क्या आप अपच, पेट में सूजन, गैस, कब्ज और दस्त जैसी पेट से जुड़ी बीमारियों को नजरअंदाज कर देते हैं। ये बीमारियां पेट के कैंसर (Gastric Cancer) का कारण भी बन सकती हैं। भारत की तकरीबन 18% आबादी पेट की बीमारियों से पीड़ित है। पेट से जुड़ी बीमारियों को दो कैटेगरी में बांटा जा सकता है- स्थायी और अस्थायी। स्थायी बीमारियां लंबे समय तक साथ रहती हैं और चिंता का विषय बन सकती हैं।
मणिपाल हॉस्पिटल, जयपुर के गैस्ट्रोएंटरोलॉजी डिपार्टमेंट के कंसल्टेंट डॉ. शंकर लाल जाट कहते हैं कि पाचन का तरीका बहुत जटिल है। भोजन के बाद पेट, पहले खाने को टुकड़ों में तोड़ता है, उसमें से पोषक तत्व अलग करता है और आखिर में व्यर्थ पदार्थों को शरीर से बाहर निकालता है। इस मुश्किल प्रक्रिया के कारण अक्सर अपच, सूजन, गैस, कब्ज जैसी दिक्कतें हो जाती हैं। डॉ. जाट कहते हैं कि पाचन की आम समस्याओं में इन्फेक्शन, कब्ज, लैक्टोज़ इनटॉलरेंस, हार्ट बर्न और पेट फूलना शामिल है। अगर पाचन से जुड़ी समस्या लगातार बनी रहे तो पेट के कैंसर (Gastric Cancer) का रूप ले सकती है। यह स्थायी कैटेगरी में आता है।
कैसे होता है गैस्ट्रिक कैंसर?
मैक्स हॉस्पिटल, साकेत के जीआई सर्जरी और ऑन्कोलॉजी डिपार्टमेंट के डायरेक्टर डॉ. निखिल अग्रवाल एक लेख में गैस्ट्रिक कैंसर की चर्चा करते हुए इसे विस्तार से समझाते हैं। वह कहते हैं कि खाना निगलने के बाद यह फूड पाइप (ग्रासनली) से गुजरता है, फिर आमाशय में जाता है। पेट (आमाशय) गैस्ट्रिक रस स्रावित कर इसे पचाना शुरू कर देता है। वह कहते हैं कि गैस्ट्रिक कैंसर, पेट की सबसे भीतरी परत में म्यूकस प्रोडक्शन करने वाली सेल्स में शुरू होता है। पहले पेट की दीवार में फैलता है और फिर बढ़ कर आस पास के सेल्स को अपनी चपेट में ले लेता है।

कितने तरह का होता है पेट का कैंसर?
डॉ. अग्रवाल बताते हैं कि पेट का कैंसर या गैस्ट्रिक कैंसर मुख्य तौर पर तरह का होता है। पहला है- एडेनोकार्सिनोमा (Adenocarcinoma), जो सबसे कॉमन है। दूसरा-गैस्ट्रोइंटेस्टाइनल स्ट्रोमल ट्यूमर (GIST), तीसरा- न्यूरोएंडोक्राइन ट्यूमर (NET) और चौथा लिंफोमा।
क्या है गैस्ट्रिक कैंसर की वजह?
- पेट में लगातार सूजन
- मोटापा
- अपच
- धूम्रपान
- एनीमिया
- गैस्ट्रिक कैंसर की हिस्ट्री
- दवाओं का दुष्प्रभाव
क्या हैं मुख्य लक्षण?
पेट में दर्दः पेट में लगातार या बार-बार दर्द होना गैस्ट्रोइंटेस्टाइनल समस्या या गैस्ट्रिक कैंसर का सबसे आम लक्षण है। यह दर्द तेज़ी से होता है और अलग-अलग जगह हो सकता है।
मलत्याग की दिनचर्या में परिवर्तनः बार-बार या लंबे समय तक डायरिया, कब्ज बने रहना या ये दोनों बदल-बदलकर होना भी मुख्य लक्षण है।
पेट फूलना और गैसः बहुत ज्यादा गैस बनना और पेट फूलना भी गैस्ट्रोइंटेस्टाइनल समस्या की ओर इशारा करता है। इसमें बेचैनी, पेट भरा हुआ महसूस होना, और पेट का फूलना शामिल है।
जी मिचलाना और उल्टीः बार-बार या लगातार जी मिचलाना और उल्टी आना गंभीर गैस्ट्रोइंटेस्टाइनल समस्याओं, जैसे गैस्ट्राईटिस, पेप्टिक अल्सर, या गैस्ट्रोइसोफेजियल रिफ्लक्स रोग (जीईआरडी) की ओर इशारा करता है। इनके ट्रिगर्स और उनसे जुड़े लक्षणों को पहचानना जरूरी है।
हार्ट बर्न एवं एसिड रिफ्लक्सः बार-बार हार्टबर्न होना और छाती या गले में जलन महसूस होना आम तौर पर गैस्ट्रोइसोफेजियल रिफ्लक्स रोग (जीईआरडी) के लक्षण हैं। एसिड रिफ्लक्स तब होता है, जब पेट का एसिड वापस इसोफेगस में आ जाता है, जिससे बेचैनी और परेशानी हो सकती है।
बिना वजह वजन घटना या बढ़नाः शरीर के वजन में बिना वजह परिवर्तन भी गैस्ट्रोइंटेस्टाइनल समस्याओं की तरफ इशारा करता है। बिना वजह वजन घटने का कारण सेलियेक रोग, इन्फ्लेमेटरी बॉवेल डिज़ीज़ (आईबीडी) हो सकता है।
भूख न लगनाः लगातार भूख न लगना या कम खाना खाना गैस्ट्रोइंटेस्टाइनल विकारों का लक्षण हो सकता है। इसके साथ थोड़ा सा भी खा लेने पर पेट बहुत ज्यादा भरा हुआ महसूस होने लगता है।
मल में खूनः मल में खून होना गैस्ट्रोइंटेस्टाइनल और गैस्ट्रिक कैंसर का एक महत्वपूर्ण लक्षण है। चमकीले लाल रंग का खून निचले पाचन तंत्र में खून बहने और गहरे रंग का मल ऊपरी पाचन तंत्र में रक्तस्राव होने के कारण होता है।
थकावट और कमजोरीः थकावट और कमजोरी भी गैस्ट्रोइंटेस्टाइनल रोग का लक्षण है। आयरन या विटामिन बी-12 की कमी के कारण एनेमिया इन लक्षणों को बढ़ा सकता है।
खाने की इनटॉलरेंस और एलर्जीः किसी खास खाने से एलर्जी, जैसे- लैक्टोज़ या ग्लुटन के प्रति इनटॉलरेंस भी गैस्ट्रोइंटेस्टाइनल रोग के लक्षण होते हैं।
फैमिली हिस्ट्री: परिवार में गैस्ट्रोइंटेस्टाइनल रोग का कोई इतिहास, जैसे- कोलोरेक्टल कैंसर या इन्फ्लेमेटरी बॉवेल डिज़ीज़ का इतिहास रहा हो तो ऐसी बीमारी का जोखिम बढ़ सकता है।
क्या कहते हैं डॉक्टर?
डॉ. शंकर लाल जाट कहते हैं कि पेट से जुड़ी उपरोक्त समस्याओं का समय रहते इलाज न किया जाए तो गंभीर परिणाम हो सकते हैं। अल्सर में खून निकलना, पेट के टिश्यू को हानि पहुंचना, अल्सर में छेद, कैंसर और यहां तक कि मृत्यु की आशंका बढ़ जाती है। अगर ऐसे लक्षण दिखें तो फौरन मेडिकल एक्सपर्ट से सलाह लेनी चाहिए।
डॉ. जाट कहते हैं कि पेट से जुड़ी बीमारियों से बचने के लिए सभी को अनिवार्य तौर पर दो काम करना चाहिए। पहला- भोजन को थोड़ी-थोड़ी मात्रा में और धीरे-धीरे खाने की आदत डालें। दूसरा- पर्याप्त मात्रा में पानी पीएं और व्यायाम करें।