G20 शिखर सम्मेलन के आधिकारिक रात्रिभोज निमंत्रण में ‘भारत’ शब्द का उपयोग किया गया था। तब इस बात पर खूब चर्चा हुई थी क्या इंडिया की जगह सिर्फ भारत का नाम का इस्तेमाल होना चाहिए? देश के नाम को इंडिया से बदलकर सिर्फ भारत किए जाने की भी अटकलें लगी थीं।

अब भारत के विदेश मंत्री डॉक्टर सुब्रमण्यम जयशंकर (S. Jaishankar) की नई किताब आयी है, जिसका नाम ‘Why Bharat Matters’ है। विदेश मंत्री ने किताब के टाइटल पर चर्चा आखिरी चैप्टर में की है। न्यूज एजेंसी ANI को दिए इंटरव्यू में जयशंकर ने यह भी स्पष्ट किया है कि ‘इंडिया बनाम भारत’ विवाद पर उनका स्टैंड क्या है?

‘भारत’ पर इतना जोर क्यों?

अपनी नई किताब को लेकर विदेश मंत्री एस. जयशंकर ने ANI (Asian News International) की एडिटर इन चीफ स्मिता प्रकाश से बातचीत की है। वर्तमान केंद्र सरकार द्वारा ‘भारत’ शब्द पर अधिक जोर दिए जाने के मामले पर जयशंकर ने कहा कि यह एक संकीर्ण राजनीतिक बहस या ऐतिहासिक सांस्कृतिक बहस नहीं है, बल्कि एक मानसिकता है।

जयशंकर कहते हैं, “कई मायनों में लोग इस बहस का उपयोग अपने संकीर्ण उद्देश्यों के लिए करते हैं। तथ्य यह है कि ‘भारत’ शब्द का न केवल हमारी सांस्कृतिक सभ्यता से जुड़ा है, बल्कि एक आत्मविश्वास और पहचान भी है।”

इसी संदर्भ में जयशंकर ने कहा, “अगर हम वास्तव में अगले 25 वर्षों में ‘अमृत काल’ के लिए गंभीरता से तैयारी कर रहे हैं और अगर हम विकसित भारत या विकसित भारत की बात कर रहे हैं, तो यह तभी हो सकता है जब आप ‘आत्मनिर्भर भारत’ हों…”

भारत नाम का इतिहास

‘भारत’, ‘भरत’ या ‘भारतवर्ष’ का जिक्र पौराणिक साहित्य और महाकाव्य महाभारत में मिलता है। पुराणों में भारत का वर्णन उस स्थान के रूप में किया गया है, जिसके दक्षिण में समुद्र और उत्तर में हिमालय है। भरत पौराणिक कथाओं के प्राचीन राजा का नाम भी है। हिंदू धर्म में आस्था रखने वाले भरत को ऋग्वैदिक काल का अपना पूर्वज मानते हैं।

इंडिया और हिंदुस्तान नाम कहां से आया?

ऐसा माना जाता है कि हिंदुस्तान नाम ‘हिंदू’ से लिया गया है, जो संस्कृत ‘सिंधु’ का फारसी रूप है। तीसरी शताब्दी ईसा पूर्व में जब मैसेडोनिया के राजा अलेक्जेंडर ने भारत पर आक्रमण किया, तब तक ‘भारत’ की पहचान सिंधु के पार के क्षेत्र से की जाने लगी थी।

मुगलों के समय ‘हिंदुस्तान’ नाम का उपयोग संपूर्ण सिंधु-गंगा के मैदान का वर्णन करने के लिए किया जाता था। इतिहासकार इयान जे बैरो ने अपने लेख, ‘फ्रॉम हिंदुस्तान टू इंडिया: नेमिंग चेंज इन चेंजिंग नेम्स’ में लिखा है, “अठारहवीं शताब्दी के मध्य से अंत तक हिंदुस्तान शब्द का इस्तेमा अक्सर मुगल सम्राट के क्षेत्रों का उल्लेख करने के लिए किया जाता था, जिसमें अधिकांश दक्षिण एशिया शामिल था।”

18वीं शताब्दी के उत्तरार्ध से ब्रिटिश मानचित्रों पर ‘इंडिया’ नाम का प्रयोग तेजी से होने लगा और ‘हिंदुस्तान’ का पूरे दक्षिण एशिया से संबंध खत्म होने लगा। बैरो ने लिखा, “यूरोप में इंडिया शब्द के उपयोग का लंबा इतिहास रहा है। हो सकता है इस शब्द को पहले सर्वे ऑफ इंडिया जैसे वैज्ञानिक और नौकरशाही संगठनों ने अपनाया हो।” अंग्रेज उस क्षेत्र को इंडिया कहते थे, जहां उनका शासन हुआ करता था।

संविधान में इंडिया और भारत दोनों

संविधान के अनुच्छेद 1 में दो नामों का परस्पर उपयोग किया गया है। अनुच्छेद में स्पष्ट लिखा है- “India, that is Bharat, shall be a Union of States.” इसके अलावा भारतीय रिज़र्व बैंक और भारतीय रेलवे जैसे कई नामों में पहले से ही “इंडिया” का हिंदी संस्करण हैं।

भारत के पहले प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू ने अपनी किताब ‘डिस्कवरी ऑफ इंडिया’ “इंडिया”, “भारत” और “हिंदुस्तान” का उल्लेख किया। वह लिखते हैं, “अक्सर जब मैं एक बैठक से दूसरी बैठक में जाता था, तो अपने दर्शकों से हमारे इस भारत, इंडिया और हिंदुस्तान के बारे में बात करता था।”

हालांकि जब संविधान सभा के सामने देश का नाम तय करने का सवाल आया तो ‘हिंदुस्तान’ हटा दिया गया और ‘भारत’ और ‘इंडिया’ दोनों को बरकरार रखा गया।

देश का नाम क्या होना चाहिए, इसे लेकर संविधान सभा में 17 सितंबर, 1949 को बहस हुई थी। जब इंडिया और भारत दोनों नाम रखने की बात कही गई तो कई सदस्यों ने आपत्ति जताई। ऐसे सदस्य ‘इंडिया’ नाम के इस्तेमाल के खिलाफ थे। वे ‘इंडिया’ को नाम को औपनिवेशिक अतीत से ज्यादा कुछ मानने को तैयार नहीं थे।

हरि विष्णु कामथ ने सुझाव दिया कि संविधान के पहले आर्टिकल में भारत और अंग्रेजी में इंडिया लिखा होना चाहिए। सेठ गोविंद दास ने बात रखते हुए कहा कि “भारत को विदेशों में भी इंडिया के नाम से जाना जाता है।”

लेकिन संयुक्त प्रांत के पहाड़ी जिलों का प्रतिनिधित्व करने वाले हरगोविंद पंत ने स्पष्ट किया कि उत्तरी भारत के लोग “भारतवर्ष चाहते हैं और कुछ नहीं।”

पंत ने तर्क था कि इंडिया नाम अंग्रेजों ने दिया है, जिन्होंने देश को लूटा था। यदि हम फिर भी, ‘इंडिया’ शब्द से चिपके रहते हैं, तो ये केवल यह दिखाएगा कि हमें इस अपमानजनक शब्द से कोई शर्म नहीं है जो विदेशी शासकों द्वारा हम पर थोपा गया है। हालांकि समिति द्वारा कोई भी सुझाव स्वीकार नहीं किया गया।