भारत के किसी कोने में अगर राह चलते आपको वॉशरूम जाने की जरूरत महसूस हो और आस-पास कहीं वॉशरूम न मिले, तो परेशान होने की जरूरत नहीं है। न ही खुले में पेशाब आदि करने की जरूरत है। क्योंकि यह स्वास्थ्य और पर्यावरण दोनों के लिए नुकसानदेह हो सकता है।
ऐसे में सबसे सुरक्षित विकल्प यह है कि तुरंत अपने आसपास किसी रेस्टोरेंट या होटल को ढूंढ़े और उसके वॉशरूम का इस्तेमाल। आप छोटे से छोटे होटल या बड़े से बड़े पांच सितारा होटल, किसी का भी वॉशरूम इस्तेमाल कर सकते/सकती हैं, वह भी बिल्कुल मुफ्त। अगर कोई आपको ऐसा करने से रोके या पैसा मांगे, तो उसे इंडियन सराय एक्ट के बारे में बताएं।
क्या है इंडियन सराय एक्ट?
इंडियन सराय एक्ट-1867 की धारा 7(2) में “Free Access” का जिक्र है, जिसकी व्याख्या के अनुसार कोई भी व्यक्ति किसी भी समय किसी भी होटल या रेस्टोरेंट के वॉशरूम का इस्तेमाल बिलकुल मुफ्त में कर सकता है। यह एक्ट प्यास लगने की स्थिति में भी लागू होता है। किसी भी होटल या रेस्टोरेंट में जाकर पीने के लिए पानी मांगा जा सकता है। वह भी बिलकुल फ्री।
केंद्र सरकार की वेबसाइट पर उपलब्ध दस्तावेज के अनुसार भारतीय सराय अधिनियम-1867 का पालन न करने वालों पर अधिनियम की धारा 14 के अनुसार 20 रुपये का जुर्माना लग सकता है। भारतीय संविधान ने होटल और सराय को राज्यों के अधीन रखा है लेकिन केंद्रीय कानून भी मौजूद है। हालांकि, केंद्रीय कानून मुख्य रूप से उद्योग के पहलू जैसे भोजन, प्रदूषण आदि को नियंत्रित करता है।
क्यों बनाया गया था एक्ट?
इंडियन सराय एक्ट-1867 इंग्लिश कॉमन लॉजिंग हाउसेस अधिनियम-1853 के कुछ सेक्शन पर आधारित है। अंग्रेजों ने इंग्लिश कॉमन लॉजिंग हाउसेस अधिनियम-1853 को होटलों के कामकाज को नियंत्रित करने के लिए बनाया गया था। हालांकि जब यह एक्ट बहुत इफेक्टिव मालूम न हुआ, तब उसे सार्वजनिक स्वास्थ्य अधिनियम-1874 के साथ मिला दिया गया। अंग्रेजी हुकूमत में इसी अधिनियम के तहत जिला मजिस्ट्रेट को सराय के दिन-प्रतिदिन के कामकाज को नियंत्रित करने और रेगुलेट करने का अधिकार होता था।
सरकार खत्म करना चाहती है सराय एक्ट
भारत सरकार अंग्रेजों के जमाने के इस एक्ट को खत्म करने की कोशिश में है। सरकार का कहना है कि इस कानून का दुरुपयोग अक्सर होटल मालिकों के उत्पीड़न में किया जाता है।
केंद्र सरकार ने अक्टूबर 2014 में लिखित में बताया था कि ”अधिनियम (इंडियन सराय एक्ट-1867) जिला मजिस्ट्रेट को सार्वजनिक सरायों को रेगुलेट करने का अधिकार देता है। इसमें पंजीकरण, चरित्र प्रमाण पत्र और सराय कीपर से लिखित रिपोर्ट सहित कई अन्य प्रावधान शामिल हैं। हालांकि अभ यह अधिनियम बेमानी है क्योंकि होटल पहले से ही राज्यों द्वारा बनाए नियमों के तहत पंजीकृत हैं।
इसके अलावा हाल के मीडिया रिपोर्ट्स से पता चलता है कि पुलिस और पर्यटन अधिकारी होटल मालिकों को सराय अधिनियम के प्रावधानों का पालन न करने की वजह से परेशान करते हैं। इसलिए अब इस अधिनियम को निरस्त किया जाना चाहिए। पीसी जैन आयोग में भी इस अधिनियम को निरस्त करने की सिफारिश की गई है।”