मणिपुर में हिंसक घटनाओं पर अभी भी पूरी तरह काबू नहीं पाया जा सका है। छिटपुट हिंसा की खबरें आए दिन आ ही रही हैं। मैतेई और कुकी समुदाय के बीच संबंध अब भी तनावपूर्ण हैं। इस बीच राज्य के मुख्यमंत्री एन बीरेन सिंह ने द इंडियन एक्सप्रेस की पत्रकार रितिका चोपड़ा को एक लंबा इंटरव्यू दिया है, जिसमें उन्होंने राज्य में भड़की हिंसा के कारण और समाधान के बारे में बात की है।
सीएम ने खुद कहा कि मौजूदा विवाद दो समुदायों के बीच का नहीं है। बल्कि ड्रग माफिया और सरकार के बीच का है। मणिपुर में जातीय संघर्ष का इतिहास रहा है। लेकिन सीएम वर्तमान स्थिति को अलग तरह से देखते हैं। उन्होंने हिंसा के कारण को स्पष्ट करते हुए कहा, “यह दो समुदायों के बीच का विवाद नहीं है। हमारे देश की सर्वोच्च जांच एजेंसी NIA की रिपोर्ट से यह साफ हो गया है कि इसमें बाहरी ताकतों का हाथ है। यदि उनका हस्तक्षेप न होता तो वर्तमान संकट सुलझ जाना चाहिए था। देखिए, ये लड़ाई दरअसल सरकार और ड्रग माफिया के बीच है। सरकार की कार्रवाइयां मूल कुकियों या आम नागरिकों पर नहीं थी; हमारा ध्यान पोस्ता की खेती और नशीली दवाओं की तस्करी में शामिल अवैध अप्रवासियों की पहचान करने पर था। ड्रग माफिया का असली निशाना सरकार थी, लेकिन वे सफल नहीं हो सके। इसलिए उन्होंने अशांति पैदा करने के लिए बॉर्डर क्षेत्र में मैतेई जैसे वर्गों की कमजोरियों का फायदा उठाया।”
क्या हिंसा मैतेइयों को हाईकोर्ट द्वारा ST का दर्जा देने के बाद भड़का?
इस सवाल के जवाब में मणिपुर के मुख्यमंत्री कहते हैं, “यही वह बिंदु है जिसे मैं स्पष्ट करना चाहूंगा। लोगों को शायद इस बात की जानकारी नहीं होगी कि उच्च न्यायालय ने सरकार से केवल उसकी राय पूछी थी; कोर्ट ने हमें तत्काल कोई कार्रवाई करने का निर्देश नहीं दिया। हमारे पास विकल्प था… जो ‘हां’ या ‘नहीं’ हो सकता था। हमने अपनी राय नहीं दी थी… तो यह अशांति का मुद्दा कैसे हो सकता है?”
फिर तीन मई की हिंसा कैसे भड़की?
मुख्यमंत्री कहते हैं, “मणिपुर में नशीली दवाओं की तस्करी एक गंभीर चुनौती है। राज्य की केवल तीन मिलियन (30 लाख) की आबादी में 1.5 लाख नशीली दवाओं का इस्तेमाल कर रही है। हमारे राज्य का लगभग 90% हिस्सा पहाड़ी इलाका है, जिसमें 60% जंगलों को पोस्त की खेती के लिए नष्ट कर दिया गया है… हमने पहाड़ों और घाटी में दवा के कारखाने भी पाए हैं। अपने पहले कार्यकाल के दौरान, मैंने नशीली दवाओं के खिलाफ युद्ध शुरू किया, जिससे नशीली दवाओं के सरगनाओं की गिरफ्तारी हुई, वन विनाश पर अंकुश लगा और ग्राम प्रधानों और नशीली दवाओं के तस्करों के खिलाफ कार्रवाई हुई। 2022 में हमने बहुमत हासिल किया, अपने प्रयास फिर से शुरू किए… हमने महसूस किया कि अधिकांश ड्रग्स और पोस्ता की खेती म्यांमार, थाईलैंड और लाओस के गोल्डन ट्राएंगल क्षेत्र से जुड़ी हुई थी… जबकि मूल कुकी और नागा (राज्य के निवासी) निर्दोष हैं… इस व्यापार में शामिल बाहरी लोगों को जाना पड़ा।”
सीएम आगे कहते हैं, “पिछले 15 वर्षों में 926 नए गांव उभरे, मुख्य रूप से चुराचांदपुर, चंदेल और कांगपोकपी जैसे कुकी-बहुल क्षेत्रों में… नागा-बहुल और मैतेई-पंगल प्रभुत्व वाले क्षेत्रों में ऐसी कोई वृद्धि नहीं हुई। इससे सवाल उठे… माननीय गृह मंत्री अमित शाह जी के मार्गदर्शन से, हमने म्यांमार से अवैध अप्रवासियों की पहचान के लिए एक समिति बनाई… जिसका नेतृत्व कैबिनेट मंत्री लेटपाओ हाओकिप ने किया, जो कुकी मित्र हैं। इसमें एक नागा मंत्री, अवांगबो न्यूमाई और मैतेई समुदाय के थौनाओजम बसंत सिंह भी थे। एक सप्ताह में समिति ने 2480 अवैध अप्रवासियों की पहचान की, जो अब डिटेंशन सेंटर में हैं। हमने लोगों को अवैध आप्रवासियों को आश्रय देने के खिलाफ भी चेतावनी दी। मुझे लगता है कि ये घटनाएं मौजूदा संकट का कारण बनीं।”
अब सवाल उठता है कि अगर मुख्यमंत्री को इतना सब पता था तो स्टेट मशीनरी मई में भड़की हिंसा का अनुमान लगाने में विफल क्यों रही? मुख्यमंत्री कहते हैं कि उन्हें अंदाजा था और उन्होंने सुरक्षा की मांग भी की थी लेकिन मिली नहीं। एन बीरेन सिंह कहते हैं, “27 अप्रैल को मुझे एक ओपन जिम का उद्घाटन करना था, लेकिन उपद्रवियों ने उसे जला दिया। उसी दिन से मुझे संदेह था… और मैंने डीजीपी से ध्यान रखने को कहा। जब मुझे 3 मई की आदिवासी एकजुटता रैली के बारे में बताया गया, तो मैंने इसके उद्देश्य के बारे में पूछताछ की, और मुझे बताया गया कि इसका संबंध उच्च न्यायालय के आदेश से है। मैं आश्चर्यचकित था क्योंकि राज्य सरकार ने अभी तक कोई जवाब नहीं दिया था। उस समय हिल एरिया कमेटी के सदस्य, सभी 20 विधायक मुझसे मिले थे। उन्होंने अनुरोध किया कि मैं किसी भी चीज़ की अनुशंसा ना करूं। मैंने आश्वासन दिया कि हम अदालत से और समय भी मांग सकते हैं।”
हिंसा कंट्रोल न करने कर पाने के सवाल पर सीएम कहते हैं कि, “यह मेरे लिए आश्चर्य की बात थी। पूरे दिन राज्यपाल महोदया और मैं दौरे पर आए उपराष्ट्रपति (जगदीप धनखड़) के साथ थे। मुझे नहीं पता कि क्या हुआ या क्या नहीं हुआ। मैं आलोचना नहीं करना चाहता… लेकिन रैली के दिन के लिए, मैंने सभी संवेदनशील जिलों के लिए सुरक्षा का अनुरोध किया था। मुझे बाद में पता चला कि डीजीपी ने चुराचांदपुर जिले में पर्याप्त सुरक्षा मुहैया नहीं कराई थी। उन्होंने कांगपोकपी और नोनी जिलों में सुरक्षा प्रदान की। नोनी में कुकी समुदाय मौजूद ही नहीं है। ये तो जांच में सामने आ जाएगा। मैं इससे ज्यादा कुछ नहीं कहना चाहता।” बता दें गृह मंत्रालय ने जातीय संघर्ष की जांच के लिए सेवानिवृत्त न्यायाधीश अजय लांबा की अध्यक्षता में तीन सदस्यीय आयोग का गठन किया है।
क्या सरकार के पास अवैध अप्रवासियों का आंकड़ा है?
मुख्यमंत्री अक्सर अवैध अप्रवासियों की बात करते हैं। उनसे सवाल था कि क्या अवैध प्रवासी इतनी संख्या में हैं कि वे राज्य को अस्थिर कर सकते हैं? सीएम ने कहा, “यही सबसे बड़ी चुनौती है। यह पिछली सरकारों की सबसे बड़ी विफलता को दर्शाता है। म्यांमार के साथ हमारी 398 किलोमीटर लंबी सीमा पर कोई सुरक्षा नहीं है, जबकि बांग्लादेश, नेपाल और पाकिस्तान के साथ हमारी सीमाओं पर बाड़ लगाई गई है… इसके अलावा, हमने एक मुक्त आवाजाही व्यवस्था (FMR) लागू की है, जिसके तहत सीमा के दोनों ओर रहने वाली जनजातियों को एक दूसरे के देश में 16 किमी अंदर तक जाने की अनुमति है। ऐसे में मूलनिवासी कैसे जीवित रहेंगे? तीन से चार लाख से अधिक (अवैध अप्रवासी) प्रवेश कर चुके हैं।”
जब सीएम से पूछा गया कि क्या वह जो आंकड़े बता रहे हैं वो आधिकारिक हैं, तो मुख्यमंत्री ने कहा- नहीं। सीएम ने कहा कि आंकड़े आधिकारिक नहीं हैं। लेकिन मेरे पास यह दिखाने के लिए डेटा है कि ये नए गांव हर साल कैसे विकसित हो रहे हैं। हमारी सीमा सुरक्षित नहीं है। असम राइफल्स वहां है, लेकिन म्यांमार के साथ हमारी सीमा के 12 किमी के भीतर। भाजपा के सत्ता में आने के बाद ही हमने म्यांमार के साथ अपनी सीमा के 10 किमी हिस्से में बाड़ लगाना शुरू किया। अब हमारे पास और 80 किमी की मंजूरी है।
इसके अलावा केंद्र की मोदी सरकार द्वारा ही किए गए FMR की आलोचना करते हुए सीएम कहते हैं, “फ्री मूवमेंट रिजीम (FMR) नहीं होनी चाहिए थी। वे लोग दूसरे देश के हैं… अगर वे वापस चले गए या यहीं बस गए, इसपर कौन नज़र कौन रखेगा? उन्हें वापस कौन भेजेगा?… फिलहाल ऐसी कोई व्यवस्था नहीं है। (राज्य सरकार ने FMR पर रोक लगा दी है।)
शांति बहाली के लिए क्या हो रहा है?
हिंसा भड़कने के पांच महीने बाद सरकार शांति बहाल करने के लिए क्या कर रही है? सीएम ने जवाब दिया, “मेरी प्राथमिकता मैतेई और कुकी सहित सभी प्रभावित समुदायों के साथ बातचीत शुरू करना है। मैंने पहले ही कुछ (अनौपचारिक) चैनलों के माध्यम से (बातचीत) शुरू कर दी है… हमने पहाड़ी और घाटी दोनों क्षेत्रों में विस्थापित व्यक्तियों के पुनर्वास और पूर्वनिर्मित घरों के निर्माण की प्रक्रिया शुरू कर दी है। क्षतिग्रस्त मकानों के पुनर्निर्माण की योजना बनाई जा रही है। सौभाग्य से, पिछले महीने में हमने आपसी दुश्मनी में कमी देखी है। दो लापता छात्रों से जुड़े हालिया वीडियो ने भावनाएं भड़का दीं, लेकिन त्वरित कार्रवाई से तनाव कम करने में मदद मिली है।”
सीएम से अगला सवाल था कि क्या सरकार ने बातचीत की प्रक्रिया बहुत देर से शुरू की? मुख्यमंत्री बताया कि उन्होंने तीन महीने पहले ही बातचीत की प्रक्रिया शुरू कर दी थी। बीरेन सिंह ने कहा, “हमने हिल एरिया कमेटी के अध्यक्ष और विधायक दीपू गंगमेई के नेतृत्व में विधायकों से बनी एक (शांति) समिति बनाई। इस समिति ने तीन महीने पहले ही काम करना शुरू कर दिया था, लेकिन अंदर ही अंदर और चुपचाप, क्योंकि उस वक्त हालात अनुकूल नहीं थे।”