यश मित्तल
वर्तमान में सर्वोच्च न्यायालय की संविधान पीठ इस विषय पर सुनवाई कर रही है कि क्या मौजूदा कानून समान लिंग (Same Sex Couple) के जोड़ों के बीच विवाह की अनुमति प्रदान करता है, और अगर नहीं तो क्या विशेष विवाह अधिनियम (Special Marriage Act) की प्रस्तावना में समान लिंग विवाह को वैध करने की गुंजाईश है?
यह प्रश्न इसलिए उत्त्पन्न हो रहा है क्योंकि जबसे सर्वोच्च नयायालय ने समलैंगिकता को अपराध की श्रेणी से बाहर कर दिया है, और वर्ष 2017 में सेक्सुअल ओरिएंटेशन को निजता के अधिकार के तहत संरक्षित माना है, समान लिंग वाले जोड़े यह मांग कर रहे हैं कि उनके बीच संबंधों को भी कानूनी मान्यता प्राप्त हो। इस तरह उनके विवाह को भी वैधानिक अधिकार मिले। 5 जजों की संविधान पीठ की अगुवाई चीफ जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ (CJI DY Chandrachud) कर रहे हैं।
क्यों कानूनी दर्जा चाहते हैं समलैंगिक कपल?
यह मांग इसलिए की जा रही है, क्योंकि वित्तीय और सामाजिक सुरक्षा लाभ केवल उन्हीं को दिए जाते हैं जिनके पास विवाह की कानूनी स्वीकृति है, समान-लिंग वाले जोड़ों को कुछ बुनियादी संबंध अधिकारों तक पहुंचने में परेशानी होती है। चाहे वह एक साथ एक घर खरीदना हो, चिकित्सा बीमा हासिल करना हो, एक संयुक्त बैंक खाता हो, विरासत सुनिश्चित करना हो, या यहां तक कि वीजा आवेदन भी हो, इन सभी में समान-सेक्स भागीदारों की कोई मान्यता नहीं है। गैर-पुरुष व महिला जोड़ों को इन लाभों से वंचित कर दिया जाता है क्योंकि उनके रिश्ते वर्तमान में किसी भी कानून के तहत पंजीकृत नहीं हो रहे हैं।
स्पेशल मैरिज एक्ट से क्या कनेक्शन?
भारत में विशेष विवाह अधिनियम, 1954 (Special Marriage Act, 1954) एक धर्मनिरपेक्ष कानून है जो अनुष्ठापन और परिणामी पंजीकरण प्रदान करता है। दुर्भाग्य से इस्तेमाल की जाने वाली भाषा लिंग विशिष्ट है, यानी, केवल पुरुष-महिला विवाह पर विचार करती है। इसलिए अनुष्ठापन और परिणामी पंजीकरण से संबंधित सभी कानून लिंग विशिष्ट हैं और गैर-पुरुष व महिला
विवाह और उसके पंजीकरण के लिए कोई गुंजाइश प्रदान नहीं करते हैं। यही वर्तमान में असंवैधानिक होने के रूप में सर्वोच्च न्यायलय के समक्ष लंबित है।
समलैंगिक कपल्स को क्या डर सता रहा?
समलैंगिक कपल्स में यह डर है कि उनके साथी को संपत्ति के उत्तराधिकार से वंचित रखा जा सकता है क्योंकि भारतीय कानून समान लिंग के साथी को संपत्ति हासिल करने की इजाजत प्रदान नहीं करता है। और तो और विवाह के पंजीकरण के बिना इन जोड़ों के लिए एक-दूसरे की भविष्य निधि, चिकित्सा बीमा या किसी भी प्रकार के संयुक्त सामाजिक सुरक्षा विकल्पों तक पहुंच प्राप्त करना सीमा से बाहर है। इसके अलावा संसाधनों तक पहुंचने के लिए जन्म या जन्म से परिवारों पर निर्भरता कई समलैंगिक लोगों को शारीरिक हिंसा के जोखिम में डाल देती है।
समान-लिंग को कानूनी मान्यता का मतलब होगा कि एक युगल पुलिस और कानूनी सुरक्षा तक पहुंच सकता है। कानूनी पेचीदगियां जो जाति सजातीय विवाह और नियमों को बनाए रखती हैं और जो उनकी व्यक्तिगत स्वतंत्रता और गोपनीयता का उल्लंघन करके युगल के मौलिक अधिकारों का उल्लंघन करती हैं, उन्हें जनता के ध्यान में लाया जाना चाहिए। तभी समान-लिंग विवाह समानता का परिणाम ट्रांस-क्वीर समुदाय को राज्य संरक्षण की सीमा के भीतर गले लगाना शुरू हो जाएगा।
कानूनी मान्यता मिली तो भारत एशिया का दूसरा देश होगा
अगर कोई सकारात्मक फैसला होता है तो ताइवान के बाद समलैंगिक विवाह को मान्यता देने वाला भारत एशिया का दूसरा देश होगा। वर्तमान में, दुनिया में 32 देश ऐसे हैं जो समलैंगिक जोड़ों को शादी करने की अनुमति देते हैं। इनमें 12 देश जी-20 समूह का हिस्सा हैं जिसकी अध्यक्षता इस साल भारत कर रहा है।
(लेखक ग्वालियर के आईटीएम विश्वविद्यालय में कानून पढ़ाते हैं। यहां व्यक्त विचार उनके निजी हैं।)