सर्वाइकल कैंसर के इलाज के बाद यह सुनिश्चित करना सबसे कठिन होता है कि कैंसर की कोशिकाएं पूरी तरह से खत्म हो गई हैं या नहीं क्योंकि अदृश्य कोशिकाएं इलाज के बाद भी शरीर में छिपी होती हैं जो फिर से कैंसर पैदा कर सकती हैं। दो दिवसीय मिसिकॉन 2016 सम्मेलन में इसी को लेकर एक नई प्रक्रिया ग्रीन ग्लो पेश की गई, जिसकी मदद से अब डॉक्टर दृश्य-अदृश्य कोशिकाओं का पता लगा पाएंगे और उसे समझ पाएंगे। सम्मेलन की अगुआई करने वाली वरिष्ठ महिला रोग विशेषज्ञ डॉ निकिता त्रेहन ने कहा कि ग्रीन ग्लो भारत में सर्वाइकल कैंसर के इलाज का रास्ता साफ कर सकता है।

डॉ त्रेहन ने बताया किसर्जरी कराने वाले 20 से 50 फीसद रोगियों में पुरानी जगह पर ही दोबारा कैंसर हो जाता है, जिससे पता चलता है कि डॉक्टर कैंसर से प्रभावित क्षेत्र से सभी रोगग्रस्त ऊतकों को निकालने में नाकाम रहे हैं। यह महत्त्वपूर्ण दृष्टिकोण इंडोसियानिन ग्रीन (आइसीजी) नामक एक इंजेक्टेबल डाई पर निर्भर करता है जो सामान्य ऊतकों की तुलना में कैंसर के ऊतकों में अधिक जमा होता है। डॉक्टर जब कैंसर पर इंफ्रारेड लाइट डालता है तो यह चमकने लगता है, जिससे डॉक्टर कंैसरग्रस्त पूरी कोशिकाओं को निकालने में सफल होता है।

उन्होंने बताया कि सर्जरी के दौरान ट्यूमर के किनारों की पहचान करना मुश्किल हो सकता है और आमतौर पर डॉक्टर सिर्फ ट्यूमर को सामान्य रूप से देखकर और अपनी उंगलियों से उनमें अंतर महसूस कर ही प्रक्रिया को अंजाम देते हैं। सनराइज हॉस्पिटल के अध्यक्ष डॉ हफीज रहमान ने कहा कि डॉक्टर को सर्जरी के दौरान सिर्फ दो चीजों, अपनी आंख और अपने हाथों से ही यह अनुमान लगाना होता है कि कैंसर कहां तक फैला है। इस तकनीक से डॉक्टरों को सर्जरी के दौरान ट्यूमर का सही-सही आकलन करने के लिए एक और उपकरण मिल जाएगा।सर्वाइकल कैंसर के कारण दुनिया भर में होने वाली मौतों में से एक तिहाई मौत भारत में होती है। पिछले साल भारत में सर्वाइकल कैंसर के कारण 63,000 से अधिक महिलाओं की मौत हुई थी।