‘बैंडिट क्वीन’ नाम से मशहूर चंबल की प्रसिद्ध डाकू और बाद में समाजवादी पार्टी की सांसद बनीं फूलन देवी का लगाव फिल्मों से भी काफी ज्यादा था। उनके शब्दों में कहें तो वो फिल्मों को बस मनोरंजन के नजरिए से नहीं देखती थीं बल्कि उनमें अर्थ ढूंढती थीं। शाहरुख खान उनके पसंदीदा हीरो थे लेकिन उनकी फिल्में देखने से पहले भी वो फ़िल्म की कहानी के बारे में पता करती थीं और तब जाकर वो फ़िल्म देखती थीं। फूलन देवी की सबसे पसंदीदा फिल्म डिंपल कपाड़िया की फ़िल्म ‘रूदाली’ थी।
उन्होंने एक इंटरव्यू में बताया था कि वो जब भी उदास होती हैं, डिंपल कपाड़िया की फिल्म का गाना, ‘दिल हुम हुम करे, घबराए’ सुन लेती हैं। वाइल्ड फिल्म्स इंडिया को दिए एक इंटरव्यू में फूलन देवी ने बताया था, ‘मेरी कई पसंदीदा फिल्में रही हैं, एक रूदाली भी बड़ी अच्छी फिल्म है। रूदाली में डिंपल कपाड़िया ने जो रोल किया, बड़ा अच्छा किया है।’
रूदाली के गानों पर फूलन देवी ने कहा था, ‘रूदाली के गाने बड़े अच्छे हैं। मुझे जब कोई परेशानी होती है तो मैं वही गाना सोचती हूं बैठकर..दिल हुम हुम करे।’ उन्होंने बताया कि वो इस गाने को कभी-कभी गुनगुनाती भी हैं।
उन्हीं दिनों शाहरुख खान की फिल्म यस बॉस रिलीज होने वाली थी। जब उनसे इस फिल्म को देखने के बारे में सवाल पूछा गया तो उनका जवाब था, ‘जरूर देखेंगे फिल्म। पहले पता कराएंगे किस तरह की फिल्म है। हमारे पसंद लायक फिल्म होगी तो देखेंगे। हम पिक्चर को ऐसे ही नहीं देख लेते कि ये पिक्चर है, ये सीरियल है, ये नाटक है..कुछ कहानी हो, जिसे बाद में सोचने में अच्छा लगे।’
फूलन देवी से यह भी पूछा गया कि क्या कभी वो फिल्मों में काम करेंगी तो मुस्कुराते हुए उन्होंने जवाब दिया था, ‘नहीं नहीं.. बस थोड़ा बहुत समाज सेवा करेंगे। कहते हैं न कि जाको काम ताहि पे साजे, और करे तो गंदा बाजे।’
10 अगस्त 1963 को उत्तर प्रदेश में जन्मीं फूलन देवी की शादी 11 साल की उम्र में ही हो गई थी और वहीं से उनके साथ शुरू हुआ था जुल्म और शोषण का लंबा चलने वाला सिलसिला। फूलन कम उम्र में ही डाकुओं के गैंग में शामिल हो गई थीं।
फूलन ने साल 1983 में आत्मसमर्पण कर दिया और उन्हें जेल हो गई। लेकिन जब उत्तर प्रदेश में समाजवादी पार्टी की सरकार आई तब वो 1994 में रिहा हो गईं। फूलन देवी समाजवादी पार्टी की तरफ से ही मिर्जापुर की सांसद बनीं। साल 2001 में गोली मारकर उनकी हत्या कर दी गई थी।