पंजाब के अमृतसर स्थित स्वर्ण मंदिर में एक नया विवाद खड़ा हो गया है। हारमोनियम को लेकर अकाल तख्त के जत्थेदार ज्ञानी हरप्रीत सिंह ने आदेश दिया है कि स्वर्ण मंदिर में अब हारमोनियम नहीं बजेगा उन्होंने शिरोमणि गुरुद्वारा प्रबंधन कमेटी (SGPC) को तीन साल का वक्त दिया है। उनका कहना है कि स्वर्ण मंदिर से हारमोनियम को हटाकर कीर्तन के समय पारंपरिक संगीत के इन्स्ट्रूमेंट्स को बजाया जाए।
अकाल तख्त का मानना है कि हारमोनियम सिख परंपराओं का हिस्सा नहीं है। इसे अंग्रेजों ने भारतीय संगीत में थोपा है। कीर्तन और गुरबानी के दौरान हारमोनियम की जगह पारंपरिक स्ट्रिंग वाद्ययंत्रों को बजाया जाना चाहिए। अकाल तख्त सिखों की सर्वोच्च धार्मिक संस्था है। इसकी नींव सिखों के छठवें गुरु श्री गुरु हरगोविंद साहिब द्वारा 1609 में रखी गई थी। अकाल तख्त 5 तख्तों में सबसे पहला और पुराना है।
इंडियन एक्सप्रेस के खबर के मुताबिक हारमोनियम का जन्म 1700 के आसपास हुआ। इसे कोपेनहेगेन के प्रोफेसर ने बनाया था। 1842 में फ्रांसीसी अलेक्जेंडर डीबेन ने इसके डिजाइन को पेटेंट कराकर नाम दिया हारमोनियम। भारत में पहली बार 1875 में कलकत्ता में द्वारकानाथ घोष का बनाया हारमोनियम चलन में आया। 1915 तक भारत में ये वाद्ययंत्र बड़े पैमाने पर बनाया जाने लगा था। श्री हरमंदिर साहिब में इसका इस्तेमाल सबसे पहले 20वीं सदी में किया गया था। करीब 121 साल बाद हारमोनियम के इस्तेमाल पर रोक लगाई जा रही है।
हरमंदिर साहिब की एक पेंटिंग में कीर्तन करते लोगों को दर्शाया गया है। 1854 की पेटिंग में हारमोनियम कहीं दिखाई नहीं दे रहा। ऐसा कहा जाता है कि हारमोनियम 1901 या 1902 में पहली बार हरमंदिर साहिब में बजाया गया था। ऐसे कीर्तनी जत्थे हैं जो हारमोनियम और स्ट्रिंग दोनों वाद्ययंत्रों का उपयोग करते हैं, और अभी भी बहुत अच्छे प्रदर्शन करते हैं।
अकाल तख्त का मानना है कि हारमोनियम को सिख परंपरा में ब्रिटिश लेकर आए। उन्हें हमारी विरासत के बारे में कोई जानकारी नहीं थी। अंग्रेजों के आने से पहले प्रत्येक गुरुद्वारे के पास एक जागीर थी। इससे होने वाली कमाई का एक हिस्सा रबाबी और सिख कीर्तनियों को जाता था। अंग्रेजों के आने के बाद रागी और रबी को मदद देने की यह व्यवस्था खत्म हो गई।
अकाल तख्त के इस फरमान पर पंजाब विश्वविद्यालय के प्रोफेसर डॉ. अलंकार सिंह कहते हैं कि स्ट्रिंग वाद्ययंत्रों को बजाने के लिए प्रोत्साहित तो किया जाना चाहिए, लेकिन हारमोनियम बजाना बंद कर देना सही नहीं होगा। उनके अलावा बहुत से सिख स्कॉलर भी हैं जो हारमोनियम पर पाबंदी को ठीक नहीं मानते। माना जा रहा है कि SGPC के लिए हारमोनियम पर पाबंदी आसान नहीं होगी, क्योंकि लोग सालों से गुरमत संगीत में इसे सुनते आए हैं। इसके साथ ही रागियों को भी सालों से इस मामले में प्रशिक्षित किया जा रहा है।