समलैंगिक विवाह (Same Sex Couple) को कानूनी मान्यता देने की मांग वाली अर्जियों पर सुप्रीम कोर्ट की संविधान पीठ ने 3 मई को सातवें दिन सुनवाई की। सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने सुप्रीम कोर्ट को बताया कि सरकार इस मसले को लेकर सकारात्मक है और कैबिनेट सेक्रेटरी स्तर के अफसर की अगुवाई में एक कमेटी का गठन किया जाएगा। SG तुषार मेहता ने कहा कि जिस भी तरीके, रास्ते और माध्यम के जरिए समस्या का हल निकाला जा सकता है, हम सब करने के लिए तैयार हैं।
सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता (SG Tushar Mehta) की दलील पर चीफ जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ ने कहा कि यहां मूल सवाल यह है कि क्या स्पेशल मैरिज एक्ट (Special Marriage Act) के जरिए समलैंगिक कपल्स को शादी का अधिकार दिया जा सकता है। ऐसे में हम निश्चित तौर पर इसका फैसला करेंगे, लेकिन सरकार जो भी कदम उठा रही है उसका भी फायदा होगा। सॉलिसिटर मेहता ने अपनी दलील के दौरान कहा, ‘मेरी बस एक गुजारिश है कि दूसरा पक्ष जब कमेटी के सामने अपनी बात रखे तो सिर्फ ऐसे आइडिया रखें, जिनका प्रशासनिक स्तर पर हल निकाला जा सके। ऐसा ना हो कि कमेटी को समझ ही ना आए कि आखिर हो क्या रहा है?
3 मई को सुनवाई के दौरान सीनियर एडवोकेट राकेश द्विवेदी ने दलीलें दीं। उन्होंने कहा कि समलैंगिक कपल, इंटरसेक्स कपल या ट्रांसजेंडर्स की केवल एक ही मांग है कि वे हेट्रोसेक्सुअल मैरिज के साथ बराबरी चाहते हैं और स्पेशल मैरिज एक्ट में संशोधन की मांग कर रहे हैं। सॉलिसिटर जनरल ने दलील दी कि पति या पत्नी की जगह स्पाउस कहा जा सकता है। मैन और वुमेन की जगह व्यक्ति कह सकते हैं। एक सुझाव यह भी आया कि 99% ट्रांसजेंडर को महिला मान सकते हैं। फिर सॉलिसिटर जनरल ने उदाहरण देते हुए यह भी बताया कि ऐसा क्यों नहीं किया जा सकता है और इसके कितने खतरनाक नतीजे हो सकते हैं।
Same Sex Marriage पर सुनवाई की 4 बड़ी बातें
1- एडवोकेट द्विवेदी ने दलील दी कि यदि व्याकरण के नजरिए से देखें तो ”स्पाउस” एक फ्लैक्सिबल शब्द है लेकिन एक्ट के नजरिए से देखें तो इसका मतलब पति या पत्नी ही होता है। आप (समलैंगिक कपल) अपनी पसंद, पात्रता और गरिमा का दावा कर रहे हैं तो क्या हेट्रोसेक्सुअल्स की कोई गरिमा नहीं है?
सीजेआई चंद्रचूड़ ने जवाब देते हुए कहा, ‘इससे हेट्रोसेक्सुअल्स की गरिमा कैसे प्रभावित होगी? द्विवेदी ने कहा क्योंकि पति और पत्नी का रिश्ता प्राचीन काल से ही सार्थक रिश्ता रहा है। सीजेआई ने टोकते हुए कहा कि क्या आप यह कहना चाह रहे हैं कि हम यहां बस इस बात पर जिरह कर रहे हैं कि समलैंगिक कपल्स के विवाह को मान्यता देने से विषमलिंगी (हेट्रोसेक्सुअल्स) पति-पत्नी के संबंधों की गरिमा प्रभावित होगी? इस पर एडवोकेट द्विवेदी ने कहा- नहीं ऐसा नहीं है।
2- एडवोकेट राकेश द्विवेदी ने दलील दी कि जब हम कहते हैं, ‘मैं आपको पति या पत्नी के रूप में स्वीकार कर रहा हूं तो हम कहते हैं कि मैं आपको अपना जीवनसाथी मान रहा हूं। इस पर जस्टिस चंद्रचूड़ ने कहा कि यह कोई ठोस तर्क नहीं है। जब आप कहते हैं कि मैं आपको स्पाउस (जीवनसाथी) के रूप में स्वीकार कर रहा हूं तो उसका मतलब यह भी होता है कि मैं आपको ‘पत्नी’ के रूप में स्वीकार कर रहा हूं, जो मेरी जीवन साथी भी हैं।
3- एडवोकेट द्विवेदी ने दलील दी कि एक्ट के सेक्शन 4 का भाव यह है कि आप पति-पत्नी हैं, लेकिन जब आप इस शब्द की व्याख्या करेंगे तो इसमें और रिश्ते भी शामिल हो जाएंगे। उन्होंने दलील दी कि, ‘जब आप सम्मान और गरिमा की बात करते हैं तब आपको इसका अपमान नहीं करना चाहिए, क्योंकि परंपरागत, सांस्कृतिक, ऐतिहासिक और सामाजिक रूप से यह बहुत मूल्यवान है। यह उन लोगों के लिए मायने नहीं रखता है जो इसे महत्त्व नहीं देते हैं’।
इस पर मुख्य न्यायाधीश डीवाई चंद्रचूड़ ने सवाल किया, ‘क्या आप कह रहे हैं कि शादी सिर्फ हेट्रोसेक्सुअल कपल के बीच का एक संबंध है और इससे इतर किसी को इसका अधिकार दे दिया जाए तो पारंपरिक मूल्य प्रभावित होंगे? सीजेआई ने कहा, ‘हमारे संविधान में मूलभूत अधिकारों (फंडामेंटल राइट्स) को लेकर तमाम बातें कही गई हैं। इस पर एडवोकेट द्विवेदी ने कहा कि ‘फंडामेंटल राइट्स की बात समाज के संदर्भ में ही कर सकते हैं, इसीलिए मैं उसी दृष्टिकोण से बात कर रहा हूं’।
‘कहीं बाहर से नहीं आए समलैंगिक कपल’
एडवोकेट द्विवेदी की इस दलील पर सीजेआई चंद्रचूड़ ने कहा कि एक बात साफ-साफ समझ लेना चाहिए। समलैंगिक लोग कहीं बाहर से नहीं आए हैं। यह हमारे आसपास ही हैं और शुरू से ही दूसरे लोगों की तरह ही हमारे समाज का हिस्सा रहे हैं।
4- सीजेआई की इस बात पर एडवोकेट द्विवेदी ने कहा कि आप ठीक कह रहे हैं, वह समाज का हिस्सा है। उन्हें गरिमा और सम्मान भी प्राप्त है, लेकिन शादी गरिमा से जुड़ा सवाल नहीं है। अगर ऐसा ही होता तो अविवाहित लोगों की कोई गरिमा नहीं होती, लेकिन ऐसा है ही नहीं। सीजेआई ने कहा कि यह कोई बहस का विषय नहीं है कि अविवाहित या सिंगल लोगों की गरिमा नहीं है… यहां बात पसंद की है।