नहीं इसकी जानकारी जरूरी है। शरीर में कई प्रकार के हार्मोन होते हैं। यह समझना जरूरी है कि वे क्या हैं और हमारे शरीर के लिए क्या काम करते हैं। हार्मोन इंडोक्राइन ग्लांड की मदद से तैयार होते हैं और ब्लड स्ट्रेम की मदद से शरीर के अलग-अलग हिस्सों में प्रवाहित होते हैं। आसान शब्द में कहें तो हार्मोन मैसेंजर की तरह होते हैं जो शरीर के इंटर्नल फंक्शन को रेग्युलेट करने के लिए जिम्मेदार होते हैं।

हार्मोन की क्वॉलिटी या क्वांटिटी में किसी भी प्रकार की गड़बड़ी या असामान्यता हार्मोनल इमबैलेंस का कारण बनती है। प्रजनन क्षमता में भी हार्मोन महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। किसी महिला की प्रजनन क्षमता को बनाए रखने के लिए कई तरह के हार्मोन जिम्मेदार होते हैं। फर्टिलिटी दोस्त की संस्थापक और सीईओ गीतांजलि बनर्जी ने जनसत्ता डॉट कॉम से बातचीत में बताया कि अगर इनमें से किसी एक में भी किसी भी प्रकार का असंतुलन होता है तो गर्भधारण करने में परेशानी होती है। आइए विस्तार से जानते हैं-

प्रजनन क्षमता को प्रभावित करने वाले हार्मोन

महिलाओं का शरीर बहुत कॉम्प्लिकेटेड होता है और उनमें पाए जाने वाले हार्मोन उससे भी ज्यादा कॉम्प्लिकेटेड होते हैं। उनकी प्रजनन क्षमता को प्रभावित करने वाले हार्मोन निम्नलिखित हैं।

  • फॉलिकल स्टिम्युलेटिंग हार्मोन
  • एंटी-मुलेरियन हार्मोन
  • ल्युटेनाइजिंग हार्मोन
  • प्रोगेस्टेरोन
  • एस्ट्रोजेन
  • थायराइड
  • प्रोलैक्टिन

हार्मोन प्रजनन क्षमता को कैसे प्रभावित करते हैं?

गीतांजलि बनर्जी के मुताबिक हार्मोंस में यदि असंतुलन होता है तो यह सामान्‍य प्रजनन चक्र में हस्‍तक्षेप कर सकता है। साथ ही बांझपन का कारण भी बन सकता है। इन हार्मोन का प्रजनन क्षमता पर क्या प्रभाव पड़ता है, आइए इसके बारे में संक्षेप में जानते हैं।

फॉलिकल स्टिम्युलेटिंग हार्मोन : यह हार्मोन महिलाओं में मुख्य रूप से पीरियड्स को रेग्युलेट करता है, साथ ही ओवरीज यानी अंडाशय में अंडे को मैच्योर करता है। अगर हार्मोन का उच्च स्तर है तो यह ओवरीज डिसफंक्शन का कारण बनता है।

एंटी-मुलेरियन हार्मोन : यह हार्मोन ओवेरियन फॉलिकल्स से पैदा होता है जिसमें अपरिपक्व अंडे होते हैं। इस हार्मोन लेवल से पता चलता है कि अंडाशय में कितने अंडे बचे हुए हैं। अगर हार्मोन लेवल कम है तो गर्भधारण करने में परेशानी होती है, क्योंकि अंडों का रिजर्व कम रहता है। अगर इस हार्मोन का स्तर ज्यादा होगा तो भी गर्भधारण में परेशानी होगी क्योंकि PCOS का खतरा पैदा होता है।

ल्युटेनाइजिंग हार्मोन : यह हार्मोन ओव्यूलेशन के दौरान परिपक्व अंडे को रिलीज करने के लिए जिम्मेदार होता है। अगर हार्मोन का लो लेवल है तो ओव्यूलेशन को होने से रोकता है, हाई लेवल है तो पीरियड्स और ओव्यूलेशन की प्रक्रिया में दखल देता है।

प्रोगेस्टेरोन : प्रेगनेंसी को बनाए रखने के लिए प्रोगेस्टेरोन महत्वपूर्ण है। यह भ्रूण के विकास में मदद करने के लिए गर्भाशय की परत को मोटा करने के लिए जिम्मेदार है। हार्मोन लेवल लो रहने पर मिसकैरेज और पीरियड्स में अनियमितता जैसी समस्या होती है। हाई लेवल होने पर थकान, कब्ज, नींद में समस्या हो सकती है।

एस्ट्रोजेन : एस्ट्रोजेन हार्मोन महिलाओं में प्राइमरी एंड सेकेंडरी सेक्स कैरेक्टर और प्रजनन क्षमता के रेग्युलेशन और डेवलपमेंट के लिए जिम्मेदार होता है। इस हार्मोन का उच्च स्तर अंडे की क्वॉलिटी को प्रभावित करता है। साथ ही यह ओवरीज फंक्शन को भी प्रभावित करता है जिससे गर्भ धारण में समस्या होती है। लो लेवल होने से फॉलिकल्स का अनुचित विकास हो सकता है साथ ही एलएच लेवल में वृद्धि हो सकती है।

थायराइड : थायराइड हार्मोन में टी3 और टी4 सीधा प्रजनन से संबंधित है। इसका असर पाचन क्रिया और मेटाबोलिक रेट पर भी होता है। अगर इस हार्मोन का स्तर कम है तो ओव्यूलेशन में गड़बड़ी हो सकती है। ऐसी परिस्थिति में ओवरीज से अंडे रिलीज नहीं होंगे। हाई लेवल होने पर समय से पहले मिसकैरेज का डर बना रहता है।

प्रोलैक्टिन : महिलाओं के स्तन में दूध के लिए प्रोलैक्टिन जरूरी है। इसके अलावा यह महिला को प्रेग्नेंट करने में भी अहम भूमिका निभाता है। अगर प्रोलैक्टिन का स्तर नॉर्मल नहीं है तो यह अनियमित पीरियड्स और ओव्यूलेशन में परेशानी करेगा जिससे गर्भ धारण करने में परेशानी होती है।

गीतांजलि बनर्जी के मुताबिक व्यस्त जीवन और हर चीज में सुविधा की अत्यधिक मांग ने सभी को सुस्त और निष्क्रिय बना दिया है। हेक्टिक लाइफ स्टाइल और सुविधाओं के विस्तार ने हमें निष्क्रिय बना दिया है। इससे स्वास्थ्य संबंधी कई तरह की समस्याएं पैदा होती हैं। हार्मोन का बैलेंस बिगड़ता है। आमतौर पर हार्मोनल इमबैलेंस पैदा करने के लिए निम्नलिखित कारक जिम्मेदार होते हैं।

  • स्ट्रेस
  • सोने की समस्या
  • थायराइड संतुलन
  • गर्भनिरोधक गोलियों का अत्यधिक उपयोग
  • डायबिटीज
  • अन-हेल्दी डाइट
  • एक्सरसाइज और शारीरिक गतिविधियों में कमी

अब सवाल उठता है कि आप कैसे पहचान सकते हैं कि आपके शरीर का हार्मोनल बैलेंस बिगड़ गया है? यदि आपके शरीर का हार्मोनल बैलेंस बिगड़ा है तो आप निम्नलिखित लक्षणों का अनुभव कर सकते हैं।

  • पीरियड्स में अनियमितता
  • मुंहासा
  • अनियमित ब्लीडिंग या स्पॉटिंग
  • चेहरे और शरीर पर ज्यादा बाल का उगना
  • बिना वजह वजन बढ़ना
  • मेल पैटर्न हेयर लॉस
  • सेक्स के प्रति लगाव में कमी
  • मूड स्विंग्स
  • कम नींद होना
  • इनफर्टिलिटी
  • ब्लोटिंग

अपने लाइफ स्टाइल में बदलाव की मदद से हार्मोनल इमबैलेंस को ठीक किया जा सकता है। यह बहुत ज्यादा कठिन नहीं है। सबसे पहले समय पर सोने की आदत डालें, रोजाना एक्सरसाइज करें और पौष्टिक आहार का सेवन करें। यदि आप इन बातों को ध्यान में रखते हैं तो हार्मोनल इमबैलेंस दूर हो जाएगा।