फिल्ममेकर क्रिस्टोफर नोलन की फिल्म ‘ओपेनहाइमर’ (Oppenheimer) काफी चर्चा में है। पहले तो वो रिलीज के बाद बॉक्स ऑफिस पर शानदार प्रदर्शन को लेकर चर्चा में थी। फिल्म ने दो दिन में 35 करोड़ से ज्यादा कलेक्शन भारतीय सिनेमाघरों में किया है। वहीं, इस हॉलीवुड फिल्म को लेकर विवाद भी काफी है, जिसकी वजह से ये लगातार चर्चा में है। इस विवाद की वजह भगवत गीता का नाम लेना है। इसमें एक इंटीमेट सीन के दौरान भगवत गीता का नाम लिया जाता है, जिसकी वजह से भारतीय भड़क जाते हैं और इसे हिंदी धार्मिक ग्रंथों का अपमान बता कर विरोध करते हैं। लेकिन, इन सबके बीच मन में एक सवाल सभी के उठ रहा है कि आखिर ये ‘ओपेनहाइमर’ है क्या? जिस पर फिल्म बनाई गई है तो ऐसे में चलिए आपको इसके बारे में बताते हैं…

16 जुलाई, 1945 को अमेरिका के न्यू मैक्सिको के रेगिस्तान में एक ब्लास्ट किया गया था। ये कोई आम बम धमाका नहीं था, ये पहली बार एक न्यूक्लियर का टेस्ट किया गया था। इस टेस्ट को ट्रीनिटी नाम दिया गया था और प्रोजेक्ट को कौन लीड कर रहा था? ये कोई और नहीं बल्कि जाने-माने साइंटिस्ट जे. रॉबर्ट ओप्पनहाइमर थे। अब आप सोच रहे होंगे कि हमने तो कहा था कि फिल्म ‘ओपेनहाइमर’ के बारे में बताएंगे कि आखिर ये है क्या? और बता रहे हैं अमेरिका के साइंटिस्ट जे. रॉबर्ट के बारे में। उनका इससे क्या ताल्लुक है? ऐसे सवाल मन में जरूर उठ रहे होंगे। दरअसल, अमेरिका के इस जाने-माने साइंटिस्ट से ही फिल्म का ताल्लुक है।

भगवत गीता और साइंटिस्ट ओप्पनहाइमर…

प्रोजेक्ट ट्रिनिटी के तहत न्यूक्लियर की टेस्टिंग के दौरान साइंटिस्ट ओपेनहाइमर ने भगवत गीता की कुछ लाइनें बोली थीं, जो कि फिल्म में इंटीमेट सीन के दौरान दिखाई गई हैं। दरअसल, जब न्यूक्लियर का टेस्ट किया जा रहा था तो इसका धमाका उम्मीद से परे हुआ था। धमाका इतना ज्यादा खतरनाक हुआ कि सभी हिल गए, इससे गर्मी इस कदर निकली कि स्टील टावर तक पिघलने लगा। इसका धुआं आसमान में करीब 12 किमी तक गया। वहीं, 160 किमी दूरी तक इसके झटके को महसूस किया गया था। ये सब देखकर वो हैरान रह गए थे और ओपेनहाइमर ने तब भगवत गीता की चंद लाइनें ‘Now I Am Become Death, the Destroyer of Worlds’ बोली थीं, जिसे उनकी बायोग्राफी फिल्म ‘ओपेनहाइमर’ में दिखाया गया है और अब इस पर विवाद हो रहा है।

कौन हैं साइंटिस्ट ओप्पनहाइमर?

यूट्यूबर ध्रुव राठी के वीडियो के मुताबिक, साइंटिस्ट ओपेनहाइमर का पूरा नाम जूलियस रॉबर्ट ओपेनहाइमर था। उन्हें अमेरिका का ‘फादर ऑफ द एटोमिक बॉम्ब’ कहा जाता है। ये उस प्रोजेक्ट के पहले ऐसे साइंटिस्ट थे, जिसने पहली बार न्यूक्लियर हथियार बनाए थे। 1904 में जन्मे ओप्पनहाइमर जर्मन परिवार से ताल्लुक रखते थे। उन्हें बचपन से ही चाइल्ड जीनियस माना जाता था। वो 10 साल की उम्र में हाई लेवल की फीजिक्स-कैमिस्ट्री पढ़ रहे थे। वहीं, वो मिनरलॉजी की काफी जानकारी रखते थे। वो 12 साल की उम्र में मिनरलॉजिकल क्लब में लेक्चर देने भी जाया करते थे। उन्होंने हार्वर्ड यूनिवर्सिटी में चार साल की डिग्री को 3 साल में ही कंप्लीट कर ली थी। उन्हें कई सब्जेक्ट की जानकारी थी यहां तक कि ईस्टर्न धर्मों की भी काफी जानकारी थी। वो 23 साल की उम्र में पीएचडी तक कर चुके थे।

ओप्पनहाइमर कैसे थे भगवत गीता के जानकार?

दरअसल, जूलियस रॉबर्ट ओपेनहाइमर न्यूक्लियर साइंटिस्ट को थे ही साथ ही वो संस्कृत स्कॉलर भी थे। उन्होंने भगवत गीता की पूरी पढ़ाई की हुई थी। वो भगवत गीता को अपनी जिंदगी की सबसे महत्वपूर्ण किताब बताते हैं।

भगवत गीता के उन शब्दों का क्या है मतलब?

न्यूक्लियर टेस्ट के बाद ओपेनहाइमर ने भगवत गीता के जिन शब्दों का इस्तेमाल किया था उसका मतलब एक शब्द में कहें तो ‘काल’ था। ओपेनहाइमर के इन शब्दों ‘Now I Am Become Death, the Destroyer of Worlds’ का जिक्र भगवत गीता में संस्कृत में किया गया है। वो ऐसे है कि ‘कालोऽस्मि लोकक्षयकृत्प्रवृद्धोलोकान्समाहर्तुमिह प्रवृत्तः’ इसका जिक्र गीता के अध्याय 11, श्लोक 32 में किया गया है। ओपेनहाइमर न्यूक्लियर टेस्ट के बाद खुद को दुनिया का काल बताया था।