Chronic Myelogenous Leukemia (CML): हम ल्यूकेमिया शब्द को समझने लगे हैं कि यह कैंसर का एक प्रकार है, जोकि रक्त या रक्त बनाने वाले ऊतकों (Tissue) में शुरू होता है। ल्यूकेमिया कई प्रकार के होते हैं, पहला क्रॉनिक और दूसरा एक्यूट होता हैं। क्रोनिक मिलॉइड ल्यूकेमिया व्हाइट ब्लड सेल्स (श्‍वेत रक्‍त कणिकाओं) का एक असामान्य कैंसर है जोकि धीरे-धीरे बोन मैरो में बढ़ता जाता है।

हालांकि यह बीमारी लाइलाज है, लेकिन व्यक्ति दवाओं के जरिए एक अच्छी जिंदगी जी सकता है। लंबे समय में ये दवाएं काफी अच्छे परिणाम देती हैं। एनसीबीआई के अध्ययन के अनुसार, भले ही उपलब्ध उपचार की वजह से सुधार हुआ है, लेकिन 15% वयस्क ल्यूकेमिया, क्रोनिक मिलॉइड ल्यूकेमिया के साथ पूरी दुनिया में सीएमएल का प्रसार तेजी से हो रहा है।

इसकी पहचान कैसे की जा सकती है? Chronic Myelogenous Leukemia Symptoms and Treatment:

फोर्टिस हॉस्पिटल, मुंबई के हेमेटो-ऑन्कोलॉजी एंड बोन मैरो ट्रांसप्लांट के डायरेक्टर डॉ. शुभप्रकाश सान्याल ने जनसत्ता डॉट कॉम से बातचीत में बताया कि सीएमएल का संकेत देने वाले लक्षण अनिश्चित हो सकते हैं और अक्सर किसी अन्य कारणों की वजह से ऐसा हो सकता है। इन लक्षणों में शामिल है:

  • कमजोरी
  • थकान
  • आराम करने पर पसीना आना
  • बेवजह वजन का कम होना
  • बुखार और हड्डी में दर्द
  • बाईं तरफ की पसली में भारीपन महसूस होना (ऐसा स्प्लीन या प्लीहा में सूजन के कारण होता है)
  • पेट में भारीपन महसूस होना

डॉ. शुभप्रकाश सान्याल के मुताबिक ये विशेष रूप से सीएमएल के लक्षण नहीं हैं और कैंसर के अन्य प्रकार के साथ-साथ कई समस्याओं के साथ भी हो सकता है, जो की कैंसर नहीं हैं। सीएमएल का पता लगाने का शायद सबसे प्रभावी तरीका एक पूर्ण नियमित ब्लड टेस्ट है। कम्प्लीट ब्लड काउंट (सीबीसी) परीक्षण रक्त के नमूने में आरबीसी, डब्ल्यूबीसी और प्लेटलेट्स को मापता है।

यह रेड ब्लड सेल्स में हीमोग्लोबिन की मात्रा और नमूने में रेड ब्लड सेल्स (लाल रक्‍त कणिकाओं) के प्रतिशत को भी मापता है। सीएमएल वाले रोगियों में अक्सर कैंसर की गंभीरता के आधार पर आरबीसी की संख्या और प्लेटलेट्स की संख्या में संभावित वृद्धि या कमी होती है। इसके अतिरिक्त एक पेरीफेलर ब्लड स्मीयर (Peripheral Blood Smear Test) भी किया जा सकता है।

इन परीक्षणों से हमें क्या पता चलता है?

डॉ. शुभप्रकाश सान्याल का कहना है कि अविकसित कोशिकाओं की तुलना में विकसित हो रहे और पूरी तरह विकसित हो चुके व्हाइट ब्लड सेल्स के अनुपात की तुलना की जाती है। ये अविकसित कोशिकाएं, आमतौर पर स्वस्थ रोगी के रक्त में नई पाई जाती हैं।

लंबे समय तक सीएमएल का प्रबंधन कैसे किया जा सकता है?

डॉ. शुभप्रकाश सान्याल ने बताया कि सीएमएल (Chronic Myeloid Leukemia) के अभी उपचार के कई प्रकार उपलब्ध हैं और आपके डॉक्टर जो भी तरीका सुझाएंगे वो हर व्यक्ति के अनुसार अलग-अलग होगा। उपचार का एक और आम प्रकार है, जिससे क्रोनिक मिलॉइड ल्यूकेमिया रोगियों में भी काफी सफलता मिली, वह टायरोसिन किनसे इनहिबिटर्स (Tyrosine Kinase Inhibitors) है।

टीकेआई, टारगेटेड थैरेपी का एक प्रकार है जोकि गोलियों के रूप में आता है और इसे मुंह के जरिए लिया जा सकता है। यह टारगेटेड थैरेपी सीमएमएल कोशिका की वृद्धि के कारक उस विशिष्ट कोशिका का पता लगा लेते हैं और उन पर हमला करते हैं। मुख्य रूप से सीएमएल में ये टीकेआई असामान्य BCR-ABL 1 प्रोटीन को लक्षित करते हैं जो अनियंत्रित सीएमएल (Chronic Myeloid Leukemia) कोशिका वृद्धि का कारण बनते हैं। यह मौत का कारण बनने वाली कैंसरकारी कोशिकाओं की कार्यप्रणाली को रोक देता है।

बीमारी का पता चल जाने पर, सीएमएल की करीब से निगरानी करते रहना जरूरी है। कई ऐसे टेस्ट हैं जोकि उपचार के दौरान इलाज की प्रतिक्रिया की निगरानी कर सकते हैं और वे हर एक के बीच अंतराल रख सकते हैं। पहले साल में ये टेस्ट बहुत ही जल्दी-जल्दी कराने पड़ते हैं, लेकिन उसके बाद यह काफी कम हो जाता है। बेशक आपने जो सफर तय किया है वह अलग नजर आ सकता है, इसलिए अपनी चिकित्सक टीम से यह समझने के लिये चर्चा कर सकते हैं कि कितना अंतराल आपके लिये सही होगा।

बीमारी का पता लगने के बाद क्या करना चाहिए?

डॉ. सान्याल के मुताबिक जिन लोगों में क्रोनिक मिलॉइड ल्यूकेमिया का पता चला है, उनके लिये उपचार और अनुमान आम तौर पर बेहतर हो गया है और आज उपलब्ध अच्छे इलाज की मदद से यह और भी बेहतर हो रहा है। यदि आपको हाल ही में इस बीमारी का पता चला है, तो यह याद रखना महत्वपूर्ण है कि आपके लिये प्रभावी उपचार उपलब्ध हैं। उपचार के दौरान और उसके बाद होने वाले किसी भी प्रकार के बदलाव को जरूर लिखें। इसमें एमएल के साथ आपकी ना केवल शारीरिक, बल्कि भावनात्मक और सामाजिक सफर को शामिल किया जाना चाहिए।