10 State Assembly Elections in 2023: पिछले आठ सालों से केंद्र की राजनीति में एकदलीय प्रभुत्व रहा है। दुनिया की सबसे बड़ी राजनीतिक पार्टी होने का दावा करने वाली भाजपा केंद्र के अलावा देश की 17 राज्यों की सरकार का नेतृत्व कर रही है। लोकसभा में भाजपा के 303 सांसद हैं। राज्यसभा में 92 सांसद हैं। हालांकि सत्ता के इतने कोनों पर पदस्थ होने के बावजूद भाजपा के लिए नया साल चुनौतीपूर्ण हो सकता है।

विधानसभा चुनावों में परफॉर्मेंस का रहेगा प्रेशर

जम्मू-कश्मीर, कर्नाटक, तेलंगाना, मध्य प्रदेश, राजस्थान और छत्तीसगढ़ सहित 10 राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों में इस साल विधानसभा चुनाव हो सकते हैं। 2024 के लोकसभा आम चुनाव से पहले इन चुनावों को सेमी-फाइनल माना जा रहा है। 2018 और 2019 में राजस्थान, मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़ और ओडिशा ने विधानसभा चुनावों में भाजपा के खिलाफ मतदान किया था, लेकिन लोकसभा में भाजपा को समर्थन दिया था।

केंद्र शासित प्रदेश जम्मू-कश्मीर में लगभग पांच साल के अंतराल के बाद चुनाव होने की उम्मीद है। परिसीमन प्रक्रिया पूरी होने के बाद वहां का कंट्रोल काफी हद तक केंद्र के हाथ में रहेगा।

चुनावी राज्यों में चेहरे की चुनौती

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में पार्टी राज्यों और राष्ट्रीय स्तर पर एक नया नेतृत्व तैयार करने की कोशिश कर रही है। हालांकि ब्रांड मोदी अभी भी बरकरार है। राज्य के चुनावों में ब्रांड मोदी का इस्तेमाल अब भी जारी है। जब स्थानीय मुद्दे हावी होते हैं और पार्टी को राज्य में सत्ता विरोधी लहर का सामना करना पड़ता है, तो जाहिर तौर पर एक डेंट सामने आता है। झारखंड और हिमाचल प्रदेश ऐसे उदाहरण हैं जहां सत्ता विरोधी लहर और स्थानीय मुद्दों के कारण पार्टी को हार का सामना करना पड़ा।

भाजपा इस स्थिति से निपटने के लिए पार्टी के भीतर प्रयोग कर रही है। गुजरात चुनाव में कम से कम 30-40% नए चेहरों को मौका दिया गया था। गुजरात और उत्तराखंड जैसे राज्यों में पार्टी ने सरकार को नया रूप देने के लिए अपने मुख्यमंत्रियों को भी बदल दिया।

इस रणनीति से दोनों राज्यों में लाभ भी हुआ लेकिन हिमाचल यह तरकीब नहीं चली। टिकट से वंचित लोगों ने पार्टी को नुकसान पहुंचाया। 2023 में भाजपा के लिए सबसे बड़ी चुनौतियों में से एक नए नेतृत्व तैयार करना होगा।

इस साल में कर्नाटक पहला राज्य होगा, जहां चार महीने में चुनाव होंगे। भाजपा के सामने यहां अपनी सरकार बनाए रखने की चुनौती होगी। कर्नाटक में पार्टी की स्थापित करने का श्रेय बीएस येदियुरप्पा को दिया जाता है। बीजेपी ने उन्हें पार्टी के संसदीय बोर्ड में जगह देकर सम्मानजनक विदाई दी है। मौजूदा मुख्यमंत्री बसवराज बोम्मई के सामने चुनाव में पार्टी का नेतृत्व करते हुए विभिन्न गुटों को संभालने की चुनौती है। कुछ नेताओं द्वारा पहले से ही मंत्रिमंडल विस्तार की मांग की जा रही है। ऐसे नेता समय-समय पर खुलकर अपनी नाराजगी भी जाहिर करते रहे हैं।

इकोनॉमिक टाइम्स से बात करते हुए राज्य भाजपा प्रभारी अरुण सिंह ने कहा है, “फिलहाल कर्नाटक में हम कांग्रेस पर बढ़त बनाए हुए हैं। हमारे सीएम बोम्मई की छवि एक आम आदमी की है। येदियुरप्पाजी हमारे सबसे बड़े और सबसे लोकप्रिय नेता हैं। दोनों भाजपा के लिए मिलकर काम कर रहे हैं। कोई सत्ता विरोधी लहर नहीं है। आने वाले दिनों में अन्य दलों के कई नेता भाजपा में शामिल होने जा रहे हैं।”

बिहार में विशेष चुनौती

बिहार में भाजपा बेसब्री से एक ऐसे चेहरे की तलाश में है, जो नीतीश कुमार के नेतृत्व वाले महागठबंधन को टक्कर दे सके। राज्य भाजपा अध्यक्ष संजय जायसवाल का कार्यकाल सितंबर में समाप्त हो गया था। राज्य इकाई नए नेता की प्रतीक्षा कर रही है। खबर थी की दशहरा के बाद राज्य में नए पार्टी अध्यक्ष की नियुक्ति हो सकती है लेकिन फिलहाल कमान संजय जायसवाल के पास ही है।

इस बीच दिसंबर के आखिर में भाजपा प्रदेश उपाध्यक्ष राजीव रंजन ने पार्टी की प्राथमिक सदस्यता और पद से इस्तीफा देकर हलचल मचा दी है। नीतीश कुमार के एनडीए से बाहर होने के बाद भाजपा को अंदाजा हो गया है कि 2024 में परेशानी बढ़ सकती है। बिहार में लोकसभा की 40 सीटें हैं। इसमें से भाजपा के पास 17 सीटें हैं। यानी आधे से भी कम। 2019 का लोकसभा चुनाव भाजपा और जदयू ने मिलकर चुनाव लड़ा था और नीतीश कुमार की पार्टी को 16 सीटों पर जीत मिली थी।

एनडीए से निकल महागठबंधन में शामिल होने के दौरान नीतीश कुमार ने द हिंदू को दिए एक साक्षात्कार में कहा था, ”जेडीयू के महागठबंधन का हिस्सा बनने के साथ ही यह तय हो गया है कि लोकसभा 2024 में भाजपा सिर्फ 2 सीटें ही जीत पाएगी”

फ्रीबीज पर फंस सकती है भाजपा

2024 की प्रतिस्पर्धा की झलक इस साल से दिखनी शुरू हो जाएगी। यह देखते हुए कि अर्थव्यवस्था का प्रबंधन मौजूदा सत्ताधारी पार्टी के लिए सिरदर्द बना हुआ है, विपक्ष प्रधानमंत्री मोदी को उनके ही ‘रेवाड़ी कल्चर’ वाले बयान की याद दिला सकती है।

राष्ट्रीय पार्टी का टैग मिलने से ‘आम आदमी पार्टी’ उत्साह में है। दूसरी तरफ राहुल गांधी की भारत जोड़ो यात्रा से कांग्रेस में भी ताजगी आने की बात कही जा रही है। अब निगाहें प्रधानमंत्री मोदी पर होगी कि आखिर वह राज्यों के प्रतिद्वंद्वियों को कैसे काउंटर करते हैं।

कर्नाटक कांग्रेस के नेता पहले से ही पुरानी पेंशन योजना को लागू करने का वादा करने लगे हैं। ऐसा माना जा रहा है कि पुरानी पेंशन योजना को लागू करने के वादे से कांग्रेस को हालिया हिमाचल प्रदेश विधानसभा चुनाव में भी मदद मिली थी।

2019 के लोकसभा चुनाव से पहले किसानों का कर्ज एक हॉट टॉपिक था। तब विपक्ष लगातार इस मुद्दे को उठा रहा था, जिसके बाद पीएम मोदी को किसानों के लिए किसान सम्मान निधि शुरू करने के लिए मजबूर होना पड़ा था। केंद्र ने पहले ही कोविड लॉकडाउन के दौरान शुरू की गई मुफ्त राशन योजना को एक साल के लिए बढ़ा दिया है। इन्हीं वजहों यह जाने लगा है कि भाजपा के बाजारोन्मुखी दृष्टिकोण को समाजवादी कार्यक्रमों ने जकड़ लिया है।

सरकार की चिंताओं में GDP का विकास दर भी शामिल

जीडीपी का विकास दर सरकार के लिए एक बड़ी चिंता है। वित्त वर्ष 2021-22 में जीडीपी के 9.2% बढ़ने का अनुमान लगाया गया था, लेकिन यह 8.7% तक ही बढ़ी। हालांकि यह आंकड़ा 2020-21 में 6.6% से बेहतर है। अब IMF ने माना है कि भारतीय अर्थव्यवस्था 2022-23 में बढ़िया परफॉर्म करेगी। इस वित्त वर्ष की पहली और दूसरी तिमाही में जीडीपी का ग्रोथ क्रमश: 13.5% और 6.3% रह सकता है। वहीं तीसरी और चौथी तिमाही का ग्रोथ 4.5% और 7% रहने का अनुमान है।

तेल के दाम से सरकार रही है परेशान

तेल की बढ़ती कीमतों से सरकार पहले से चिंता में है। वैसे तो आधिकारिक तौर पर तेल की कीमतें बाजार-विनियमित होती हैं लेकिन जनता के विरोध से सरकार पर दवाब रहता है। पिछला साल कच्चे तेल की कीमतों के लिए खराब रहा, जो रूस द्वारा यूक्रेन पर हमला करने के बाद 130 डॉलर प्रति बैरल तक पहुंच गया था। कीमतें अब 80 डॉलर से कम हो गई हैं। आईएमएफ ने 2023 में तेल की औसत कीमत 92 डॉलर रहने का अनुमान लगाया है।

एक अनुत्तरित सवाल रहा है बेरोजगारी

रोजगार सृजन के मामले में भाजपा लगातार बैकफुट पर रही है। यहां तक कि भाजपा के कट्टर समर्थक भी मानते हैं कि पार्टी इस वादे को पूरा करने में सफल नहीं हुई है। सेंटर फॉर मॉनिटरिंग इंडियन इकोनॉमी (CMIE) ने रविवार को जारी आंकड़ों में बताया है कि दिसंबर 2022 में भारत की बेरोजगारी दर 8.30 फीसदी हो रही। यह आंकड़ा पिछले 16 महीनों में सबसे ज्यादा है। रिपोर्ट के मुताबिक, सबसे अधिक अनइंप्लॉयमेंट रेट भाजपा शासित हरियाणा का ही है। चुनानी राज्यों की बात करें तो जम्मू-कश्मीर में बेरोजगारी दर 14.8 फीसदी, राजस्थान में 28.5 फीसदी है।