पॉपुलर फ्रंट ऑफ इंडिया (PFI) पर बैन के बाद भारत में संगठनों पर प्रतिबंध के इतिहास पर चर्चा हो रही है। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (RSS) संभवतः आजाद भारत का पहला संगठन था, जिस पर सरकार ने प्रतिबंध लगाया था। इस प्रतिबंध की खूब चर्चा होती है, लेकिन बहुत कम लोग जानते हैं कि आरएसएस पर अब तक तीन बार प्रतिबंध लगाया जा चुका है।

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गांधी हत्या के बाद लगा प्रतिबंध

आरएसएस पर पहला प्रतिबंध महात्मा गांधी की हत्या के बाद  4 फरवरी, 1948 को लगा था। प्रतिबंध की विज्ञप्ति सरदार वल्लभ भाई पटेल  के नेतृत्व वाले केंद्रीय गृह मंत्रालय ने जारी किया था। आरएसएस पर बैन लगाते हुए गृह मंत्रालय ने कहा था, ”भारत सरकार देश में सक्रिय नफरत और हिंसा की ताकतें, जो देश की आजादी को संकट में डालने और उसके नाम को काला करने का काम कर रही हैं, उन्हें जड़ से उखाड़ने के लिए प्रतिबद्ध है। इस नीति के अनुसरण में भारत सरकार ने राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ को गैरकानूनी घोषित करने का निर्णय लिया है।”

प्रतिबंध को लेकर जारी विज्ञप्ति में RSS पर आगजनी, डकैती, हत्या, अवैध हथियार और गोला-बारूद एकत्र करने आरोप लगा था। साथ ही सरकार ने आशंका व्यक्त की थी कि संघ (RSS) सरकार के खिलाफ असंतोष पैदा करने के लिए आतंकवादी तरीकों का सहारा ले रहा है और पुलिस व सेना को अपने अधीन करने की कोशिश कर रहा है।

श्यामा प्रसाद मुखर्जी को भेजे पत्र में पटेल ने लिखा था, ”आरएसएस की गतिविधियों ने सरकार और राज्य के अस्तित्व के लिए एक स्पष्ट खतरा पैदा कर दिया।” प्रतिबंध के करीब 18 माह बाद पटेल ने 11 जुलाई 1949 को आरएसएस से बैन हटा दिया था।

आपातकाल के दौरान इंदिरा गांधी ने किया बैन

1975 के आपातकाल के दौरान इंदिरा गांधी ने दूसरी बार आरएसएस पर प्रतिबंध लगाया था। यह प्रतिबंध दो साल तक लगा रहा। 1977 में आपातकाल खत्म होने के बाद जब जनता पार्टी और जनसंघ ने मिलकर सरकार बनाई, तब जाकर संघ से बैन हटाया गया।

बाबरी विध्वंस के बाद राव सरकार ने लगाया प्रतिबंध

आरएसएस पर तीसरी बार प्रतिबंध बाबरी मस्जिद के विध्वंस के बाद लगाया गया। 1992 में अयोध्या में कारसेवकों ने बाबरी मस्जिद को ढहा दिया था। इस विध्वंस में संघ की कथित भूमिका को देखते हुए तत्कालीन प्रधानमंत्री नरसिम्हा राव और गृह मंत्री शंकरराव बलवंतराव चव्हाण ने आरएसएस पर बैन लगा दिया था।

तब संघ के साथ-साथ विश्व हिंदू परिषद, बजरंग दल, जमात-ए-इस्लामी हिंद और स्टूडेंट्स इस्लामिक मूवमेंट ऑफ इंडिया (SIMI) पर प्रतिबंध लगाया गया था। हालांकि सरकार इसे केंद्रीय न्यायाधिकरण के समक्ष सही ठहराने में सफल नहीं हो पायी थी और बैन 6 माह बाद ही हटा लिया गया था।

जब संघ ने किया SIMI पर प्रतिबंध का विरोध

देश में कई आतंकी मामलों में SIMI सदस्यों की कथित संलिप्तता के कारण साल 2001 में आतंकवाद निरोधक अधिनियम (पोटा) के तहत संगठन पर प्रतिबंध लगा दिया गया था। गैरकानूनी गतिविधि रोकथाम अधिनियम (यूएपीए), 1963 की धारा 3 के तहत भी सिमी को एक गैरकानूनी ग्रुप घोषित किया गया है। दिलचस्प है कि साल 2001 में जब SIMI को बैन किया जा रहा था, तब राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ इसका विरोध कर रहा था।

23 अगस्त 2001 को एक प्रेस वार्ता में आरएसएस के तत्कालीन प्रवक्ता एमजी वैद्य ने कहा था, ”हम सिमी पर किसी तरह की पाबंदी के पक्ष में नहीं हैं।” वैद्य ने यह बात SIMI के महासचिव सफदर नागोरी के आरोपों पर प्रतिक्रिया देते हुए कही थी। दरअसल नागोरी ने कहा था, आरएसएस और संघ परिवार सिमी को बदनाम कर रहे हैं क्योंकि वे इसे हिंदुत्व के रास्ते में एक बाधा के रूप में देखते हैं।

तब महाराष्ट्र सरकार ने सेंट्रल गवर्मेंट को SIMI को बैन करने का सुझाव दिया था। इसके जवाब में तत्कालीन केंद्रीय गृह मंत्री एल.के. आडवाणी ने कहा था कि SIMI के खिलाफ जरूरी कार्रवाई के लिए सबूत जुटाए जा रहे हैं।

एमजी वैद्य ने प्रेस वार्ता में कहा था, ”हमें नहीं लगता कि SIMI  में हिंदुत्व को बाधित करने का कोई प्रभाव है। इसलिए संगठन पर किसी भी प्रतिबंध के बजाय, कानूनों का उल्लंघन करने पर सख्ती से निपटा जाना चाहिए।”