दिल्ली की आबोहवा दिनोंदिन खराब होती जा रही है और यह एक ऐसा सच है जिसे झुठलाया नहीं जा सकता। इसका सेहत पर काफी बुरा असर पड़ता है, यह भी साबित हो चुका है, लेकिन फेफड़ों को घातक स्तर तक नुकसान पहुंचाने वाले वायु प्रदूषण का हृदय पर कोई सीधा असर पड़ता है या नहीं, यह फिलहाल किसी को मालूम नहीं है। हालांकि इसके कुछ लक्षण जरूर दिखाई पड़े हैं, जिसके आधार पर अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान (एम्स) ने इस पर अध्ययन करने का फैसला किया है। इस बारे में एम्स के हृदय रोग विशेषज्ञों की कुछ बैठकें हो चुकी हैं और कुछ होनी हैं, जिसमें तय होगा कि अध्ययन का प्रारूप और प्रक्रिया क्या होगी।

एम्स के हृदय रोग विशेषज्ञ डॉ संदीप मिश्र ने बताया कि हवा में प्रदूषण का स्तर बढ़ने से परोक्ष रूप से हृदय पर असर पड़ता है। मसलन,सांस लेने के दौरान फेफड़ों को पर्याप्त मात्रा में आॅक्सीजन न मिलने से दिल की धड़कनें तेज हो जाती हैं जिससे आॅक्सीजन का संतुलन बनाने के लिए दिल पर ज्यादा दबाव पड़ता है। हवा में घुले भारी रासायनिक तत्व परोक्ष रूप से फेफड़े की कोशिकाओं की तरह दिल की कोशिकाओं पर भी असर डालते हैं, जोकि लगातार प्रदूषण के संपर्क में रहने के बाद धीरे-धीरे व दूरगामी होता है, लेकिन पिछली दिवाली के ठीक बाद के दिनों में जो तथ्य सामने आए, उनसे लगता है कि प्रदूषण का हृदय पर सीधा व त्वरित असर भी होता है।

डॉ संदीप ने बताया कि रोजाना एम्स में ही एक-दो मरीजों का दिल के दौरे का आॅपरेशन या एंजियोप्लास्टी करने की नौबत आती है, लेकिन दिवाली के बाद जिस दिन दिल्ली में घना धुआं छाया था, उस दिन एम्स में पांच मरीजों की एंजियोप्लास्टी की गई थी। प्रदूषण के दिनों में ऐसा देखने में आया है, लिहाजा अब हम लोग इस दिशा में वैज्ञानिक तथ्य ढूंढ़ने की कोशिश कर रहे हैं। साथ ही यह भी देखने वाली बात है कि युवाओं में दिल का दौरा पड़ने के मामले बढ़ रहे हैं। उन्होंने बताया कि उनके ओपीडी में आए 19 साल के एक युवक व 21-22 साल की एक युवती को दिल का दौरा पड़ने पर उनकी एंजियोप्लास्टी करनी पड़ी। डॉ मिश्र ने बताया कि हम लोग एक दो बार विभागीय बैठक कर चुके हैं और फिर करने वाले हैं। इस पर प्रारूप तय होने पर भारतीय चिकित्सा शोध परिषद को यह प्रस्ताव भेजा जाएगा। इसके बाद आगे विस्तृत अध्ययन करेंगे।

सरकार के सुपर स्पेशियलिटी अस्पताल जीबी पंत के हार्ट सर्जन डॉ मोहित गुप्ता के मुताबिक, दिल के दौरे का कारण आॅक्सीजन की कमी भी होता है। पीएम 2.5 हार्ट की आर्टर्रीज को ब्लॉक कर देता है। साथ ही दिल की धड़कन को भी गड़बड़ कर देता है। शोधों के मुताबिक, जिन शहरों में नाइट्रोजन आॅक्साइड की मात्रा ज्यादा होती है वहां हार्ट अटैक के मामले चार गुना ज्यादा पाए जाते हैं। डॉ मोहित कहते हैं कि इस वक्त हम ‘क्रॉनिक पॉल्यूशन’ से जूझ रह रहे हैं। यह हर पल, हर वक्तहमारे साथ है। ऐसे में एयर प्यूरीफायर और फेस मास्क का इस्तेमाल किया जा सकता है, लेकिन भारतीय जीवनशैली में यह बहुत ज्यादा संभव नहीं नजर आता। हालांकि दुनिया में बड़े पैमाने पर लोग मास्क लगाने लगे हैं, लेकिन प्रदूषण के स्तर में कमी लाने के अलावा इसका कोई और स्थायी उपाय नहीं हो सकता इसके साथ ही आॅक्सीजन की उपलब्धता भी एक बड़ी चुनौती है। शहरों में पेड़-पौधों की संख्या जिस कदर घटती जा रही है, उस स्तर पर अगर ज्यादा से ज्यादा पौधरोपण नहीं किया गया तो इस संकट का समाधान मुश्किल है।