बुधवार (26 अप्रैल) को छत्तीसगढ़ के दंतेवाड़ा जिले में माओवादियों द्वारा किए गए एक IED ब्लास्ट में डिस्ट्रिक्ट रिजर्व गार्ड (छत्तीसगढ़ पुलिस) के दस जवानों की जान चली गई। साथ ही DRG की गाड़ी चला रहे सिविलियन ड्राइवर की भी मौत हो गई। माओवादियों का इतना बड़ा हमला दो साल बाद हुआ था। आखिरी बार अप्रैल 2021 में हुआ था, जिसमें सुरक्षा बल के 22 जवान मारे गए थे।

माओवादियों ने अब इस हमले को क्यों अंजाम दिया है?

हमले का यह समय माओवादियों की सैन्य गतिविधियों के अनुकूल होता है। वह रणनीति के तहत गर्मियों में ही घात लगाकर हमला करते हैं। भाकपा (माओवादी) हर साल फरवरी और जून के बीच टैक्टिकल काउंटर ऑफेंसिव कैम्पेन (TCOC) चलाती है। इस दौरान माओवादियों की सैन्य शाखा का ध्यान सुरक्षा बलों को हताहत करने पर होता है।

इस अवधि को इसलिए चुना जाता है क्योंकि जुलाई में मानसून की शुरुआत के साथ ही जंगलों में आक्रामक अभियान चलाना मुश्किल हो जाता है। एक सिक्योरिटी एस्टेब्लिशमेंट ऑफिसर बताते हैं, “नाले लबालब भरे होते हैं, जिन्हें पार नहीं किया जा सकता। हर जगह लंबी घास और झाड़ियां हैं, जिससे विजिबिलिटी कम हो जाती है। मानसून की शुरुआत के साथ, माओवादी और सुरक्षा बल दोनों अपने शिविरों में लौट आते हैं।”

माओवादियों द्वारा सुरक्षा बलों पर लगभग सभी बड़े हमले, टीसीओसी अवधि के दौरान हुए हैं। 2010 का चिंतलनार हलमा भी इसी अवधि में हुई थी, जिसमें CRPF के 76 जवान मारे गए थे।

सूत्र बताते हैं कि इस साल TCOC की शुरुआत के बाद से 15 अप्रैल तक बस्तर में माओवादियों ने 34 IED हमले किए हैं। 2022 में यह आंकड़ा 28 और 2021 में 21 था।

साल-दर-साल फरवरी-जून के बीच हुए बड़े हमले

हमले की तारीखजान गंवाने वालों की संख्या
6 अप्रैल, 201076 जवानों की गई जान
29 जून, 2010CRPF के 26 जवानों की गई जान
25 मई, 2013झीरम घाटी हमला, कांग्रेस के शीर्ष नेताओं सहित 29 से ज्यादा लोगों की गई जान
11 मार्च, 2014सुरक्षा बल के 15 जवानों की जान गई
12 मार्च, 2017CRPF के 12 जवानों की गई जान
24 अप्रैल, 2017CRPF के 24 जवानों की गई जान
18 फरवरी, 2018छत्तीसगढ़ पुलिस के दो जवानों की मौत, छह घायल

देश में वामपंथी उग्रवाद की वर्तमान स्थिति क्या है?

सरकार के अनुसार, 2010 के बाद से देश में माओवादी हिंसा में 77% की कमी आई है। साल 2010 में माओवादी हिंसा अपने चरम पर था। तब 1005 सुरक्षाबल के लोगों और नागरिकों की जान गई थी। अब इसमें 90 प्रतिशत की कमी आई है। गृह मंत्रालय के मुताबिक, साल 2022 में माओवादी हिंसा में जान गंवाने वाले लोगों (सुरक्षाकर्मी और नागरिक) की संख्या 98 हो गई थी।

सरकार ने 2000 के दशक की शुरुआत में नक्सल प्रभावित जिलों की संख्या 200 थी, जिसे अब घटाकर केवल 90 कर दी गई है। सरकार का दावा किया है कि हिंसा प्रभावित क्षेत्रों में कमी आई है। अब सिर्फ 45 जिले ही नक्सली हिंसा से प्रभावित हैं। आंध्र प्रदेश, तेलंगाना, ओडिशा, झारखंड और बिहार में अब नक्सली नगण्य हैं, कभी ये क्षेत्र उनके गढ़ हुआ करते थे।

पिछले साल एक प्रेस कॉन्फ्रेंस में केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने कहा था कि झारखंड में माओवादियों का आखिरी गढ़ माने जाने वाले बुढ़ा पहाड़ को विद्रोहियों से मुक्त कर दिया गया है। यह छत्तीसगढ़ और झारखंड के बीच 55 वर्ग किमी का जंगली इलाका है। शाह ने 2024 तक देश को माओवादी समस्या से मुक्त करने का संकल्प लिया है।

और छत्तीसगढ़ में क्या स्थिति है?

यह देश का एकमात्र राज्य है जहां माओवादियों में अब भी बड़े हमलों को अंजाम देने की क्षमता बरकरार है। संसद को उपलब्ध कराए गए सरकारी आंकड़ों के अनुसार, पिछले पांच वर्षों (2018-22) में वामपंथी चरमपंथियों ने हिंसा की 1,132 घटनाओं को अंजाम दिया, जिसमें 168 सुरक्षा बलों के जवानों और 335 नागरिकों की जान चली गई। इन घटनाओं में से एक तिहाई छत्तीसगढ़ में हुए।

इस अवधि में राज्य में हिंसा का ग्राफ ऊपर-नीचे होता रहा है। 2018 में माओवादियों ने 275 हमले किए; 2019 में यह संख्या घटकर 182 हो गई, लेकिन 2020 में बढ़कर 241 हो गई। फिर यह 2021 में घटकर 188 हो गई, लेकिन 2022 में बढ़कर 246 हो गई। फरवरी के अंत तक माओवादियों ने इस साल राज्य में 37 हमलों में सात सुरक्षाकर्मियों सहित 17 लोगों की हत्या कर दी है।

2018-22 के बीच सुरक्षा बल के जवानों की मौत की संख्या भी घटती-बढ़ती रही। 2018 में 55 जवान मारे गए; 2019 में 22; 2020 में 36; 2021 में 45; और 2022 में सिर्फ 10। इसी अवधि में सुरक्षा बलों ने 400 से अधिक अभियान चला 328 माओवादी कैडर को मार गिराया।