खादिजा खान
ब्रिटेन की कोर्ट ने एक महिला को गैरकानूनी तरीके से गर्भपात का दोषी पाया है और 28 महीने कैद की सजा सुनाई है। दरअसल, ब्रिटेन में 10 सप्ताह तक के गर्भ के अबॉर्शन की अनुमति है। महिला ने जब गर्भपात की दवा ली, तब उसकी प्रेग्नेंसी निर्धारित अवधि से ज्यादा थी। यह पर्सन एक्ट 1861 (Person Act, 1861) के तहत अपराध है।
क्या है पूरा मामला?
कोर्ट में सुनवाई के दौरान महिला ने दलील दी कि वह कोरोना वायरस महामारी के दौरान प्रेग्नेंट हुई थीं। द टाइम्स की एक रिपोर्ट के मुताबिक महिला ने कहा कि इस दौरान वह अल्ट्रासाउंड नहीं करा पाईं, जिससे पता नहीं लगा पाया कि प्रेग्नेंसी कितने सप्ताह की है। 44 साल की कार्ला फोस्टर (Carla Foster) ने स्वीकार किया कि उन्होंने अबॉर्शन के लिए दवाइयों का सहारा लिया था। यह दवाईयां महामारी के दौरान सरकार द्वारा लॉन्च की गई स्कीम ‘Pills by Post’ के जरिए मंगाई थी।
सरकार ने 29 अगस्त 2020 को 2 साल के लिए अस्थाई तौर पर यह स्कीम लॉन्च की थी। हालांकि पिछले साल मार्च में इसे अनिश्चितकाल के लिए बढ़ा दिया गया है। इस स्कीम के मुताबिक घर बैठे डॉक्टर से सलाह के बाद 10 सप्ताह तक की गर्भवती महिलाओं को अबॉर्शन की दवा दी जा सकती है। इस स्कीम का उद्देश्य यह था कि महिलाएं बिना किसी क्लीनिक या हॉस्पिटल जाए, अपनी सहूलियत के अनुसार 10 सप्ताह तक की प्रेगनेंसी का अबॉर्शन करा सकें।
क्या है कार्ला फोस्टर का केस?
कार्ला फोस्टर का मामला इससे अलग है। उन्होंने अबॉर्शन के लिए लीगल तरीके से दवा ली, लेकिन उनकी प्रेग्नेंसी 10 सप्ताह की कानूनी अवधि से ज्यादा की थी और इस बात को खुद स्वीकार भी किया। बीबीसी की एक रिपोर्ट के मुताबिक यह मामला 11 मई 2020 को पहली बार तब सामने आया था, जब इमरजेंसी नंबर पर सूचना आई थी कि एक महिला लेबर पेन में है। हालांकि डिलीवरी के 45 मिनट बाद बच्चे का निधन हो गया था।
कैसे हुआ खुलासा?
बच्चे की मौत के बाद उसका पोस्टमार्टम किया गया। रिपोर्ट में पता चला की बच्चे की मौत अबॉर्शन की दवाओं के चलते हुई है। साथ ही यह भी पता लगा कि बच्चे की उम्र 32-34 सप्ताह के बीच थी। कोर्ट में सुनवाई के दौरान महिला ने अपना अपराध स्वीकार किया और तय समय सीमा के बीतने के बावजूद अबॉर्शन की दवाएं लेने की बात मानी। ब्रिटेन के Person Act of 1861 के मुताबिक यह अपराध की श्रेणी में आता है।
जज को मिली किसकी चिट्ठी?
कोर्ट में सुनवाई के दौरान जस्टिस एडवर्ड पेपरॉल (Edward Pepperall) ने एक अप्रत्याशित वाकये का भी जिक्र किया। बताया कि इस केस में उन्हें Royal College of Obstetricians and Gynaecologists और रॉयल कॉलेज ऑफ मिडवाइव्ज के अध्यक्षों की तरफ से एक खत मिला है, जिसमें आरोपी महिला को नॉन कस्टोडियल सेंटेंस की गुहार लगाई गई है। जज ने कहा कि इस पत्र का कोई मतलब नहीं है, क्योंकि संसद ही कानून को बदल सकती है। ऐसे में इस मामले को संसद के सामने उठाना चाहिए। वह कानून के मुताबिक निर्णय देंगे।
क्या कहता है भारत का कानून?
भारत में भी अबॉर्शन कानूनी तौर पर वैध है। The Medical Termination of Pregnancy (1971) में पहले 20 हफ्ते तक अबॉर्शन कराने की अनुमति थी, लेकिन साल 2021 में इस कानून में संशोधन कर यह समय सीमा बढ़ाकर 24 सप्ताह कर दी गई है। साथ ही संशोधित कानून में यह भी कहा गया है कि 20 से 24 सप्ताह के बीच गर्भपात के लिये दो डॉक्टरों की राय अनिवार्य है।