पिप्पली एक पुष्पीय पौधा होता है। इसका इस्तेमाल आयुर्वेद में कई तरह के रोगों के उपचार के लिए औषधियों के निर्माण में किया जाता है। इसकी कोमल तनों वाली लताऐं 1-2 मीटर तक जमीन पर फैलती है। इसके गहरे रंग के चिकने पत्ते 2-3 इंच लंबे एवं 1-3 इंच चौड़े, हृदय के आकार के होते हैं। इसके पुष्पदंड 1-3 इंच एवं फल 1 इंच से थोड़े कम या अधिक लंबे शहतूत के आकार के होते हैं। कच्चे फलों का रंग हल्का पीलापन लिए एवं पकने पर गहरा हरा रंग फिर काला हो जाता है। इसके फलों को ही छोटी पिप्पली या पीपल कहा जाता है। आचार्य बालकृष्ण के मुताबिक इससे अस्थमा और कफ जैसे रोगों को जड़ से खत्म किया जा सकता है। आइए जानते हैं कि आयुर्वेदाचार्य बालकृष्ण इसके इस्तेमाल के लिए क्या तरीका बताते हैं।
सेवन की विधि – ऐसे लोग जिन्हें अस्थमा या फिर कफ की शिकायत है ऐसे लोगों के लिए पिप्पली कल्प का प्रयोग रामबाण उपाय है। इसके लिए आप सबसे पहले एक गिलास या फिर आप जितना हजम कर पाएं उतना दूध के साथ एक पिप्पली को पकाएं। 10-15 मिनट बाद जब दूध गाढ़ा हो जाए तो पिप्पली को खाकर दूध को पी लें। इसके बाद कोशिश करें कि दिन भर कुछ न खाएं। दोपहर या फिर शाम के समय अगर भूख लगती भी है तो हल्का भोजन ही करें। कम से कम अन्न पर रहना ज्यादा लाभदायक होता है।
अस्थमा और कफ के पूर्णतः उपचार के लिए इसी विधि से दूसरे दिन एक गिलास दूध के साथ दो पिप्पली को पकाएं और सेवन करें। क्रम को हर दिन आगे बढ़ाते जाएं। मतलब यह कि तीसरे दिन तीन पिप्पली, चौथे दिन चार पिप्पली। यह संख्या अधिकतम 11 तक पहुंचाएं। 11 दिनों बाद हर दिन एक पिप्पली कम करते जाएं। इस प्रकार से यह प्रयोग कुल 21 दिनों में पूरा होता है। इसका सेवन करते हुए अगर आप आहार संयम रखते हैं तो इससे आपको कफ और अस्थमा से तो राहत मिलती ही है साथ ही साथ आपके शरीर की सुंदरता भी बढ़ती है। इस प्रयोग से चेहरे पर चमक बढ़ती है तथा जोड़ों के दर्द से और मोटापे से भी मुक्ति भी मिलती है।