सुप्रीम कोर्ट की संविधान पीठ समलैंगिक विवाह (Same Sex Marriage) को कानूनी मान्यता देने की मांग वाली अर्जियों पर सुनवाई कर रही है। 10 मई को नौवें दिन चीफ जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ की अगुवाई वाली संविधान पीठ के सामने तमाम वकीलों ने अपनी दलील रखी।
समलैंगिक कपल हज की मांग करने लगें तो?
एडवोकेट एमआर शमशाद ने दलील दी कि मुस्लिम विवाह अधिनियम, 1939 का विघटन विवाह के विघटन के तरीकों को संदर्भित करता है, लेकिन तरीके मुस्लिम पर्सनल लॉ के संदर्भ में ही हैं। यदि समलैंगिक विवाह को मान्यता दी जाती है, तब पर्सनल लॉ में भी मान्यता देनी होगी। लेकिन ऐसे निकायों द्वारा संचालित धार्मिक संस्थानों का क्या होगा? कोई समलैंगिक कपल हज कमेटी से मांग करने लगे कि वे एक साथ हज के लिए जाना चाहते हैं तब क्या होगा? इस पर चीफ जस्टिस चंद्रचूड़ ने जवाब दिया- थैंक यू।
सुनवाई के दौरान एडवोकेट शशांक शेखर झा ने दलील दी कि शादी कोई प्राइवेट मामला नहीं बल्कि सामाजिक मामला है। इसलिए होमोसेक्सुअल शादी को मान्यता देने के लिए नए कानूनों की आवश्यकता है। चीफ जस्टिस ने जवाब देते हुए कहा, धन्यवाद… हम आपकी बात समझ गए।
वकील की दलील- होमोसेक्सुअलिटी नेचुरल नहीं
सुनवाई के दौरान एडवोकेट एपी सिंह ने दलील दी कि होमोसेक्सुअलिटी प्राकृतिक चीज नहीं है और इस तरह की शादी भी कोई प्राकृतिक नहीं है। एडवोकेट सिंह की दलील पर चीफ जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ ने कहा थैंक यू…हम समझ गए।
7 राज्यों ने दिया जवाब
10 मई को सुनवाई के दौरान केंद्र सरकार की तरफ से पेश सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने संविधान पीठ को बताया कि उन्हें 7 राज्यों की तरफ से समलैंगिक विवाह को कानूनी मान्यता देने के मसले पर जवाब मिला है। असम, आंध्र प्रदेश और राजस्थान सरकार ने इसका विरोध किया है। वहीं, दूसरे राज्यों का कहना है कि यह बहुत संवेदनशील विषय है और व्यापक विमर्श की आवश्यकता है। तत्काल कोई जवाब देने की स्थिति में नहीं हैं।
क्या है राज्यों का तर्क?
आंध्र प्रदेश: आंध्र प्रदेश सरकार ने केंद्र को भेजे जवाब में कहा है कि उन्होंने समलैंगिक विवाह को कानूनी मान्यता देने के मुद्दे पर राज्य के विभिन्न धार्मिक संगठनों के प्रमुख से बात की। सब ने इस आइडिया का विरोध किया। इसलिए राज्य समलैंगिक विवाह अथवा LGBTQ शादी के पक्ष में नहीं है।
असम: असम सरकार ने अपने जवाब में कहा है कि समलैंगिक विवाह को मान्यता देने से राज्य में शादी और पर्सनल लॉ से जुड़े कानूनों को चुनौती मिलेगी और यह सही आईडिया नहीं है। असम सरकार ने यह भी कहा है कि यह एक ऐसा मामला है जिस पर व्यापक विमर्श की आवश्यकता है। चूंकि इसमें कानून का पहलू भी शामिल है, ऐसे में यह न्यायपालिका पर छोड़ देना चाहिए।
राजस्थान: राजस्थान सरकार ने अपने जवाब में राज्य के डिपार्टमेंट ऑफ सोशल जस्टिस एंड एंपावरमेंट की एक रिपोर्ट का हवाला दिया है, जिसमें कहा गया है कि समलैंगिक विवाह को मान्यता देने से सामाजिक- सांस्कृतिक ढांचे पर असर पड़ेगा। और इसका परिवार पर नकारात्मक असर होगा।
राज्य सरकार ने बताया है कि उन्होंने समलैंगिक विवाह पर सूबे के सभी जिलों के कलेक्टर से राय मांगी थी और सब ने यह कहते हुए इस आइडिया को खारिज कर दिया कि यह पब्लिक ऑपिनियन के खिलाफ है। राज्य ने कहा है कि वह समलैंगिक विवाह के खिलाफ है, लेकिन समलैंगिक कपल साथ रहें, इससे उन्हें कोई परेशानी नहीं है।
और किसका जवाब आया? उत्तर प्रदेश, महाराष्ट्र, मणिपुर और सिक्किम ने भी केंद्र सरकार को अपना जवाब भेजा है और इस मसले पर निर्णय तक पहुंचने के लिए और समय की मांग की है।
राज्यों को क्यों शामिल करना चाहती है केंद्र?
समलैंगिक विवाह पर सुनवाई की शुरुआत में ही केंद्र सरकार ने कहा था कि यह एक ऐसा मसला है जो विधायिका के दायरे में आता है। केंद्र सरकार ने अपने हलफनामे में कहा था कि यदि सुप्रीम कोर्ट कोई फैसला लेती है तो इससे राज्यों के अधिकार प्रभावित होंगे। इसलिए उनकी राय आवश्यक है। 18 अप्रैल को ही केंद्र सरकार ने सभी राज्यों के चीफ सेक्रेटरी को पत्र लिखकर समलैंगिक विवाह के मसले पर उनकी राय मांगी थी।
सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने दलील दी थी कि चूंकि विवाह समवर्ती सूची में है, इसलिए यदि समलैंगिक विवाह पर कोई कानून बनता भी है तो संभव है कि कोई राज्य इसे माने और कोई ना माने। इसलिए उनकी राय आवश्यक है।